पराधीनता की विजय से स्वाधीनता की पराजय सहस्त्र गुना अच्छी है। - अज्ञात।
कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

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पानी और पुल - महीप सिंह

गाड़ी ने लाहौर का स्टेशन छोड़ा तो एकबारगी मेरा मन काँप उठा। अब हम लोग उस ओर जा रहे थे जहाँ चौदह साल पहले आग लगी थी। जिसमें लाखों जल गये थे, और लाखों पर जलने के निशान आज तक बने हुए थे। मुझे लगा हमारी गाड़ी किसी गहरी, लम्बी अन्धकारमय गुफा में घुस रही है। और हम अपना सब-कुछ इस अन्धकार को सौंप दे रहे हैं।
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इच्छा | लघु-कथा  - रंजीत सिंह

हूँ...., आज माँ ने फिर से बैंगन की सब्जी बना कर डिब्बे में डाल दी। मुझे माँ पर गुस्सा आ रहा था । कितनी बार कहा है कि मुझे ये सब्जी पसंद नहीं, मत बनाया करो।
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प्रेमचंदजी - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma

प्रेमचंदजी से मेरा प्रथम परिचय पत्र के द्वारा हुआ। तब मैं आठवीं कक्षा की विद्यार्थिनी थी!। मेरी 'दीपक' शीर्षक एक कविता सम्भवत: 'चांद' में प्रकाशित हुई। प्रेमचंदजी ने तुरन्त ही मुझे कुछ पंक्तियों में अपना आशीर्वाद भेजा। तब मुझे यह ज्ञात नहीं था कि कहानी और उपन्यास लिखने वाले कविता भी पढ़ते हैं। मेरे लिए ऐसे ख्यातनामा कथाकार का पत्र जो मेरी कविता की विशेषता व्यक्त करता था, मुझे आशीर्वाद देता था, बधाई देता था, बहुत दिनों तक मेरे कौतूहल मिश्रित गर्व का कारण बना रहा।
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पंगा - दिव्या माथुर

एक नई नवेली दुल्हन सी एक बीएमडब्ल्यू पन्ना के पीछे लहराती हुई सी चली आ रही थी, जैसे दुनिया से बेख़बर एक शराबी अपनी ही धुन में चला जा रहा हो या कि जीवन से ऊब कर किसी चालक ने स्टीरिंग-व्हील को उसकी मर्ज़ी पर छोड़ दिया हो। उसकी कार का नंबर था आर-4-जी-एच-यू जो पढ़ने में 'रघु' जैसा दिखता था। 'स्टुपिड इडियट' कहते हुए पन्ना चौकन्नी हो गई कि यह 'रघु' साहब कहीं उसका राम नाम ही न सत्य कर दें। दुर्घटना की संभावना को कम करने के लिये पन्ना ने अपनी कार की गति बढ़ा ली और अपने और उसके बीच के फासले को बढ़ा लिया।
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सुनहरा अखरोट | अफ्रीकी लोक-कथा - हंसराज रहबर

बहुत दिनों की बात है। किसी गाँव में एक लोहार और उसकी पत्नी रहते थे। उन्हें धन-दौलत किसी चीज की कमी नहीं थी। दुख सिर्फ यह था कि इनके कोई सन्तान नहीं थी। एक रात लोहार की पत्नी ने सपना देखा। उसे एक घने जंगल में एक पेड़ दिखाई दिया। जिसकी टहनी फल के बोझ से झुकी हुई थी। इस टहनी पर एक बड़ा-सा सुनहरा अखरोट लटक रहा था।
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धरती की उत्पत्ति - रोहित कुमार ‘हैप्पी'

सामोअन लोगों का मानना है की पहले केवल आकाश और पानी ने पृथ्वी को ढका हुआ था। एक बार तांगालोआ (सामोअन देवता) ने आकाश से नीचे की ओर देखा। उन्होंने अपने खड़े होने के लिए एक जगह बनाने का विचार किया। उन्होंने एक चट्टान का निर्माण किया ताकि वे उस पर आराम कर सकें। इसके बन जाने पर वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा इस इससे अतिरिक्त भी कुछ और जगह का निर्माण किया जाए, जहाँ वे विश्राम कर सकें। उन्होंने इस चट्टान को दो भागों में विभक्त कर दिया। यही दो चटाने सामोआ की सवाई और उपोलु बनी इसी से आगे टोंगा फीजी और अन्य द्वीप बने।

जब तांगालोआ ने अपना काम समाप्त कर लिया तो वे सामोआ लौट गए। उन्होंने सवाई द्वीप और मानुआ द्वीप के बीच की दूरी नापी तो उन्हें लगा की यह दूरी बहुत अधिक है। इसी कारण उन्होंने इन दोनों के बीच में एक और चट्टान बना दी, जो द्वीप के मुखियाओं के काम के लिए रखी गई।
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रंग बदलता मौसम  - सुभाष नीरव

पिछले कई दिनों से दिल्ली में भीषण गरमी पड़ रही थी लेकिन आज मौसम अचानक खुशनुमा हो उठा था। प्रात: से ही रुक-रुक कर हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। आकाश काले बादलों से ढका हुआ था। धूप का कहीं नामोनिशान नहीं था।
मैं बहुत खुश था। सुहावना और ख़ुशनुमा मौसम मेरी इस ख़ुशी का एक छोटा-सा कारण तो था लेकिन बड़ा और असली कारण कुछ और था। आज रंजना दिल्ली आ रही थी और मुझे उसे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर रिसीव करने जाना था। इस खुशगवार मौसम में रंजना के साथ की कल्पना ने मुझे भीतर तक रोमांचित किया हुआ था।
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कोरोना फिर कब आएगा  - अनिता शर्मा की लघुकथा

सुमेल और राकेश की ड्यूटी स्लम एरिया में राशन बाँटने की लगी थी। बस्ती की सारी गलियों में राशन बाँटकर गाड़ी सड़क की ओर मोड़ ही रहे थे कि देखा पीछे से एक औरत बाबूजी, बाबूजी कहती हुई भागती आ रही थी। उसे देख सुमेल ने राकेश को गाड़ी रोकने के लिए कहा, वह औरत पास आई तो सुमेल ने कहा, "बीबी सारा सामान मिल तो गया है, कम से कम हफ़्ता-दस दिन चल जाएगा। अब और क्या चाहिए तुम्हें?"
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सीड बॉल - प्रो. मनोहर जमदाडे

जून का महीना था। इतवार के दिन मैं काम से छुट्टी लेता था। छुट्टी के दिन सुबह-सुबह गाँव में टहलने की मेरी आदत थी। अपनी आदत के मुताबिक मैं घर से निकला था। गाँव के बाहर पहाड़ों पर छोटी छोटी आकृतियाँ दिखाई दे रही थी। वैसे तो यह जगह अक्सर सुनसान रहती थी। मैं पहाड़ की तरफ निकल गया और वहाँ पहुँचने पर देखा कि छोटे बच्चे कीचड़ के लड्डू बना रहे थे। डॉक्टर होने के कारण मुझसे रहा नहीं गया। आदत के अनुसार बच्चों को हिदायते देने लगा। कीचड़ से सने उनके शरीर को देखकर, उनको डाटने भी लगा।
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देवताओं का फ़ैसला - अज्ञात

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प्रातःकाल महाराज उठे उन्होंने आज्ञा दी, कि शाही दरवाज़े के भिक्षुकों को सम्मान से हमारे सामने पेश किया जाये।
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झंझट ख़त्म - शिखा वार्ष्णेय

लन्दन में जून का महीना सबसे खुशनुमा होता है। सुबह चार-पाँच बजे से दिन चढ़ आता है। खिड़की से धूप झाँकने लगती है और आप चाहकर भी सोये नहीं रह पाते हैं।
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कृष्णा की चूड़ियाँ  - कादंबरी मेहरा

कुसुम को नए साल से पहले-पहले कानपुर पहुंचना है। भाई की इकलौती बेटी शुभा की शादी तय हो गयी है। सर पर से माँ का साया वर्षों पहले उठ गया था। शादी की तैय्यारी शुभा कैसे कर पायेगी। नानी के घर से मामा और मामी आयेंगे पर वे पुराने विचारों के लोग ठहरे। कुसुम को कम से कम पंद्रह दिन पहले तो पहुंचना ही चाहिए। दिक्कत ये है कि दिसंबर में भारत की सीट मिलना बड़ा मुश्किल होता है। इमर्जेंसी में बुक करने के दुगुने दाम। कुसुम ने पड़ोसी को अपनी परेशानी बताई तो वह चहक पड़े।
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क़ब्र की मिट्टी - खेमराज गुप्त

"अम्माँ, छोटे भैया को क्या हो गया? वह कहाँ गया माँ? और बापू ने उसे गढ़े में क्यों दबा दिया? क्या भैया वहाँ डरेगा नहीं? उसे जब भूख लगेगी तो वह रोयेगा भी, तब उसे दूध कौन पिलायेगा अम्माँ?"
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दुर्गा का मंदिर - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

बाबू ब्रजनाथ कानून पढ़ने में मग्न थे, और उनके दोनों बच्चे लड़ाई करने में। श्यामा चिल्लाती, कि मुन्नू मेरी गुड़िया नहीं देता। मुन्नू रोता था कि श्यामा ने मेरी मिठाई खा ली।
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बालेश्वर अग्रवाल : यादों के झरोखों से - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

यादों के झरोखों से

स्व. बालेश्वर अग्रवाल जी ने विश्व भर में प्रवासियों एवं हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए ऐतिहासिक कार्य किया है। विश्व भर में उनके प्रति आदर का भाव रखने वाले लोगों की संख्या बहुत बड़ी है। बहुत से लोगों को शायद इसका ज्ञान न हो कि आज का प्रवासी मंत्रालय बालेश्वर जी की ही देन है।
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