दोपहर की चिलचिलाती हुई धूप की उत्कट उपेक्षा करते हुए राघव सरकार शान से माथा ऊंचा किए हुए जल्दी-जल्दी पांव बढ़ाते हुए सड़क पर चले जा रहे थे। खद्दर की पोशाक, पैर में चप्पलें अवश्य थीं, पर हाथ में छाता नहीं; हालांकि वे चप्पलें भी ऐसी थीं और उनमें निकली हुई अनगिनत कीलों से उनके दो पांव इस तरह छिल गए थे कि उनकी उपमा शरशय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह से करना भी राघव सरकार के पांवों का अपमान होता, किन्तु शान से माथा ऊंचा किए हुए राघव सरकार को इसकी परवाह नहीं थी । वे पांव बढ़ाते हुए चले जा रहे थे। उन्होंने अपने चरित्र को बहुत दृढ़ बनाया था, सिद्धांतों पर आधारित मर्यादाशील उनका जीवन था, और इसीलिए हमेशा से राघव सरकार का माथा ऊंचा रहा, कभी झुका नहीं। उन्होंने कभी किसी की कृपा की आकांक्षा नहीं की, कभी किसी दूसरे के कन्धे के सहारे नहीं खड़े हुए, जहां तक हो सका दूसरों की भलाई की, और कभी अपनी कोई प्रार्थना लेकर किसी के दरवाजे नहीं गए। अपना माथा कभी झुकने ने पाए, यही उनकी जीवनव्यापी साधना रही है।
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कथा-कहानियाँ
इस श्रेणी के अंतर्गत
गरीब आदमी
बहादुर कुत्ता
[अमरीका के एक रेड इंडियन की कहानी]
अमरीका के जंगल में एक साल का एक कुत्ता अपनी माँ के पास बैठा था। उन दोनों के बाल काफी पडे थे। इससे दूर से देखने वाले उन्हें भेड़िया समझ लेते थे। थोड़ी ही देर में कुत्ते ने आदमियों की आवाज सुनी और वह भोंकना ही चाहता था कि इतने में उसकी बूढी माँ की गरदन में एक तीर लगा और वह वहीं जमीन पर गिर गई। कुत्ते को यह बात बहुत बुरी लगी और वह तीर चलाने वाले लोगों की और भूँ-भूँ करता हुआ झपटा। रेड इडियन की टोली में से एक आदमी उस पर भी तीर चलाना चाहता था, कि इतने में एक रेड इंडियन लड़का आगे बढा और बोला, 'तुम्हें इस छोटे से कुत्ते पर तीर चलाते हुए शर्म नहीं आती। रहने दो, मैं इसे पालूँगा।‘ ऐमा कहकर रेड इंडियन लड़का आगे बढ़ा और उमने उस कुत्ते को पकड़ लिया। कुत्ता उस उसे काटना चाहता था परतु लड़के ने इस होशियारी से उसका गला पकड़ रखा था कि वह लड़के को को काट नहीं सका।
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भूख | कहानी
आहट सुन लक्ष्मा ने सूप से गरदन ऊपर उठाई। सावित्री अक्का झोंपड़ी के किवाड़ों से लगी भीतर झांकती दिखी। सूप फटकारना छोड़कर वह उठ खड़ी हुई, ‘‘आ, अंदर कू आ, अक्का।'' उसने साग्रह सावित्री को भीतर बुलाया। फिर झोंपड़ी के एक कोने से टिकी झिरझिरी चटाई कनस्तर के करीब बिछाते हुए उस पर बैठने का आग्रह करती स्वयं सूप के निकट पसर गई।
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समाधान
एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ।
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जिल्दसाज़
वह अधेड़ जिल्दसाज़ सबेरे से शाम तक और अँधेरा होने पर दिए की रोशनी में बड़ी रात तक, अपनी छोटी-सी दुकान में अकेला एक फुट लंबी चटाई पर बैठा किताबों की जिल्दें बाँधा करता। उसकी मोटी व भद्दी अँगुलियाँ बड़ी उतावली से अनवरत रंग-बिरंगे कागजों के पन्नों में उलझती रहतीं और उसकी धुंधली आँखें नीचे को झुकी काम में व्यस्त रहतीं।
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पाठशाला
एक पाठशाला का वार्षिकोत्सव था। मैं भी वहाँ बुलाया गया था। वहाँ के प्रधान अध्यापक का एकमात्र पुत्र, जिसकी अवस्था आठ वर्ष की थी, बड़े लाड़ से नुमाइश में मिस्टर हादी के कोल्हू की तरह दिखाया जा रहा था। उसका मुंह पीला था, आँखें सफेद थीं, दृष्टि भूमि से उठती नहीं थी। प्रश्न पूछे जा रहे थे। उनका वह उत्तर दे रहा था। धर्म के दस लक्षण सुना गया, नौ रसों के उदाहरण दे गया। पानी के चार डिग्री के नीचे शीतलता में फैल जाने के कारण और उससे मछलियों की प्राण-रक्षा को समझा गया, चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान दे गया, अभाव को पदार्थ मानने, न मानने का शास्त्रार्थ कर गया और इंग्लैंड के राजा आठवें हेनरी की स्त्रियों के नाम और पेशवाओं का कुर्सीनामा सुना गया।
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सच्चा कलावान्
टॉल्स्टॉय का एक मित्र चित्रकार था नाम था गे। गे ने ईसा से मिलते जुलते चित्र बनाने शुरू किए। उस समय टॉल्स्टॉय ने जो उपदेश उसे दिया, वह ध्यान देने लायक़ है ।
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मेरे हिस्से का पूरा आसमान
मैं जब भी अपनी बालकनी से झाँक कर ऊपर का आसमान देखने की कोशिश करती हूँ और वह पूरा नहीं दिखता, तो बालपन का भरा-पूरा संसार आज के अधूरेपन पर जरा रुष्ट सा हो जाता है।और, याद आता है हमारे घर की वह छत! वह विस्तृत छत! जिसका विस्तार सीने में धड़कते दिल जैसा ही था। जहाँ से हमारा पूरा संसार दिखाई देता था। आज भी वही यादें हमें संपन्न बनाए हुए हैं।वरना, हमें गरीबी और अमीरी का फर्क समझ में ही नहीं आता।
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दो विद्वान
एक बार एक प्राचीन नगर में दो विद्वान रहते थे। दोनों बड़े विद्वान थे लेकिन दोनों के बीच बड़ा मनमुटाव था। वे एक-दूसरे के ज्ञान को कमतर आँकने में लगे रहते।
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कुछ यूँ हुआ उस रात...
उस रात तिलोत्तमा के मोबाइल की बजती घंटी ने गहराते हुए सन्नाटे के साथ-साथ उसके मन की शांति को भी भंग कर दिया। कुछ देर पहले ही उसकी आँख लगी थी। पल भर तो उसे समझ ही नहीं आया कि मोबाईल की घंटी सच में बज रही है या वह कोई सपना देख रही है। उसने उनींदी आँखों से देखा... रात का एक बज चुका था।
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विक्रमादित्य का न्याय
विक्रमादित्य का राज था। उनके एक नगर में जुआ खेलना वर्जित था। एक बार तीन व्यक्तियों ने यह अपराध किया तो राजा विक्रमादित्य ने तीनों को अलग-अलग सज़ा दी। एक को केवल उलाहना देते हुए, इतना ही कहा कि तुम जैसे भले आदमी को ऐसी हरकत शोभा नहीं देती। दूसरे को कुछ भला-बुरा कहा, और थोड़ा झिड़का। तीसरे का मुँह काला करवाकर गधे पर सवार करवा, नगर भर में फिराया।
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हिस्से का दूध | लघुकथा
उनींदी आँखों को मलती हुई वह अपने पति के करीब आकर बैठ गई। वह दीवार का सहारा लिए बीड़ी के कश ले रहा था।
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पच्चीस चौका डेढ़ सौ
पहली तनख्वाह के रुपये हाथ में थामे सुदीप अभावों के गहरे अंधकार में रोशनी की उम्मीद से भर गया था। एक ऐसी खुशी उसके जिस्म में दिखाई पड़ रही थी, जिसे पाने के लिए उसने असंख्य कँटीले झाड़-झंखाड़ों के बीच अपनी राह बनाई थी। हथेली में भींचे रुपयों की गर्मी उसकी रग-रग में उतर गई थी। पहली बार उसने इतने रुपये एक साथ देखे थे।
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भारी नहीं, भाई है | लघुकथा
मैंने कांगड़े की घाटी में एक लड़की को देखा, जो चार साल की थी, और दुबली-पतली थी। और एक लड़के को देखा, जो पांच साल का था, और मोटा ताज़ा था। यह लड़की उस लड़के को उठाए हुए थी, और चल रही थी।
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