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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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साजन! होली आई है! - फणीश्वरनाथ रेणु | Phanishwar Nath 'Renu' |
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एक बैठे-ठाले की प्रार्थना - पं० बदरीनाथ भट्ट |
लीडरी मुझे दिला दो राम, |
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ये बिछा लो आँचल में - आशीष मिश्रा | इंग्लैंड |
भर कर लाया फूल हथेली, प्रिये बिछा लो आँचल में |
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गीता का सार - आराधना झा श्रीवास्तव |
तू आप ही अपना शत्रु है |
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तीन हाइकु - पवन कुमार जैन |
कोरोना भी है |
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होली - मैथिलीशरण गुप्त - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
जो कुछ होनी थी, सब होली! |
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खेलो रंग अबीर उड़ावो - होली कविता - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
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कृतज्ञ हूँ महामाया - राजेश्वर वशिष्ठ |
अपनी कक्षाओं में घूम रहे हैं |
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नेतावाणी-वंदना | हास्य कविता - डॉ रामप्रसाद मिश्र |
जय-जय-जय अंग्रेज़ी-रानी ! |
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आओ होली खेलें संग - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
कही गुब्बारे सिर पर फूटे |
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मीरा के होली पद - मीराबाई | Meerabai |
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥ |
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हुल्लड़ के दोहे - हुल्लड़ मुरादाबादी |
बुरे वक्त का इसलिए, हरगिज बुरा न मान। |
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ढोल, गंवार... - सुरेंद्र शर्मा |
मैंने अपनी पत्नी से कहा -- |
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प्यार भरी बोली | होली हास्य कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi |
होली पर हास्य-कवि जैमिनी हरियाणवी की कविता |
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दायरा | हास्य कविता - नेहा शर्मा |
एक बुढ्ढे को बुढ़ापे में इश्क का बुखार चढ़ गया |
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चलो कहीं पर घूमा जाए | गीत - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) |
चलो कहीं पर घूमा जाए, |
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ओ मेरी साँसों के दीप ! - अशोक दीप |
विश्व सदन की जोती बनकर |
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प्रेम की चार कवितायें - डॉ मनीष कुमार मिश्रा |
जो भूलती ही नहीं |
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हिसाबे-इश्क़ है साहिब | ग़ज़ल - अरविन्द कुमार सिंहानिया |
हिसाबे-इश्क़ है साहिब ज़रा भी कम न निकलेगा, |
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लोग टूट जाते हैं | ग़ज़ल - बशीर बद्र |
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में |
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बयानों से वो बरगलाने लगे हैं - डॉ राजीव सिंह |
बयानों से वो बरगलाने लगे हैं |
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छन-छन के हुस्न उनका | ग़ज़ल - निज़ाम-फतेहपुरी |
छन-छन के हुस्न उनका यूँ निकले नक़ाब से। |
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जिंदगी | गीत - प्रभजीत सिंह |
एक शाम जिंदगी तमाम हो गई |
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जीत जाएंगे - प्रिंस सक्सेना |
बंदिशों में ज़िन्दगी है, हर तरफ मुश्किल बड़ी है, स्वांस पर पहरा लगा है, ये संभलने की घड़ी है। हम नहीं इस दौर में आँसू बहाएंगे, इक न इक दिन जीत जाएंगे॥ एक न एक दिन इस धरा पर एक नई शुरुआत होगी, आसमां में देखना तुम फिर सुकून की रात होगी, दिल मे फिर विश्वास होगा होंठ पे मुस्कान होगी, गुनगुनाती बारिशों में खुशियों की फिर तान होगी। झूमकर नाचेंगे फिर हम मुस्कुरायेंगे एक न एक दिन जीत जाएंगे॥ जो समय के साथ जीना सीख लेगा वो जीएगा, विष शिवा के जैसे पीना सीख लेगा वो जीएगा, वो जीएगा जो मनुजता का सही उद्देश्य समझे, वो जीएगा जो प्रकर्ति का सही संदेश समझे। हम सभी मिलकर वही संदेश गाएंगे, इक न इक दिन जीत जाएंगे॥ एक अंधी दौड़ में बस हम तो दौड़े जा रहे थे, क्या मनुजता क्या मधुरता सब ही छोड़े जा रहे थे, आदमी का आदमी से प्यार था बस अर्थ का ही, नेह के विश्वास के बंधन को तोडे जा रहे थे। हो नही ऐसा कभी सौगंध खाएंगे एक न एक दिन जीत जाएंगे॥ --प्रिंस सक्सेना ई-मेल : princegsaxena@gmail.com ... |
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धीरे-धीरे प्यार बन गई - नर्मदा प्रसाद खरे |
जाने कब की देखा-देखी, धीरे-धीरे प्यार बन गई |
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