हमने अपने हाथों में जब धनुष सँभाला है,
बाँध कर के सागर को रास्ता निकाला है।
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काव्य
इस श्रेणी के अंतर्गत
हमने अपने हाथों में
कटी पतंग
एक पतंग नीले आकाश में उड़ती हुई,
मेरे कमरे के ठीक सामने
खिड़की से दिखता एक पेड़,
अचानक पतंग कट कर
वहाँ अटक गयी।
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दूर गगन पर | गीत
दूर गगन पर सँध्या की लाली
सतरंगी सपनों की चुनरी लहरायी
आँचल में भरकर तुझे ओ चंदा
चाँदनी बनकर मैं मुस्करायी
दूर गगन पर----
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हिंद को सलाम करें, शान के लिये
तीन रंग से बना है, ध्वज यहाँ खड़ा
शौर्य और शूरता से भव्य है बड़ा
और जिसे देखकर वीर कह उठा
सलाम हिंद केसरी, श्वेत और हरा
आरती और अर्चना, सम्मान के लिये
देश की आराधना और मान के लिये
हिंद को सलाम करें, शान के लिये
रात बीत ही गयी है, ये सुबह हुई
आज जीत ही बिछी है, देख तो सही
आज दिन नये को देखो तौलता आकाश
रात है गयी धरा से बोलता आकाश
राष्ट्र की है भावना, अभिमान के लिये
देश की आराधना और मान के लिये
हिंद को सलाम करें, शान के लिये
आज़ाद का गगन है ये सुखदेव की धरा
और भगत सिंह से है कौन सा बड़ा
लाख अत्याचार से ये कोई ना झुका
गांधी के हर सत्य में है राम ही छुपा
मुक्त हों हर वेदना से, प्राण दे दिये
देश की आराधना और मान के लिये
हिंद को सलाम करें, शान के लिये
सच में ये धरा मेरे किसान की भूमि
खेत ये खलिहान बलिदान की भूमि
क़लाम के प्रयोग और विज्ञान की भूमि
जय हिंद जय जवान के आह्वान की भूमि
जम्मू काशमीर और अंडमान की भूमि
शिलोंग, मिज़ोरम, राजस्थान की भूमि
राणा और शिवाजी के अटल आन की भूमि
वीरों के पानीपत की है मैदान की भूमि
सरहदों पे जागते जवान की भूमि
आरती में शंख और अजान की भूमि
बुद्ध की पदचाप और ध्यान की भूमि
कबीर के दोहो से भरे ज्ञान की भूमि
तुलसी ने करी साधना, जिस काम के लिये
ये भूमि मेरी वंदना, उस राम के लिये
देश की आराधना और मान के लिये
हिंद को सलाम करें, शान के लिये।
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सो गई है मनुजता की संवेदना
सो गई है मनुजता की संवेदना
गीत के रूप में भैरवी गाइए
गा न पाओ अगर जागरण के लिए
कारवाँ छोड़कर अपने घर जाइए
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मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ | दुष्यंत कुमार
मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ
वो गज़ल आपको सुनाता हूँ।
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मेरे दुख की कोई दवा न करो | ग़ज़ल
मेरे दुख की कोई दवा न करो
मुझ को मुझ से अभी जुदा न करो
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दो-चार बार... | ग़ज़ल
दो-चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए
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कला कौ अंग | दोहे
लेखक का गुण एक ही करै भँडौती धाय।
पुरस्कार पै हो नज़र ग्रांट कहीं मिल जाय॥
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एक पगले नास्तिक की प्रार्थना
मुझे क्षमा करना ईश्वर
मुझे नहीं मालूम कि तुम हो या नहीं
कितने ही धर्मग्रंथों में
कितनी ही आकृतियों और वेशभूषाओं में
नज़र आते हो तुम
यहाँ तक कि कुछ का कहना है
नहीं है तुम्हारा शरीर
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साल मुबारक!
जैसे सोच की कंघी में से
एक दंदा टूट गया
जैसे समझ के कुर्ते का
एक चीथड़ा उड़ गया
जैसे आस्था की आँखों में
एक तिनका चुभ गया
नींद ने जैसे अपने हाथों में
सपने का जलता कोयला पकड़ लिया
नया साल कुझ ऐसे आया…
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जो दीप बुझ गए हैं
जो दीप बुझ गए हैं
उनका दु:ख सहना क्या,
जो दीप, जलाओगे तुम
उनका कहना क्या,
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क्या कहें ज़िंदगी का फ़साना मियाँ | ग़ज़ल
क्या कहें ज़िंदगी का फ़साना मियाँ
कब हुआ है किसी का ज़माना मियाँ
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अब तो मजहब कोई | नीरज के गीत
अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाए
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मैं करती हूँ चुमौना
कोहरे की ओढ़नी से झांकती है
संकुचित-सी वर्ष की पहली सुबह यह
स्वप्न और संकल्प भर कर अंजुरी में
इस उनींदी भोर का स्वागत,
मैं करती हूँ चुमौना।
इस बरस के ख्वाब हों पूरे सभी
बदनजर इनको न लग जाए कभी
दोपहर की धूप में काजल मिलाकर
मैं लगाती हूँ सुनहरे साल के
गाल पर काला डिठौना।
फिर वही बच्चों की मोहक टोलियां हों
बाग में रूठें, मनाएं, जोड़ियां हों
पंछियों के साथ मिलकर चहचहाए
राह देखे शाम लेकर
घास का कोमल बिछौना।
गत बरस तो बीत घूंघट में गया
इस बरस का चांद दूल्हे-सा सजा
ले कुंआरे स्वप्न गर्वीला खड़ा है
प्रेम से मनमत्त है आतुर, करा लाने को गौना।
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डॉ सुधेश के दोहे
हिन्दी हिन्दी कर रहे 'या-या' करते यार।
अंगरेजी में बोलते जहां विदेशी चार॥
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कोरोना पर दोहे
गली-मुहल्ले चुप सभी, घर-दरवाजे बन्द।
कोरोना का भूत ही, घुम रहा स्वच्छन्द॥
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मतदान आने वाले ,सरगर्मियाँ बढ़ीं | ग़ज़ल
मतदान आने वाले, सरगर्मियाँ बढ़ीं।
झाँसे में हमको लेने फ़िर कुर्सियाँ बढ़ीं।।
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उपस्थिति
व्याकरणाचार्यों से दीक्षा लेकर नहीं
कोशकारों के चेले बनकर भी नहीं
इतिहास से भीख माँगकर तो कतई नहीं
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हंसों के वंशज | गीत
हंसों के वंशज हैं लेकिन
कव्वों की कर रहे ग़ुलामी
यूँ अनमोल लम्हों की प्रतिदिन
होती देख रहे नीलामी
दर्पण जैसे निर्मल मन को
क्यों पत्थर के नाम कर दिया
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जय जय जय अंग्रेजी रानी!
जय जय जय अंग्रेजी रानी!
‘इंडिया दैट इज भारत' की भाषाएं भरतीं पानी ।
सेवारत हैं पिल्ले, मेनन, अयंगार, मिगलानी
तमिलनाडु से नागालैंड तक ने सेवा की ठानी।
तेरे भक्तों को हिंदी में मिलती नहीं रवानी
शब्दों की भिक्षा ले ले उर्दू ने कीर्ति बखानी।
एंग्लो-इंडियन भाई कहते, तू भारत की वाणी
अड़गम- बड़गम-कड़गम कहते, तू महान् कल्याणी।
अंकल,आंटी, मम्मी, डैडी तक है व्यापक कहानी
पब्लिक स्कूलों से संसद तक तूने महिमा तानी।
अंग्रेजी में गाली देने तक में ठसक बढ़ानी
फिर भाषण में क्यों न लगे सब भक्तों को सिम्फानी ।
मैनर से बैनर, पिओन से लीडर तक लासानी
सभी दंडवत करते तुझको, तू समृद्धि-सुख-दानी।
जय जय जय अंग्रेजी रानी!
जय जय जय अंग्रेजी रानी!!
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हुल्लड़ के दोहे
बुरे वक्त का इसलिए, हरगिज बुरा न मान।
यही तो करवा गया, अपनों की पहचान॥
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मसख़रा मशहूर है... | हज़ल
मसख़रा मशहूर है आँसू बहाने के लिए
बांटता है वो हँसी सारे ज़माने के लिए
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मुझको सरकार बनाने दो
जो बुढ्ढे खूसट नेता हैं, उनको खड्डे में जाने दो
बस एक बार, बस एक बार मुझको सरकार बनाने दो।
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कंकड चुनचुन
कंकड चुनचुन महल उठाया
लोग कहें घर मेरा।
ना घर मेरा ना घर तेरा
चिड़िया रैन बसेरा है॥
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जड़ें
जड़ों में गढ़ के पड़े रहने से
नवांकुर नहीं फूटते
जैसे जागने पर स्वप्न नहीं टूटते
वह तो टूटा करते हैं
सोने से !
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इस महामारी में
इस महामारी में
घर की चार दिवारी में कैद होकर
जीने की अदम्य लालसा के साथ
मैं अभी तक जिंदा हूँ
और देख रहा हूँ
मौत के आंकड़ों का सच
सबसे तेज़
सबसे पहले की गारंटी के साथ।
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हे कविता
हे कविता!
हर रात सोते समय,
एक कविता को
सपने में आने के लिये प्रार्थना करती हूँ।
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वो बचा रहा है गिरा के जो
वो बचा रहा है गिरा के जो, वो अज़ीज़ है या रक़ीब है
न समझ सका उसे आज तक, कि वो कौन है जो अजीब है
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ज़हन में गर्द जमी है---
तुम बहुत सो चुके हो जगिए भी तो सही,
ज़िंदा हो अगर ज़िंदा लगिए भी तो सही।
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नया साल : नया गीत
नये साल में गीत लिखें
कुछ नये भाव के ऐसे
हर शाखा पर पत्र-पुष्प नव
ऋतु बसंत में जैसे
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