देखो भाई बरखा बहार
लेकर आई बूंदों की फुहार
रिमझिम-रिमझिम झड़ी लगाई
धरती कैसी है मुसकाई
लहराते पत्ते-पत्ते पर
हरियाली इसने बिखराई
ऋतुओं ने किया शृंगार
देखो आई बरखा बहार
झूम उठा मौसम चित्तचोर
नाच उठा जंगल में मोर
चमचम-चमचम बिजली बरसे
रिमझिम-रिमझिम बादल बरसे
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बच्चों की कविताएं
इस श्रेणी के अंतर्गत
बरखा बहार
नटखट चिड़िया
चीं-चीं करके गाती चिड़िया
सबका मन बहलाती चिड़िया।
फुदक-फुदक कर नाचे चिड़िया
मुनिया बैठी बाँचे चिड़िया।
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मेरा भी तो मन करता है
मेरा भी तो मन करता है
मैं भी पढ़ने जाऊँ
अच्छे कपड़े पहन
पीठ पर बस्ता भी लटकाऊँ
क्यों अम्मा औरों के घर
झाडू-पोंछा करती है
बर्तन मलती, कपड़े धोती
पानी भी भरती है
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सीधा-सादा
सीधा-सादा सधा सधा है
इसी जीव का नाम गधा है
इसपर कितना बोझ लदा है
पर रहता खामोश सदा है
ढेंचू ढेंचू कह खुश रहता
नहीं शिकायत में कुछ कहता
काम करो पर नहीं गधे-सा
नाम करो पर नहीं गधे-सा
-शेरजंग गर्ग
[इक्यावन बाल कविताएँ, 2009, आत्माराम एंड संस, दिल्ली]
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पापा, मुझे पतंग दिला दो
पापा, मुझे पतंग दिला दो,
भैया रोज उड़ाते हैं।
मुझे नहीं छूने देते हैं,
दिखला जीभ, चिढ़ाते हैं॥
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दादी कहती दाँत में | बाल कविता
दादी कहती दाँत में मंजन नित कर नित कर नित कर
साफ़-सफाई दाँत जीभ की नितकर नित कर नित कर।
सुन्दर दांत सभी को भाते
आकर्षित कर जाते,
खूब मिठाई खाओ अगर तो
कीड़े इनमें लग जाते,
दोनों समय नियम से मंजन नित कर नित कर नित कर
दादी कहती दांत में मंजन नित कर नित कर नित कर।
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दीदी को बतलाऊंगी मैं | बाल कविता
बड़ी हो गई अब यह छोड़ो
नानी गाय, कबूतर उल्लू
अरे चलाती मैं कम्प्यूटर
मत कहना अब मुझको लल्लू ।
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चतुर चित्रकार
चित्रकार सुनसान जगह में बना रहा था चित्र।
इतने ही में वहाँ आ गया यम राजा का मित्र॥
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पानी और धूप
अभी अभी थी धूप, बरसने
लगा कहाँ से यह पानी
किसने फोड़ घड़े बादल के
की है इतनी शैतानी।
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जामुन
पौधा तो जामुन का ही था
लेकिन आये आम
पर जब खाया, तब यह पाया
ये तो है बादाम
जब उनको बोया ज़मीन में
पैदा हुए अनार
पकने पर हो गये संतरे
मैंने खाए चार।
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प्रकृति विनाशक आखिर क्यों है?
बिस्तर गोल हुआ सर्दी का,
अब गर्मी की बारी आई।
आसमान से आग बरसती,
त्राहिमाम् दुनियाँ चिल्लाई।
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बूंदों की चौपाल
हरे- हरे पत्तों पर बैठे,
हैं मोती के लाल।
बूंदों की चौपाल सजी है,
बूंदों की चौपाल।
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