जन-जन ने हैं दीप जलाए
लाखों और हजारों ही
धरती पर आकाश आ गया
सेना लिए सितारों की
छुप गई हर दीपक के नीचे
देखो आज अमावस काली
सुंदर-सुंदर दीपों वाली
झिलमिल आई है दीवाली
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कविताएं
इस श्रेणी के अंतर्गत
झिलमिल आई है दीवाली
एक दीया मस्तिष्क में जलाएं
आजकल हर समय विचारों के झंझावात चलते रहते हैं
सही गलत का नहीं पता कुछ, बस यह यूं ही बढ़ते रहते हैं
कभी किसी बात में होता चिंतन किसी ने मनन
यह यूं ही चलता रहा, समय हर क्षण।
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काश! मुझे कविता आती
काश! मुझे कविता आती
लिख देता उनको पुस्तक-सा
प्रेम भरा दोहा लिखता
लिख देता उनको मुक्तक-सा।
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राम
लिखने को कुछ और चला था
स्वतः कलम ने राम लिखा
र पर आ की एक मात्रा
म मिल कर निष्काम लिखा
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
जब भी देखूं, आतप हरता।
मेरे मन में सपने भरता।
जादूगर है, डाले फंदा।
क्या सखि, साजन? ना सखि, चंदा।
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दोस्त एक भी नहीं जहाँ पर
दोस्त एक भी नहीं जहाँ पर, सौ-सौ दुश्मन जान के,
उस दुनिया में बड़ा कठिन है चलना सीना तान के।
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दीवाली : हिंदी रुबाइयां
सब ओर ही दीपों का बसेरा देखा,
घनघोर अमावस में सवेरा देखा।
जब डाली अकस्मात नज़र नीचे को,
हर दीप तले मैंने अँधेरा देखा।।
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भिखारी ठाकुर
विषय कुछ और था
शहर कोई और
पर मुड़ गई बात भिखारी ठाकुर की ओर
और वहाँ सब हैरान थे यह जानकर
कि पीते नहीं थे वे
क्योंकि सिर्फ़ वे नाचते थे
और खेलते थे मंच पर वे सारे खेल
जिन्हें हवा खेलती है पानी से
या जीवन खेलता है
मृत्यु के साथ
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अल्लामा प्रभु की कविताएं
हाय! हाय शिव
आपने मुझे जन्म क्यों दिया?
क्या आप मेरी जगह उड़ा नहीं सकते थे
कोई वृक्ष या झाड़ी?
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दीवाली का सामान
हर इक मकां में जला फिर दिया दिवाली का
हर इक तरफ को उजाला हुआ दिवाली का
सभी के दिन में समां भा गया दिवाली का
किसी के दिल को मजा खुश लगा दिवाली का
अजब बहार का है दिन बना दिवाली का।
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