जन-जन ने हैं दीप जलाए
लाखों और हजारों ही
धरती पर आकाश आ गया
सेना लिए सितारों की
छुप गई हर दीपक के नीचे
देखो आज अमावस काली
सुंदर-सुंदर दीपों वाली
झिलमिल आई है दीवाली
...
काव्य
इस श्रेणी के अंतर्गत
झिलमिल आई है दीवाली
एक दीया मस्तिष्क में जलाएं
आजकल हर समय विचारों के झंझावात चलते रहते हैं
सही गलत का नहीं पता कुछ, बस यह यूं ही बढ़ते रहते हैं
कभी किसी बात में होता चिंतन किसी ने मनन
यह यूं ही चलता रहा, समय हर क्षण।
...
काश! मुझे कविता आती
काश! मुझे कविता आती
लिख देता उनको पुस्तक-सा
प्रेम भरा दोहा लिखता
लिख देता उनको मुक्तक-सा।
...
गिरिधर की कुण्डलिया
गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सहावन।
दोऊ को इक रंग, काग सब भए अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर ग्राहक गुन के॥
...
राम
लिखने को कुछ और चला था
स्वतः कलम ने राम लिखा
र पर आ की एक मात्रा
म मिल कर निष्काम लिखा
...
त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
जब भी देखूं, आतप हरता।
मेरे मन में सपने भरता।
जादूगर है, डाले फंदा।
क्या सखि, साजन? ना सखि, चंदा।
...
दोस्त एक भी नहीं जहाँ पर
दोस्त एक भी नहीं जहाँ पर, सौ-सौ दुश्मन जान के,
उस दुनिया में बड़ा कठिन है चलना सीना तान के।
...
दीवाली : हिंदी रुबाइयां
सब ओर ही दीपों का बसेरा देखा,
घनघोर अमावस में सवेरा देखा।
जब डाली अकस्मात नज़र नीचे को,
हर दीप तले मैंने अँधेरा देखा।।
...
कभी दो क़दम.. | ग़ज़ल
कभी दो क़दम, कभी दस क़दम, कभी सौ क़दम भी निकल सके
मेरे साथ उठके चले तो वे, मेरे साथ-साथ न चल सके
...
गज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी
गली-गली में घूमे नसेड़ी दुनिया यहाँ मस्तानी
गज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी।
...
हलीम 'आईना' के दोहे
आज़ादी को लग चुका, घोटालों का रोग।
जिसके जैसे दांत हैं, कर ले वैसा भोग ॥
...
शानदार | क्षणिका
खाना शानदार
रहना शानदार
भाषण शानदार
श्रोता शानदार
बात इतनी थी
तुम थे तमाशबीन
वे थे दुकानदार
...
क्यों दीन-नाथ मुझपै | ग़ज़ल
क्यों दीन-नाथ मुझपै, तुम्हारी दया नहीं ।
आश्रित तेरा नहीं हूं कि तेरी प्रजा नहीं ।।
मेरे तो नाथ कोई तुम्हारे सिवा नहीं ।
माता नहीं है बन्धु नहीं है पिता नहीं ।।
माना कि मेरे पाप बहुत है पै हे प्रभू ।
कुछ उनसे न्यूनतर तो तुम्हारी दया नहीं।।
...
ढोल, गंवार...
मैंने अपनी पत्नी से कहा --
"संत महात्मा कह गए हैं--
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी
ये सब ताड़न के अधिकारी!"
[इन सभी को पीटना चाहिए!]
...
कुछ मुक्तक
सभी को इस ज़माने में सभी हासिल नहीं मिलता
नदी की हर लहर को तो सदा साहिल नहीं मिलता
ये दिलवालो की दुनिया है अजब है दास्तां इसकी
कोई दिल से नहीं मिलता, किसी से दिल नहीं मिलता
...
अल्लामा प्रभु की कविताएं
हाय! हाय शिव
आपने मुझे जन्म क्यों दिया?
क्या आप मेरी जगह उड़ा नहीं सकते थे
कोई वृक्ष या झाड़ी?
...
सोने के हिरन
आधा जीवन जब बीत गया
बनवासी सा गाते-रोते
तब पता चला इस दुनियां में
सोने के हिरन नहीं होते।
...
मुझको सरकार बनाने दो
जो बुढ्ढे खूसट नेता हैं, उनको खड्डे में जाने दो
बस एक बार, बस एक बार मुझको सरकार बनाने दो।
...
आयुर्वेदिक देसी दोहे
रस अनार की कली का, नाक बूंद दो डाल।
खून बहे जो नाक से, बंद होय तत्काल।।
...
राम की जल समाधि
पश्चिम में ढलका सूर्य उठा वंशज सरयू की रेती से,
हारा-हारा, रीता-रीता, निःशब्द धरा, निःशब्द व्योम,
निःशब्द अधर पर रोम-रोम था टेर रहा सीता-सीता
...
दीवाली का सामान
हर इक मकां में जला फिर दिया दिवाली का
हर इक तरफ को उजाला हुआ दिवाली का
सभी के दिन में समां भा गया दिवाली का
किसी के दिल को मजा खुश लगा दिवाली का
अजब बहार का है दिन बना दिवाली का।
...
दीवाली के दीप जले
नई हुई फिर रस्म पुरानी दीवाली के दीप जले
शाम सुहानी रात सुहानी दीवाली के दीप जले
...
वो बचा रहा है गिरा के जो
वो बचा रहा है गिरा के जो, वो अज़ीज़ है या रक़ीब है
न समझ सका उसे आज तक, कि वो कौन है जो अजीब है
...