हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या
रहें आजाद या जग में, हमन दुनिया से यारी क्या
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काव्य
इस श्रेणी के अंतर्गत
हमन है इश्क मस्ताना
हो गई है पीर पर्वत-सी | दुष्यंत कुमार
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
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पथ की बाधाओं के आगे | गीत
पथ की बाधाओं के आगे घुटने टेक दिए
अभी तो आधा पथ चले!
तुम्हें नाव से कहीं अधिक था बाहों पर विश्वास,
क्यों जल के बुलबुले देखकर गति हो गई उदास,
ज्वार मिलेंगे बड़े भंयकर कुछ आगे चलकर--
अभी तो तट के तले तले!
सीमाओं से बाँध नहीं पाता कोई मन को,
सभी दिशाओं में मुड़ना पड़ता है जीवन को,
हो सकता है रेखाओं पर चलना तुम्हें पड़े
अभी तो गलियों से निकले!
शीश पटकने से कम दुख का भार नहीं होगा,
आँसू से पीड़ा का उपसंहार नहीं होगा,
संभव है यौवन ही पानी बनकर बह जाए
अभी तो नयन-नयन पिघले!
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अबू बिन आदम और देवदूत | अनूदित कविता
एक रात अबू बिन आदम, घोर स्वप्न में जाग पड़े।
देखा जब कमरे को अपने, हुए महाशय चकित बड़े॥
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हिंदी देश की शान
एकता की सूचक हिदी भारत माँ की आन है,
कोई माने या न माने हिदी देश की शान है।
भारत माँ का प्राण है
भारत-गौरव गान है।
सैकड़ों हैं बोलियाँ पर हिदी सबकी जान है,
सुंदर सरस लुभावनी ये कोमल कुसुम समान है।
हृदय मिलाने वाली हिदी नित करती उत्थान है,
कोई माने या न माने हिदी सत्य प्रमाण है।
भारत माँ की प्राण है,
भारत-गौरव गान है।
सागर के सम भाव है इसमें रस तो अमृतपान है,
मन को सदा लुभाती हिदी बहुरत्नों की खान है।
भाषा हिदी देश की बिदी, घर ये हिदुस्तान है,
कोई माने या न माने हिदी निज सम्मान है।
भारत माँ की प्राण है,
भारत-गौरव गान है।
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प्रगीत कुँअर के मुक्तक
वो समय कैसा कि जिसमें आज हो पर कल ना हो
वो ही रह सकता है स्थिर हो जो पत्थर जल ना हो
हाथ में लेकर भरा बर्तन ख़ुशी औ ग़म का जब
चल रही हो ज़िंदगी कैसे कोई हलचल ना हो
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हिंदी है भारत की बोली
दो वर्तमान का सत्य सरल,
सुंदर भविष्य के सपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो
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मातृभाषा प्रेम पर भारतेंदु के दोहे
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥
अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन॥
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भारतेन्दु की मुकरियां
सब गुरुजन को बुरो बतावै ।
अपनी खिचड़ी अलग पकावै ।।
भीतर तत्व न झूठी तेजी ।
क्यों सखि सज्जन नहिं अँगरेजी ।।
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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की ग़ज़ल
आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया ।
ऐ फ़लक क्या क्या हमारे दिल में अरमाँ रह गया ॥
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हिंदी-प्रेम
हिंदी-हिंदू-हिंद का, जिनकी रग में रक्त
सत्ता पाकर हो गए, अँगरेज़ी के भक्त
अँगरेज़ी के भक्त, कहाँ तक करें बड़ाई
मुँह पर हिंदी-प्रेम, ह्रदय में अँगरेज़ी छाई
शुभ चिंतक श्रीमान, राष्ट्रभाषा के सच्चे
‘कानवेण्ट' में दाख़िल करा दिए हैं बच्चे
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स्त्रीलिंग पुल्लिंग
काका से कहने लगे ठाकुर ठर्रा सिंह
दाढ़ी स्त्रीलिंग है, ब्लाउज़ है पुल्लिंग
ब्लाउज़ है पुल्लिंग, भयंकर गलती की है
मर्दों के सिर पर टोपी पगड़ी रख दी है
कह काका कवि पुरूष वर्ग की किस्मत खोटी
मिसरानी का जूड़ा, मिसरा जी की चोटी।
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अमर शहीदों को नमन
अमर शहीदों ने धरती पर लहू से हिंदुस्तान लिखा है
भारत माता के सजदे में मेरा देश महान लिखा है।
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आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई? | गीत
आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई?
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