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न्यूजीलैंड की हिंदी पत्रकारिता और हिंदी मीडिया
न्यूजीलैंड की हिंदी पत्रकारिता का अध्याय 1996 में 'भारत-दर्शन' पत्रिका के प्रकाशन से आरम्भ हुआ। 1921 से 90 तक के दशक की ‘न्यूजीलैंड भारतीय पत्रकारिता' के इतिहास का गहन अध्ययन करने के पश्चात पुनः एक हिन्दी लेखक व पत्रकार ने 'भारत-दर्शन' पत्रिका के प्रकाशन व संपादन का बीड़ा उठाया। हिन्दी भाषा का प्रेम व भारतीय समाज की आवश्यकताओं हेतु एक नन्हीं सी पत्रिका का जन्म हुआ जो शीघ्र ही विश्व-पटल पर 'हिंदी पत्रकारिता' का नया इतिहास रचने वाली थी। बिना किसी सरकारी या गैर-सरकारी आर्थिक सहायता के पत्रिका का प्रकाशन यदि असंभव नहीं, तो कठिन अवश्य है लेकिन हिन्दी प्रेमियों के स्नेह ने हर दिन नई ऊर्जा प्रदान की ।
दूसरा अंक आते-आते पत्रिका अत्यंत लोकप्रिय हो चुकी थी। पाठक निरंतर और अधिक सामग्री का अनुरोध करने लगे थे। अतः पत्रिका में 4 और पृष्ठ जोड़े गए। अब पत्रिका का तीसरा अंक 12 पृष्ठ का था।
सभी भारतीयों को एक मंच पर लाया भारत-दर्शन
अगस्त ‘97 आते-आते पत्रिका अत्यधिक लोकप्रिय हो गई थी। भारत-दर्शन की गतिविधियां भी बढ़ गईं थीं। अभी तक यहाँ भारतीय समुदाय बंटा हुआ था। भारत का ‘स्वतंत्रता-दिवस' व ‘गणतंत्र-दिवस' भी मिलजुल कर आयोजित नहीं होता था। 1997 में ‘भारत-दर्शन' ने पहली बार सभी भारतीयों को भारतीय स्वतंत्रता दिवस के 'स्वर्ण जयंती समारोह' में एक मंच प्रदान किया। इससे पहले केवल गुजराती समुदाय ही ‘स्वतंत्रता-दिवस' मनाता था और सारा कार्यक्रम गुजराती में ही होता था। 1997 में न्यूज़ीलैंड में रह रहे सभी समुदाय एक मंच पर आए और समारोह हिंदी में हुआ। इसमें मुख्य अतिथि भारतीय उच्चायुक्त व विशिष्ट अतिथि न्यूज़ीलैंड के रेसरिलेशंस कौंसिलिएटर थे।
अगस्त 1997 में भारत की स्वतंत्रता की स्वर्ण-जयंती व भारत-दर्शन की पहली वर्षगांठ पर
इस अवसर पर भारत-दर्शन का 'स्वतंत्रता-विशेषांक' प्रकाशित किया गया। भारत-दर्शन का यह अंक श्वेत-श्याम न होकर रंगीन था व इसके 16 पृष्ठ थे।
अगस्त 1997 में भारत की स्वतंत्रता की स्वर्ण-जयंती व भारत-दर्शन की पहली वर्षगांठ पर भारत-दर्शन के संपादक 'रोहित कुमार 'हैप्पी' व एशिया डायनामिक टीवी कार्यक्रम के 'भारत जमनादास' भारत-दर्शन का स्वतंत्रता-दिवस विशेषांक प्रदर्शित करते हुए।
इस अवसर पर हिंदी सेवियों व समाज सेवियों का सम्मान किया गया। इस अवसर पर चित्र-कला की प्रदर्शनी लगाई गई जिसे भारतीयों के अतिरिक्त स्थानीय लोगों ने भी सराहा।
इंटरनेट की दुनिया में हिंदी साहित्यिक पत्रकारिता का उदय
भारत-दर्शन की यहाँ तक की यात्रा करते-करते अब भारत-दर्शन का इंटरनेट संस्करण भी निकल चुका था। दिसंबर-जनवरी (1996-97) से 'भारत-दर्शन' का इंटरनेट संस्करण उपलब्ध करवाया गया। इसके साथ ही पत्रिका को 'इंटरनेट पर विश्व की पहली हिन्दी साहित्यिक पत्रिका' होने का गौरव प्राप्त हुआ और विश्वभर में फैले भारतीयों ने 'भारत-दर्शन' की हिन्दी सेवा की सराहना की। इंटरनेट की दुनिया में हिंदी साहित्यिक पत्रकारिता का उदय 'भारत-दर्शन' के रूप में हो चुका था। वर्तमान में भारत-दर्शन हिंदी न्यू मीडिया में अग्रणी है और इस समय इंटरनेट पर सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली ऑनलाइन हिंदी पत्रिका है।
न्यूज़ीलैंड का दीवाली मेला और भारत-दर्शन
पहली बार न्यूजीलैंड में 'दीवाली मेले' का आयोजन 1998 में महात्मा गांधी सेंटर में 'भारत-दर्शन' व एक गैर-भारतीय न्यूजीलैंडर के सह-आयोजन से आरम्भ हुआ जो बाद में इतना प्रसिद्व हुआ कि ऑकलैंड सिटी कौंसिल ने इसके प्रबंधन की जिम्मेवारी स्वयं उठा ली। 'भारत-दर्शन' के इस मेले के आयोजन का ध्येय हिन्दी व अन्य भाषाओं का प्रचार करना था। सांस्कृतिक कार्यक्रम, दीवाली पूजन व स्टाल एक साथ - यह अपनी तरह का अनोखा आयोजन था और इसकी ख़ूब सराहना हुई। हिंदी में बैनर लगाए गए, पोस्टरों में भी हिंदी व अँग्रेज़ी का उपयोग किया गया। अगले वर्ष पुन 1999 में इसका आयोजन महात्मा गांधी सेंटर में हुआ व अगले कुछ वर्षों तक इसका आयोजन महात्मा गांधी सेंटर में होने के पश्चात अन्य एशियन संस्था व सिटी कौंसिल ने इसके प्रबंधन की जिम्मेवारी ले ली।
भारत-दर्शन का ऑनलाइन हिंदी शिक्षक
न्यूज़ीलैंड में 1996-97 में सबसे पहले हिंदी पत्रिका भारत-दर्शन के प्रयास से एक वेब आधारित 'हिंदी-टीचर' का आरम्भ किया गया। यह प्रयास पूर्णतया निजी था। इस प्रोजेक्ट को विश्व-स्तर पर सराहना मिली लेकिन कोई ठोस साथ नहीं मिला। इंटरनेट पर हिंदी सिखाने की पहल भारत-दर्शन ने की। एक ऑनलाइन 'हिंदी टीचर' विकसित किया गया जिसके माध्यम से जिनकी भाषा हिंदी नहीं वे हिंदी सीख सकें। इसके शिक्षण का माध्य अंग्रेज़ी रखा गया ताकि विदेशों में जन्मे बच्चे व विदेशी इसका लाभ उठा सकें। 90 के दशक में यह तकनीक व प्रौद्योगिकी उपलब्ध करवाना अपने आप में एक उपलब्धि थी।
इंटरनेट आधारित ‘हिन्दी-टीचर' विकसित करके भारत-दर्शन ने हिन्दी जगत में एक नया अध्याय जोड़ा। हमारे लिए बडे़ गर्व कि बात है कि आज भारत-दर्शन विश्व के अग्रणी हिन्दी अन्तरजालों ( इंटरनेट साइट ) में से एक है। विश्व हिन्दी मानचित्र पर न्यूजीलैंड का नाम 'भारत-दर्शन' ने अंकित किया है।
भारत-दर्शन का ऑनलाइन ‘हिन्दी-टीचर'
आज न्यूज़ीलैंड में भारत-दर्शन जैसी हिंदी पत्रिका के अतिरिक्त हिंदी रेडियो और टीवी भी है जिनमें रेडियो तराना और अपना एफ एम अग्रणी हैं। हिंदी रेडियो और टीवी अधिकतर मनोरंजन के क्षेत्र तक ही सीमित है किंतु मनोरंजन के इन माध्यमों को आवश्यकतानुसार हिंदी अध्यापन का एक सशक्त माध्यम बनाया जा सकता है। न्यूज़ीलैंड में हर सप्ताह कोई न कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है। हर सप्ताह हिंदी फिल्में प्रदर्शित होती हैं।
औपचारिक रुप से हिन्दी शिक्षण की कोई विशेष व्यवस्था न्यूज़ीलैंड में नहीं है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ऑकलैंड विश्विद्यालय में 'आरम्भिक व मध्यम' स्तर की हिन्दी 'कन्टीन्यु एडि्युकेशन के अंतर्गत पढ़ाई जा रही है। हिन्दी पठन-पाठन का स्तर व माध्यम अव्यवसायिक और स्वैच्छिक रहा है। कुछ संस्थाओं द्वारा अपने स्तर पर हिंदी पढ़ाई जाती है। वेलिंग्टन के हिंदी स्कूल की सुनीता नारायण कई वर्षों से आंशिक रुप से हिंदी पढ़ा रही हैं। वायटाकरे हिंदी स्कूल हैंडरसन व रूपा सचदेव अपने स्तर पर हिंदी पढ़ाती हैं। प्रवीना प्रसाद हिंदी लैंगुएज एंड कल्चर में हिंदी की कक्षाएं लेती हैं। ऑकलैंड का ‘पापाटोएटोए हाई स्कूल' एकमात्र मुख्यधारा का स्कूल है जहाँ हिंदी पढ़ाई जाती है, अनिता बिदेसी यहाँ हिंदी पढ़ाती हैं। इसके अतिरिक्त सुशीला शर्मा भी कई वर्ष तक ऑकलैंड यूनिवर्सिटी की कंटिन्यूइंग एजुकेशन में हिंदी पढ़ाती रही हैं। भारत-दर्शन का ऑनलाइन हिंदी टीचर 1996-97 से उपलब्ध है।
इंटरनेट के माध्यम से हिंदी प्रचार-प्रसार में भारत-दर्शन का ऑनलाइन हिंदी टीचर विशेष योगदान दे सकता है। भारत-दर्शन का प्रयास है कि वह तकनीकी व प्रोद्योगिकी का उपयोग करके हिंदी शिक्षण में भी यथासंभव योगदान दे। विदेशों में सक्रिय भारतीय मीडिया भी इस संदर्भ में बी बी सी व वॉयस ऑव अमेरिका से सीख लेकर, उन्हीं की तरह हिंदी के पाठ विकसित करके उन्हें अपनी वेब साइट व प्रसारण में जोड़ सकता है। बी बी सी और वॉयस ऑव अमेरिका अंग्रेजी के पाठ अपनी वेब साइट पर उपलब्ध करवाने के अतिरिक्त इनका प्रसारण भी करते हैं। इसके साथ ही सभी हिंदी विद्वान/विदुषियों, शिक्षक-प्रशिक्षकों को चाहिए कि वे आगे आयें और हिंदी के लिए काम करने वालों की केवल आलोचना करके या त्रुटियां निकालकर ही अपनी भूमिका पूर्ण न समझें बल्कि हिंदी प्रचार में काम करने वालों को अपना सकारात्मक योगदान भी दें। हिंदी को केवल भाषणबाज़ी और नारेबाज़ी की नहीं सिपाहियों की आवश्यकता है।
भारत-दर्शन की भावी योजनाएं
भारत-दर्शन का प्रयास है कि उच्च-स्तरीय लेखन व दुर्लभ हिंदी साहित्य को ऑनलाइन उपलब्ध करवाया जाए। इसके लिए भारत-दर्शन पिछले 2 वर्षों से अन्य दो वेब साइट पर कार्य कर रहा है जिनमें ‘कहत-कबीर' व साहित्य-दर्शन सम्मिलित है।
भारत-दर्शन की कबीर पर नई विकसित हो रही साइट - http://www.kahatkabir.com/
कहत-कबीर पर कबीर का समग्र साहित्य प्रकाशित करने की योजना है। इसमें मुद्रित सामग्री, चित्र व वीडियो सम्मिलित होंगे। कबीर की जीवनी, उनके दोहे, भजन व प्रचलित किंवदंतियां प्रकाशित की जा चुकी है। हम निरंतर इसमें और सामग्री सम्मिलित कर रहे हैं।
साहित्य-दर्शन में प्रवासी भारतीयों के साहित्य को विशेष रूप से सम्मिलित करने का प्रयास किया जाएगा। अभी तक फीजी, मॉरिशस, सूरीनाम इत्यादि देशों का समुचित साहित्य प्रकाश में नहीं आया है। हमारा प्रयास रहेगा कि हम इन्हें समुचित स्थान दें ताकि इन देशों का साहित्य भी पाठकों तक पहुंचे।
पिछले कुछ वर्षों से भारत-दर्शन केवल ऑनलाइन पत्रिका के रूप में प्रतिष्ठित है। इसका मुद्रित संस्करण बंद कर दिया गया है। हमारी योजना है भारत-दर्शन में प्रकाशित सामग्री में से श्रेष्ठ चयनित सामग्री का वार्षिक प्रकाशन किया जाए। यथासंभव इसपर कार्य किया जाएगा।
ऑनलाइन हिंदी टंकण अभी भी सरल-सुलभ नहीं है। बहुत से लोग अभी भी प्रश्न करते हैं कि हिंदी में कैसे टाइप करें? कई बार रचनाएं दूसरे 'फांट' में भेज दी जाती है। हमारा प्रयास है कि सभी प्रचलित हिंदी फांटस का ऑनलाइन परिवर्तक उपलब्ध करवाएं और ऑनलाइन हिंदी टंकण सुविधा दे सकें ताकि पाठक तुरत टाइप करके ऑनलाइन सामग्री भेज सकें।
भारत-दर्शन ने इंटरनेट के आरम्भिक दिनों में 'भारत-दर्शन' फांट विकसित किया था और इसे निशुल्क न्यूज़ीलैंड में वितरित किया था। अब समय की मांग है कि यूनिकोड हिंदी टंकण भी जनसाधारण की पहुंच में हो और वह इतना सरल हो कि बच्चे भी उसका उपयोग कर सकें। इसपर काम चल रहा है और आगामी वर्ष तक हम यह सुविधा उपलब्ध करवा पाएंगे।
ऑनलाइन पुस्तक भंडार - विश्व भर में बसे हिंदी प्रेमियों को सस्ती दरों पर पुस्तकें व ई-पुस्तकें उपलब्ध करवाने की योजना पर काम किया जा रहा है जिससे हिंदी का प्रचार और तेज़ी से हो सके। यदि कोई साहित्यकार चाहेगा कि वे अपनी पुस्तकें भारत-दर्शन के माध्यम से पाठकों को निशुल्क उपलब्ध करवाना चाहते हैं तो यह सुविधा भी उपलब्ध करवाई जाएगी।
ऑनलाइन हिंदी साहित्यकार चित्र-दीर्घा - डिजिटल चित्र, पारंपरिक चित्र व छायाचित्रों की एक दीर्घा का विकास जिसमें सभी हिंदी साहित्यकारों के चित्र देखे जा सकें, हमारी भावी योजनाओं में सम्मिलित है।
भारत-दर्शन की भावी योजनाओं के माध्यम से हिंदी प्रचार-प्रसार में यदि आप हमारे साथ जुड़ना चाहें तो आपका स्वागत है। अब आवश्यकता है कि हम निजी प्रयासों को एक नया रूप देते हुए संयुक्त प्रयास आरंभ करें। वैश्विक-ग्राम (Global Village) के आज के इस समय में यह सब संभव है। हम सबके संयुक्त प्रयासों से ही हिंदी आगे बढ़ेगी।
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रोहित कुमार 'हैप्पी'
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