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मरण काले
निराला के देहांत के पश्चात् उनके मृत शरीर का चित्र देखने पर हरिवंशराय बच्चन की लिखी कविता -
मरा
मैंने गरुड़ देखा,
गगन का अभिमान,
धराशायी,धूलि धूसर, म्लान!
...
साथी, घर-घर आज दिवाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
फैल गयी दीपों की माला
मंदिर-मंदिर में उजियाला,
किंतु हमारे घर का, देखो, दर काला, दीवारें काली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
हास उमंग हृदय में भर-भर
घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर,
किंतु हमारे घर के अंदर डरा हुआ सूनापन खाली!
...
दो बजनिए | कविता
"हमारी तो कभी शादी ही न हुई,
न कभी बारात सजी,
न कभी दूल्हन आई,
न घर पर बधाई बजी,
हम तो इस जीवन में क्वांरे ही रह गए।"
दूल्हन को साथ लिए लौटी बारात को
दूल्हे के घर पर लगाकर,
एक बार पूरे जोश, पूरे जोर-शोर से
...
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
है कहाँ वह आग जो मुझको जलाए,
है कहाँ वह ज्वाल मेरे पास आए,
रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।
तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,
नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी,
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स्वतंत्रता दिवस
आज से आजाद अपना देश फिर से!
ध्यान बापू का प्रथम मैंने किया है,
क्योंकि मुर्दों में उन्होंने भर दिया है
नव्य जीवन का नया उन्मेष फिर से!
आज से आजाद अपना देश फिर से!
दासता की रात में जो खो गये थे,
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नव वर्ष
नव वर्ष
हर्ष नव
जीवन उत्कर्ष नव
नव उमंग
नव तरंग
जीवन का नव प्रसंग
नवल चाह
नवल राह
जीवन का नव प्रवाह
गीत नवल
प्रीति नवल
जीवन की रीति नवल
जीवन की नीति नवल
जीवन की जीत नवल
-हरिवंशराय बच्चन
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दीपक जलाना कब मना है
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों, को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
बादलों के अश्रु से धोया गया नभनील नीलम
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कुछ कर न सका
मैं जीवन में कुछ कर न सका
जग में अंधियारा छाया था,
मैं ज्वाला ले कर आया था,
मैंने जलकर दी आयु बिता, पर जगती का तम हर न सका ।
मैं जीवन में कुछ कर न सका !
बीता अवसर क्या आएगा,
मन जीवन-भर पछताएगा,
मरना तो होगा ही मुझको, जब मरना था तब मर न सका ।
मैं जीवन में कुछ कर न सका !
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