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जन्म-दिन
यूँ तो जन्म-दिन मैं यूँ भी नहीं मनाता
पर इस बार...
जन्म-दिन बहुत रुलाएगा
जन्म-दिन पर 'माँ' बहुत याद आएगी
चूँकि...
इस बार...
'जन्म-दिन मुबारक' वाली चिरपरिचित आवाज नहीं सुन पाएगी...
पर...जन्म-दिन के आस-पास या शायद उसी रात...
...
रिश्ते
कुछ खून से बने हुए
कुछ आप हैं चुने हुए
और कुछ...
हमने बचाए हुए हैं
टूटने-बिखरने को हैं..
बस यूं समझो..
दीवार पर टंगें कैलंडर की तरह,
सजाए हुए हैं।
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मदर'स डे
'आप 'मदर'स डे' को क्या करते हैं?'
'कुछ नहीं।'
'अरे?' मेरे ग़ैर-भारतीय मित्र ने आश्चर्य प्रकट किया।
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लायक बच्चे
अकेली माँ ने उन पाँच बच्चों की परवरिश करके उन्हें लायक बनाया। पांचों अपने पाँवों पर खड़े थे।
उनको खड़ा करते-करते माँ बैठ गई थी पर उसे खड़ा करने को कोई नहीं था। माँ ने एक आधा नालायक़ पैदा किया होता तो शायद आज साथ होता पर लायक बच्चे तो बहुत व्यस्त हो चुके थे।
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रोहित कुमार 'हैप्पी' के दोहे
रोहित कुमार 'हैप्पी' के दोहों का संकलन।
दोहा, मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में जगण (। ऽ।) नहीं होना चाहिए। सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा होना आवश्यक माना गया है।
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सर एडमंड हिलेरी से साक्षात्कार
[सर एडमंड हिलेरी ने 29 मई 1953 को एवरेस्ट विजय की थी। आज वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन 2007 को उनसे हुई बातचीत के अंश आपके लिए यहाँ पुन: प्रकाशित किए जा रहे है]
सर एडमंड हिलेरी निसंदेह 87 वर्षीय वृद्ध हो गए हैं फिर भी उनका हौंसला आज भी माउंट एवरेस्ट की तरह अडिग है। शेरपा तेनज़िंग नोर्गे के साथ 1953 में एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाले न्यूज़ीलैंड निवासी एडमंड हिलेरी का कदम 8850 मीटर ऊँचे एवरेस्ट पर किसी मानव का पहला कदम माना जाता है। हिलेरी सारी दुनिया के हीरो हैं परन्तु वे स्वयं को किसी प्रकार से हीरो न मानकर एक साधारण व्यक्ति मानते हैं।
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मायने रखता है ज़िंदगी में
किसी का आना
किसी का चले जाना
मायने रखता है ज़िंदगी में।
किसी का जगना
किसी का सोना
मायने रखता है ज़िंदगी में।
किसी की सुनना
किसी को सुनाना
मायने रखता है ज़िंदगी में।
किसी का हँसाना
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एक ऐसी भी घड़ी आती है | ग़ज़ल
एक ऐसी भी घड़ी आती है
जिस्म से रूह बिछुड़ जाती है
अब यहाँ कैसे रोशनी होती
ना कोई दीया, न कोई बाती है
हो लिखी जिनके मुकद्दर में ख़िज़ाँ
कोई रितु उन्हें ना भाती है
ना कोई रूत ना भाये है मौसम
चांदनी रात दिल दुखाती है
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स्वतंत्रता-दिवस | लघु-कथा
महानगर का एक उच्च-मध्यम वर्गीय परिवार।
"अरी महरी, कल तुम सारा दिन हमारे यहां काम कर लेना। मुझे कल 'इंडिपेंडस डे' के कई कार्यक्रमों में जाना है।"
"पर...मेमसाब!"
"पर..क्या?"
"मेमसाब, मुझे भी कल बच्चों के साथ स्वतंत्रता दिवस देखने उनके स्कूल जाना है। मैं तो कल की छुट्टी माँगने वाली थी।"
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