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‘हम कौन थे, क्या हो गए---!’
किसी समय हिंदी पत्रकारिता आदर्श और नैतिक मूल्यों से बंधी हुई थी। पत्रकारिता को व्यवसाय नहीं, ‘धर्म' समझा जाता था। कभी इस देश में महावीर प्रसाद द्विवेदी, गणेशशंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, महात्मा गांधी, प्रेमचंद और बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन' जैसे लोग पत्रकारिता से जुड़े हुए थे। प्रभाष जोशी सरीखे पत्रकार तो अभी हाल ही तक पत्रकारिता का धर्म निभाते रहे हैं। कई पत्रकारों के सम्मान में कवियों ने यहाँ तक लिखा है--
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हू केयर्स?
अगस्त का महीना विदेश में बसे भारतीयों के लिए बड़ा व्यस्त समय होता है। कम से कम हमारे यहां तो ऐसा ही होता है। स्वतंत्रता दिवस की तैयारी पूरे जोरों पर रहती है। अनेक संस्थाएं स्वतंत्रता दिवस का आयोजन करती हैं। नहीं, मैं गलत लिख गया! दरअसल, स्वतंत्रता दिवस नहीं, ‘इंडिपेंडेंस डे'! 'स्वतंत्रता-दिवस' तो न कहीं सुनने को मिलता, न कहीं पढ़ने को। मुझे तलख़ी आई तो साथ वाले ने वेद-वाणी उवाची, ‘हू केयर्स?' यही तो कठिनाई है कि आप ‘केयर' ही तो नहीं करते! ...और करते भी हैं तो जब आप पर आन पड़े, तभी करते हैं!
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गांधीजी को महात्मा की उपाधि किसने दी?
गांधीजी को भारत ही नहीं पूरा विश्व ‘महात्मा गांधी' कहता है। पिछले कई वर्षों में यह प्रश्न बार-बार पूछा गया है कि गांधी जी को ‘महात्मा' की उपाधि किसने दी। उन्हें महात्मा की उपाधि ‘किसने, कब और कहाँ दी' इस विषय में कई लोगों ने सूचना के अधिकार (RTI) के अंतर्गत भी यह प्रश्न उठाया।
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जानिए, भारत के पहले एम्स की स्थापना कैसे हुई
क्या आप जानते है कि दिल्ली का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स /AIIMS) कैसे बना था? इसकी स्थापना में न्यूज़ीलैंड की विशेष भूमिका थी।
इसकी आधारशिला 1952 में रखी गयी और इसका सृजन 1956 में संसद के एक अधिनियम के माध्यम से एक स्वायत्त संस्थान के रूप में किया गया।
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बदलते विश्व में बदलता भारत
कहा जाता है, ‘परिवर्तन सृष्टि का नियम है।‘ परिवर्तन और अनित्यता को समझ लेना ही ज्ञान प्राप्त करना है। जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक क्या हम परिवर्तन का ही मार्ग तय करते हैं? या कहें कि हम एक नियत प्रवृत्ति के साक्षी बनते हैं कि इस संसार में सब कुछ नश्वर और क्षणभंगुर है। जो पैदा हुआ, वह मरता भी है। एक बालक युवा होता है, प्रौढ़ होता है, फिर वृद्ध जीवन जीकर मृत्यु को प्राप्त होता है। यही जीवन है।
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आज की कहानी | इतिहास में आज का दिन
यहाँ इतिहास में आज के दिन से संबंधित कथा-कहानी, किस्से व प्रसंग प्रकाशित किए जाएंगे। यह कथा-कहानी, किस्से या प्रसंग रोचक व ज्ञानवर्धक होंगे।
...हिंदी के दिलदार सिपाही
हिंदी के दिलदार सिपाही के अतर्गत हम ऐसे हिंदी सेवियों की जानकारी संकलित कर रहे हैं, जिन्होंने निस्वार्थ भाव से हिंदी की सेवा की। इनमें अनेक विदेशी भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हिंदी से अटूट स्नेह किया। आज हिंदी इनपर गर्व करती है।
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हमें हिंदी से प्यार है
हिंदी से प्यार है?
अभी कुछ मित्रों ने 'हिंदी से प्यार है' नामक एक समूह की स्थापना की है। अच्छा विचार है। उनकी कई योजनाएँ हैं। आप भी जुड़ना चाहें तो जुड़ सकते हैं। 'भारत-दर्शन' से तो आप जुड़े ही हुए हैं। आपके स्नेह के लिए आभार।
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गिनती
आपको नहीं लगता कि
गिनती अधूरी है?
'गिनती' में शून्य तो आप
गिनते ही नहीं।
वैसे 'शून्य' के बिना
'गिनती' गिनती नहीं।
- रोहित कुमार 'हैप्पी'
ई-मेल: editor@bharatdarshan.co.nz
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हिंदी
हिंदी उनकी राजनीति है
हिंदी इनका हथियार है
हिंदी कईयों का औज़ार है।
हिंदी उनके लिए भाषण है
हिंदी इनके लिए जलसा है
हिंदी कईयों का नारा है।
जरा गिनो तो
अनगनित
हिंदीवालों में से
कितनों को हिंदी से प्यार है?
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