काव्य |
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जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।
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आज़ादी - हफ़ीज़ जालंधरी |
शेरों को आज़ादी है, आज़ादी के पाबंद रहें, जिसको चाहें चीरें-फाड़ें, खाएं-पीएं आनंद रहें। ...
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धुंध है घर में उजाला लाइए - ऋषभदेव शर्मा |
धुंध है घर में उजाला लाइए रोशनी का इक दुशाला लाइए
केचुओं की भीड़ आँगन में बढ़ी आदमी अब रीढ़ वाला लाइए
जम गया है मोम सारी देह में गर्म फौलादी निवाला लाइए
जूझने का जुल्म से संकल्प दे आज ऐसी पाठशाला लाइए
- डॉ.ऋषभदेव शर्मा (तरकश, 1996) ...
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वन्देमातरम् | राष्ट्रीय गीत - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्! सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्, शस्यश्यामलाम्, मातरम्! वंदे मातरम्! शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्, फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्, सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्, सुखदाम् वरदाम्, मातरम्! वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥ ...
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वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
'वन्देमातरम्' बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा संस्कृत में रचा गया; यह स्वतंत्रता की लड़ाई में भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत था। इसका स्थान हमारे राष्ट्र गान, 'जन गण मन...' के बराबर है। इसे पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के सत्र में गाया गया था। ...
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बढ़े चलो! बढ़े चलो! - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi |
न हाथ एक शस्त्र हो न हाथ एक अस्त्र हो, न अन्न, नीर, वस्त्र हो, हटो नहीं, डटो वहीं, बढ़े चलो! बढ़े चलो! ...
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गरमागरम थपेड़े लू के - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) |
गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है, इतनी गरमी कभी न देखी, ऐसा पहली बार हुआ है। नींबू - पानी, ठंडा - बंडा, ठंडी बोतल डरी - डरी है। चारों ओर बबंडर उठते, आँधी चलती धूल भरी है। नहीं भाड़ में सीरा भैया, भट्ठी-सा संसार हुआ है, गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है। आते - जाते आतंकी से, सब अपना मुँह ढ़ाँप रहे हैं। बिजली आती-जाती रहती, एसी, कूलर काँप रहे हैं। शिमला नैनीताल चलें अब,मन में यही विचार हुआ है, गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है। अभी सुना भू-कम्प हुआ है, और सुनामी सागर तल पर। दूर-दूर तक दिखे न राहत, आफत की आहट है भू पर। बन्द द्वार कर घर में बैठो, जीना ही दुश्वार हुआ है, गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है। बादल फटा, बहे घर द्वारे, नगर-नगर में पानी-पानी। सृष्टि-सन्तुलन अस्त व्यस्त है, ये सब कुछ अपनी नादानी। मानव-मन पागल है कितना,समझाना बेकार हुआ है, गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है। ...
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नाग की बाँबी खुली है आइए साहब - ऋषभदेव शर्मा |
नाग की बाँबी खुली है आइए साहब भर कटोरा दूध का भी लाइए साहब
रोटियों की फ़िक्र क्या है? कुर्सियों से लो गोलियाँ बँटने लगी हैं खाइए साहब
टोपियों के हर महल के द्वार छोटे हैं और झुककर और झुककर जाइए साहब
मानते हैं उम्र सारी हो गई रोते गीत उनके ही करम के गाइए साहब ...
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हैं चुनाव नजदीक सुनो भइ साधो - ऋषभदेव शर्मा |
हैं चुनाव नजदीक, सुनो भइ साधो नेता माँगें भीख, सुनो भइ साधो गंगाजल का पात्र, आज सिर धारें कल थूकेंगे पीक, सुनो भइ साधो ...
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माँ - दिविक रमेश |
रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे दूध बिलोने से पहले माँ चक्की पीसती, और मैं घुमेड़े में आराम से सोता। ...
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माँ गाँव में है - दिविक रमेश |
चाहता था आ बसे माँ भी यहाँ, इस शहर में। ...
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अमिता शर्मा की दो क्षणिकाएं - अमिता शर्मा |
सांप
मीठा बनकर जब भी कोई डसता है तो... जाने क्यूं ! सांप पर मुझे बहुत प्यार आता है। ...
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राखी की चुनौती | सुभद्रा कुमारी चौहान - सुभद्रा कुमारी |
बहिन आज फूली समाती न मन में । तड़ित आज फूली समाती न घन में ।। घटा है न झूली समाती गगन में । लता आज फूली समाती न बन में ।। ...
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स्वतंत्रता का नमूना - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
बिना टिकिट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर जहाँ ‘मूड' आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर खींच लई ज़ंजीर, बने गुंडों के नक्कू पकड़ें टी.टी., गार्ड, उन्हें दिखलाते चक्कू गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार बढ़ा दिन-दूना प्रजातंत्र की स्वतंत्रता का देख नमूना ...
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वीरांगना - केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal |
मैंने उसको जब-जब देखा, लोहा देखा। लोहे जैसा तपते देखा, गलते देखा, ढलते देखा मैंने उसको गोली जैसा चलते देखा। ...
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देश - शेरजंग गर्ग |
ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश संसद, सड़कों, आयोगों का नाम नहीं होता है देश ...
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राखी | कविता - सुभद्रा कुमारी |
भैया कृष्ण ! भेजती हूँ मैं राखी अपनी, यह लो आज । कई बार जिसको भेजा है सजा-सजाकर नूतन साज ।। ...
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देश भक्ति कविताएं - भारत-दर्शन संकलन |
देश-भक्ति कविताएं
यहां देश-प्रेम, देश-भक्ति व राष्ट्रीय काव्य संग्रहित किया गया है। ...
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माँ | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय |
इस धरती पर अपने शहर में मैं एक उपेक्षित उपन्यास के बीच में एक छोटे-से शब्द-सा आया था वह उपन्यास एक ऊँचा पहाड़ था मैं जिसकी तलहटी में बसा एक छोटा-सा गाँव था वह उपन्यास एक लंबी नदी था मैं जिसके बीच में स्थित एक सिमटा हुआ द्वीप था वह उपन्यास पूजा के समय बजता हुआ एक ओजस्वी शंख था मैं जिसकी ध्वनि-तरंग का हज़ारवाँ हिस्सा था हालाँकि वह उपन्यास विधाता की लेखनी से उपजी एक सशक्त रचना थी आलोचकों ने उसे कभी नहीं सराहा जीवन के इतिहास में उसका उल्लेख तक नहीं हुआ आख़िर क्या वजह है कि हम और आप जिन महान् उपन्यासों के शब्द बनकर इस धरती पर आए उन उपन्यासों को कभी कोई पुरस्कार नहीं मिला ? ...
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प्राण वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
हम भारतीयों का सदा है, प्राण वन्देमातरम्। हम भूल सकते है नही शुभ तान वन्देमातरम्॥ ...
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छीन सकती है नहीं सरकार वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
छीन सकती है नहीं सरकार वन्देमातरम् । हम गरीबों के गले का हार वन्देमातरन् ॥१॥ ...
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शब्द वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
फ़ैला जहाँ में शोर मित्रो! शब्द वन्देमातरम्। हिंद हो या मुसलमान सब कहते वन्देमातरम्॥ ...
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यह दिया बुझे नहीं - गोपाल सिंह ‘नेपाली’ |
घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो आज द्वार-द्वार पर, यह दिया बुझे नहीं यह निशीथ का दिया, ला रहा विहान है ...
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कबीर दोहे -4 - कबीरदास | Kabirdas |
समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय । मैं खींचत हूँ आपके, तू चला जमपुर जाए ॥ 51 ॥ ...
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मन्त्र वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
हर घड़ी हर बार हो हर ठाम वन्द्देमातरम्। हर दम हमेशा बोलिये प्रिय मन्त्र वन्देमातरम्॥ ...
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कर्मवीर - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं रह भरोसे भाग्य के दुःख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले । आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं । जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए । व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं । ...
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घोटाला - गौरीशंकर मधुकर |
पिछले साल करोड़ों का हुआ घोटाला घोटाले में फंस गया मंत्री जी का साला विपक्ष ने भी इस मामले को खूब उछाला तब मंत्रीजी ने सरल-सुगम रास्ता निकाला विपक्षी दल के नेता के पुत्र से करवा दी साली की सगाई इसलिए सच्चाई आज तक सामने नहीं आई कोई क्या के लेगा इनका जब हैं, चोर-चोर सभी मौसेरे भाई।
- गौरीशंकर मधुकर सुकीर्ति प्रकाशन ...
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सफलता - वंदना |
ओ सफलते! आ मुझे अपना बना हूँ मैं व्याकुल तुझको पाने के लिए। मेरा हर पल बन गया चाहत तेरी अब तो दुभर हो गया जीना मेरा। ...
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स्वतंत्रता का दीपक - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali |
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भारत न रह सकेगा ... - शहीद रामप्रसाद बिस्मिल |
भारत न रह सकेगा हरगिज गुलामख़ाना। आज़ाद होगा, होगा, आता है वह जमाना।। ...
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मेरा धन है स्वाधीन कलम - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali |
राजा बैठे सिंहासन पर, यह ताजों पर आसीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम जिसने तलवार शिवा को दी रोशनी उधार दिवा को दी पतवार थमा दी लहरों को ख़ंजर की धार हवा को दी अग-जग के उसी विधाता ने, कर दी मेरे आधीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम रस-गंगा लहरा देती है मस्ती-ध्वज फहरा देती है चालीस करोड़ों की भोली किस्मत पर पहरा देती है संग्राम-क्रांति का बिगुल यही है, यही प्यार की बीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम कोई जनता को क्या लूटे कोई दुखियों पर क्या टूटे कोई भी लाख प्रचार करे सच्चा बनकर झूठे-झूठे अनमोल सत्य का रत्नहार, लाती चोरों से छीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम बस मेरे पास हृदय-भर है यह भी जग को न्योछावर है लिखता हूँ तो मेरे आगे सारा ब्रह्मांड विषय-भर है रँगती चलती संसार-पटी, यह सपनों की रंगीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम लिखता हूँ अपनी मरज़ी से बचता हूँ क़ैंची-दर्ज़ी से आदत न रही कुछ लिखने की निंदा-वंदन ख़ुदग़र्ज़ी से कोई छेड़े तो तन जाती, बन जाती है संगीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम तुझ-सा लहरों में बह लेता तो मैं भी सत्ता गह लेता ईमान बेचता चलता तो मैं भी महलों में रह लेता हर दिल पर झुकती चली मगर, आँसू वाली नमकीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम ...
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दुर्योधन सा सिंहासन है मिला - प्रियांशु शेखर |
मेरे अधिकार तो छीन लिए तुमने मेरे जैसा हुनर कहाँ से लाओगे? बोलो साहस इतना तुम, भला कहाँ से पाओगे! दुर्योधन सा सिंहासन है मिला युद्धिष्ठर से पूजनीय तुम कैसे कहलाओगे? ...
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नादानी - डॉ. ऋषिपाल भारद्धाज |
आज करेंगे हम नादानी मौसम भी है पानी पानी चली हवा मादक अलबेली कलियों से करती अठखेली चन्दन का वन महक उठा है गमक उठी है रात सुहानी आज करेंगे … चंचल है नदिया की धारा टूट चुका है आज किनारा खुला निमंत्रण देती हमको लहरों की अलमस्त रवानी आज करेंगे हम नादानी आज करेंगे हम नादानी ...
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बंदगी के सिवा ना हमें कुछ गंवारा हुआ - रामकिशोर उपाध्याय |
बंदगी के सिवा ना हमें कुछ गंवारा हुआ आदमी ही सदा आदमी का सहारा हुआ
बिक रहे है सभी क्या इमां क्या मुहब्बत यहाँ किसे अपना कहे,रब तलक ना हमारा हुआ
अब हवा में नमी भी दिखाने लगी है असर क्या किसी आँख के भीगने का इशारा हुआ
आ गए बेखुदी में कहाँ हम नही जानते रह गई प्यास आधी नदी नीर खारा हुआ
शाख सारी हरी हो गई ,फूल खिलने लगे यूँ लगा प्यार उनको किसी से दुबारा हुआ ...
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सरफ़रोशी की तमन्ना - पं० रामप्रसाद बिस्मिल |
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है॥ ...
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यमराज से मुलाक़ात - मनीष सिंह |
एक बार रास्ते में मुझे मिल गए यमराज , और बोले ,"बेटा ! तुम्हारे पाप के घड़ों का ड्रम भर गया है आज।" मैं बोला , "प्रभु ! मैं तो जलेबी की तरह सीधा हूँ , क्यों मेरी शराफत पर ऊँगली उठा रहे हैं। ...
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सुनीति | कविता - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri |
निज गौरव को जान आत्मआदर का करना निजता की की पहिचान, आत्मसंयम पर चलना ये ही तीनो उच्च शक्ति, वैभव दिलवाते, जीवन किन्तु न डाल शक्ति वैभव के खाते । (आ जाते ये सदा आप ही बिना बुलाए ।) चतुराई की परख यहाँ-परिणाम न गिनकर, जीवन को नि:शक चलाना सत्य धर्म पर, जो जीवन का मन्त्र उसी हर निर्भय चलना, उचित उचित है यही मान कर समुचित ही करना, यो ही परमानंद भले लोगों ने पाए ।। ...
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तख्त बदला ताज बदला, आम आदमी का आज न बदला! - आवेश हिन्दुस्तानी |
महाराष्ट्र में धरती के पाँच लालों ने की, आर्थिक तंगीवश खुदकुशी, छत्तीसगड में 8 महिलाओं की सरकारी शिविर लापरवाही ने जान ली ! राजस्थान में पचास साल की महिला को सरेआम निर्वस्त्र घुमाया, अच्छे दिनों के सपनों ने हमें किस हकीकत में ला पहुँचाया ? तख्त बदला ताज बदला, आम आदमी का आज न बदला !
एम्स में एक ने बुलन्द की थी जिसके विरुद्ध ईमान की आवाज, उसी के हिमायती को पहनाया गया स्वास्थ्य-मंत्री का ताज, अर्थात ईमानदार से लिया ही जायेगा ईमानदारी का बदला, तख्त बदला ताज बदला पर आम आदमी का आज न बदला ।
राजाओं के राज की तरह आज भी एक फैसला लिया गया, नये मंत्री द्वारा रेलकर्मियों को इनाम उद्घोषित किया गया, जो रेलकर्मी रेल क्रौसिंग प्रकल्प में भूमिका निभायेगा, उसे पाँच लाख का नकद इनाम दिया जायेगा । रेलकर्मी सरकारी सेवा में होने से पहले ही सुखी सम्पन्न है, असंगठित मजदूर, मजबूर किसान इन फैसलों से मरणासन्न है ! तख्त बदला ताज बदला, आम आदमी का आज न बदला!
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सारे जहाँ से अच्छा - इक़बाल |
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा। हम बुलबुलें हैं इसकी वह गुलिस्तां हमारा ॥ ...
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सुबह-सवेरे - राजबीर देसवाल |
किरणों की अंगड़ाई जैसे पौ यूं फट फट आई जैसे रात की चीं-चीं चुप्पी साधी भोर भी यूं बौराई जैसे पाखी शोर मचाने वाले उनकी तो बन आई जैसे हवा बहे हौले-हौले से अभी नई हो आई जैसे रात का यौवन भाया उसको कली फूल बन आई जैसे ओस की बूँदें मोती बनकर तडके दूध-नहाई जैसे रात के भारी कठिन पलों की भोर में हुई रिहाई जैसे जैसी मैंने आँखों देखीं वैसी तुम्हे बताई जैसे
-राजबीर देसवाल ...
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जन्म-दिन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
यूँ तो जन्म-दिन मैं यूँ भी नहीं मनाता पर इस बार... जन्म-दिन बहुत रुलाएगा जन्म-दिन पर 'माँ' बहुत याद आएगी चूँकि... इस बार... 'जन्म-दिन मुबारक' वाली चिरपरिचित आवाज नहीं सुन पाएगी... पर...जन्म-दिन के आस-पास या शायद उसी रात... वो ज़रूर सपने में आएगी... फिर... 'जन्म-दिन मुबारिक' कह जाएगी इस बार मैं हँसता हुआ न बोल पाऊंगा... आँख खुल जाएगी... 'क्या हुआ?' बीवी पूछेगी और... उत्तर में मेरी आँख भर जाएगी। [16 जून 2013 को माँ छोड़ कर जो चल दी] ...
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रिश्ते - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
कुछ खून से बने हुए कुछ आप हैं चुने हुए और कुछ... हमने बचाए हुए हैं टूटने-बिखरने को हैं.. बस यूं समझो.. दीवार पर टंगें कैलंडर की तरह, सजाए हुए हैं। ...
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अविरल-गंगा - रूपेश बनारसी |
मैं सुरसरि बहती कल-कल थी इस उथल-पुथल में विकल हुई ...
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उसे यह फ़िक्र है हरदम - भगत सिंह |
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हम आज भी तुम्हारे... - भारत भूषण |
हम आज भी तुम्हारे तुम आज भी पराये, सौ बार आँख रोई सौ बार याद आये । इतना ही याद है अब वह प्यार का ज़माना, कुछ आँख छलछलाई कुछ ओंठ मुसकराये । मुसकान लुट गई है तुम सामने न आना, डर है कि ज़िन्दगी से ये दर्द लुट न जाए । ...
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न इतने पास आ जाना .. - भारत भूषण |
न इतने पास आ जाना मिलन भी भार हो जाये, न इतने दूर हो जाना कि जीवन भर न मिल पाऊँ! ...
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आत्म-दर्शन - श्रीकृष्ण सरल |
चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर उत्ताप हूँ मैं, फूटते ज्वाला-मुखी-सा, क्रांति का उद्घोष हूँ मैं। कोश जख्मों का, लगे इतिहास के जो वक्ष पर है, चीखते प्रतिरोध का जलता हुआ आक्रोश हूँ मैं। ...
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कौमी गीत - अजीमुल्ला |
हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा ये है हमारी मिल्कियत, हिंदुस्तान हमारा इसकी रूहानियत से, रोशन है जग सारा कितनी कदीम, कितनी नईम, सब दुनिया से न्यारा करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमुन की धारा ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा इसकी खाने उगल रहीं, सोना, हीरा, पारा इसकी शान शौकत का दुनिया में जयकारा आया फिरंगी दूर से, एेसा मंतर मारा लूटा दोनों हाथों से, प्यारा वतन हमारा आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन ललकारा तोड़ो, गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा हिन्दू मुसलमाँ सिख हमारा, भाई भाई प्यारा यह है आज़ादी का झंडा, इसे सलाम हमारा ॥
-- अजीमुल्ला ...
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भारतवर्ष - श्रीधर पाठक |
जय जय प्यारा भारत देश। जय जय प्यारा जग से न्यारा, शोभित सारा देश हमारा। जगत-मुकुट जगदीश-दुलारा, जय सौभाग्य-सुदेश॥ जय जय प्यारा भारत देश। ...
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मरना होगा | कविता - जगन्नाथ प्रसाद 'अरोड़ा' |
कट कट के मरना होगा।
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स्वतंत्रता दिवस की पुकार - अटल बिहारी वाजपेयी |
पन्द्रह अगस्त का दिन कहता - आज़ादी अभी अधूरी है। सपने सच होने बाक़ी हैं, राखी की शपथ न पूरी है॥ ...
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खूनी पर्चा - जनकवि वंशीधर शुक्ल |
अमर भूमि से प्रकट हुआ हूं, मर-मर अमर कहाऊंगा, जब तक तुझको मिटा न लूंगा, चैन न किंचित पाऊंगा। तुम हो जालिम दगाबाज, मक्कार, सितमगर, अय्यारे, डाकू, चोर, गिरहकट, रहजन, जाहिल, कौमी गद्दारे, खूंगर तोते चश्म, हरामी, नाबकार और बदकारे, दोजख के कुत्ते खुदगर्जी, नीच जालिमों हत्यारे, अब तेरी फरेबबाजी से रंच न दहशत खाऊंगा, जब तक तुझको...। तुम्हीं हिंद में बन सौदागर आए थे टुकड़े खाने, मेरी दौलत देख देख के, लगे दिलों में ललचाने, लगा फूट का पेड़ हिंद में अग्नी ईर्ष्या बरसाने, राजाओं के मंत्री फोड़े, लगे फौज को भड़काने, तेरी काली करतूतों का भंडा फोड़ कराऊंगा, जब तक तुझको...। हमें फरेबो जाल सिखा कर, भाई भाई लड़वाया, सकल वस्तु पर कब्जा करके हमको ठेंगा दिखलाया, चर्सा भर ले भूमि, भूमि भारत का चर्सा खिंचवाया, बिन अपराध हमारे भाई को शूली पर चढ़वाया, एक एक बलिवेदी पर अब लाखों शीश चढ़ाऊंगा, जब तक तुझको....। बंग-भंग कर, नन्द कुमार को किसने फांसी चढ़वाई, किसने मारा खुदी राम और झांसी की लक्ष्मीबाई, नाना जी की बेटी मैना किसने जिंदा जलवाई, किसने मारा टिकेन्द्र जीत सिंह, पद्मनी, दुर्गाबाई, अरे अधर्मी इन पापों का बदला अभी चखाऊंगा, जब तक तुझको....। किसने श्री रणजीत सिंह के बच्चों को कटवाया था, शाह जफर के बेटों के सर काट उन्हें दिखलाया था, अजनाले के कुएं में किसने भोले भाई तुपाया था, अच्छन खां और शम्भु शुक्ल के सर रेती रेतवाया था, इन करतूतों के बदले लंदन पर बम बरसाऊंगा, जब तक तुझको....। पेड़ इलाहाबाद चौक में अभी गवाही देते हैं, खूनी दरवाजे दिल्ली के घूंट लहू पी लेते हैं, नवाबों के ढहे दुर्ग, जो मन मसोस रो देते हैं, गांव जलाये ये जितने लख आफताब रो लेते हैं, उबल पड़ा है खून आज एक दम शासन पलटाऊंगा, जब तक तुझको...। अवध नवाबों के घर किसने रात में डाका डाला था, वाजिद अली शाह के घर का किसने तोड़ा ताला था, लोने सिंह रुहिया नरेश को किसने देश निकाला था, कुंवर सिंह बरबेनी माधव राना का घर घाला था, गाजी मौलाना के बदले तुझ पर गाज गिराऊंगा, जब तक तुझको...। किसने बाजी राव पेशवा गायब कहां कराया था, बिन अपराध किसानों पर कस के गोले बरसाया था, किला ढहाया चहलारी का राज पाल कटवाया था, धुंध पंत तातिया हरी सिंह नलवा गर्द कराया था, इन नर सिंहों के बदले पर नर सिंह रूप प्रगटाऊंगा, जब तक तुझको...। डाक्टरों से चिरंजन को जहर दिलाने वाला कौन ? पंजाब केसरी के सर ऊपर लट्ठ चलाने वाला कौन ? पितु के सम्मुख पुत्र रत्न की खाल खिंचाने वाला कौन ? थूक थूक कर जमीं के ऊपर हमें चटाने वाला कौन ? एक बूंद के बदले तेरा घट पर खून बहाऊंगा ? जब तक तुझको...। किसने हर दयाल, सावरकर अमरीका में घेरवाया है, वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र से प्रिय भारत छोड़वाया है, रास बिहारी, मानवेन्द्र और महेन्द्र सिंह को बंधवाया है, अंडमान टापू में बंदी देशभक्त सब भेजवाया है, अरे क्रूर ढोंगी के बच्चे तेरा वंश मिटाऊंगा, जब तक तुझको....। अमृतसर जलियान बाग का घाव भभकता सीने पर, देशभक्त बलिदानों का अनुराग धधकता सीने पर, गली नालियों का वह जिंदा रक्त उबलता सीने पर, आंखों देखा जुल्म नक्श है क्रोध उछलता सीने पर, दस हजार के बदले तेरे तीन करोड़ बहाऊंगा, जब तक तुझको....। -वंशीधर शुक्ल (1904-1980) ...
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पुष्प की अभिलाषा | कविता - माखनलाल चतुर्वेदी |
चाह नहीं मैं सुरबाला के, गहनों में गूँथा जाऊँ, ...
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बाक़ी बच गया अंडा | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna |
पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार गोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गये चार चार पूत भारत माता के, चारों चतुर-प्रवीन देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन तीन पूत भारत माता के, लड़ने लग गए वो अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच बच गए दो दो बेटे भारत माता के, छोड़ पुरानी टेक चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया है एक एक पूत भारत माता का, कंधे पर है झंडा पुलिस पकड़ के जेल ले गई, बाक़ी बच गया अंडा ...
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पहुँचे उनको मेरा सलाम - क़ैस जौनपुरी |
तुमने सुना? ...
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शुभेच्छा - लक्ष्मीनारायण मिश्र |
न इच्छा स्वर्ग जाने की नहीं रुपये कमाने की । नहीं है मौज करने की नहीं है नाम पाने की ।।
नहीं महलों में रहने की नहीं मोटर पै चलने की । नहीं है कर मिलाने की नहीं मिस्टर कहाने की ।।
न डिंग्री हाथ करने की, नहीं दासत्व पाने की । नहीं जंगल में जाकर ईश धूनी ही रमाने की ।।
फ़क़त इच्छा है ऐ माता! तेरी शुभ भक्ति करने की । तेरा ही नाम धरने की तेरा ही ध्यान करने की ।।
तेरे ही पैर पड़ने की तेरी आरत भगाने की । करोड़ों कष्ट भी सह कर शरण तव मातु आने की ।।
नहीं निज बंधुओ को अन्य टापू में पठाने की । नहीं निज पूर्वजों की कीर्ति को दाग़ी कराने की ।।
चाहे जिस भांति हो माता सुखद निज-राज्य पाने की । मरण उपरान्त भी माता! पुन: तव गोद आने की ।। ...
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ओ शासक नेहरु सावधान - वंशीधर शुक्ल |
ओ शासक नेहरु सावधान, पलटो नौकरशाही विधान। अन्यथा पलट देगा तुमको, मजदूर, वीर योद्धा, किसान। ...
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पंद्रह अगस्त की पुकार - Atal Bihari Vajpayee |
पंद्रह अगस्त का दिन कहता - आज़ादी अभी अधूरी है। सपने सच होने बाकी है, रावी की शपथ न पूरी है।। ...
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ऊँचाई | कविता - Atal Bihari Vajpayee |
ऊँचे पहाड़ पर, पेड़ नहीं लगते, पौधे नहीं उगते, न घास ही जमती है। ...
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उसने मेरा हाथ देखा | कविता - उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk |
उसने मेरा हाथ देखा और सिर हिला दिया, "इतनी भाव प्रवीणता दुनिया में कैसे रहोगे! इसपर अधिकार पाओ, वरना लगातार दुख दोगे निरंतर दुख सहोगे!" ...
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हौसले मिटते नहीं - डॉ शम्भुनाथ तिवारी |
हौसले मिटते नहीं अरमाँ बिखर जाने के बाद मंजिलें मिलती है कब तूफां से डर जाने के बाद ...
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कौन यहाँ खुशहाल बिरादर - डॉ शम्भुनाथ तिवारी |
कौन यहाँ खुशहाल बिरादर बद-से-बदतर हाल बिरादर ...
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उलझे धागों को सुलझाना - डॉ शम्भुनाथ तिवारी |
उलझे धागों को सुलझाना मुश्किल है नफरतवाली आग बुझाना मुश्किल है ...
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