मैं अपनी कविता जब पढ़ता उर में उठने लगती पीड़ा मेरे सुप्त हृदय को जैसे स्मृतियों ने है सहसा चीरा
उर में उठती एक वेदना होने लगती सुप्त चेतना
फिर अतीत साकार प्रकट हो उर में करने लगता क्रीडा मैं अपनी कविता जब पढ़ता उर में उठने लगती पीड़ा
मैं अपने में खो जाता हूँ एक स्वप्न में सो जाता हूँ
मीरा दिखलायी देती है मुझको 'प्रेम-नदी के तीरा' मैं अपनी कविता जब पढ़ता उर में उठने लगती पीड़ा । - कमला प्रसाद मिश्र [फीजी के राष्ट्रीय कवि]
|