जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

हिंदी में | कविता

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌ | Prabhudyal Shrivastava

लेख लिखा मैंने हिंदी में,
लिखी कहानी हिंदी में
लंदन से वापस आकर फिर,
बोली नानी हिंदी में।

गरमी में कश्मीर गये तो,
घूमें कठुआ श्रीनगर।
मजे-मजे से बोल रहे थे,
सब सैलानी हिंदी में।

पापा के सँग गए घूमने,
हम कोच्ची में केरल के,
छवि गृहों में लगा सिनेमा ,,
"राजा जॉनी" हिंदी में।

बेंगलुरु में एक बड़े से,
होटल में खाना खाया।
सब लोगों ने ही मांगा था,
खाना, पानी हिंदी में।

उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम,
में हिंदी सबको आती,
जगह-जगह पर हमने जाकर,
बातें जानी हिंदी में।

रोज विदेशी धरती से भी,
लोग यहाँ पर आते हैं।
उन्हें नमस्ते कहकर करते,
हम अगवानी हिंदी में।

अमरनाथ पहुंचा करते हैं,
तीर्थ यात्री दुनिया के,
बोला करते जय बाबा, जय,
जय बर्फ़ानी हिंदी में।

उड़िया कन्नड़ आसमियां सी,
कई  भाषाएं भारत में।
लेकिन सबको बहुत लुभाती,
बोली वाणी हिंदी में।

भारत के नेता जाते हैं,
कहीं विदेशी धरती पर,
देते रहते अक्सर भाषण,
अब तूफ़ानी, हिंदी में।

मान यहाँ सब भाषाओं को ,
पूरा-पूरा मिलता है। 
लेकिन पढ़ने लिखने में तो,
है आसानी हिंदी में।

-प्रभुदयाल श्रीवास्तव 

 

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