जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

जेल में क्‍या-क्‍या है

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'

पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र' 1926-27 में जेल में बंद थे लेकिन जेल में होने पर भी उनके प्राण किसी प्रकार अप्रसन्‍न नहीं थे। देखिए, जेल में पड़े-पड़े उनको क्या सूझी कि जेल में क्‍या-क्‍या है, पर कविता रच डाली -

‘बैरक' है, ‘बर्थ', ‘बेल' बेड़ियाँ हैं, बावले हैं,
ब्‍यूटीफुल बालटी की दाल बे-मसाला है।
चट्टा है, चटाई, चारु-चीलर हैं चारों ओर
तौक़, तसली है, तसला है और ताला है।
जाहिर जहान जमा-मार जमादार भी हैं,
कच्‍ची-कच्‍ची रोटी सड़े साग का नेवाला है।
शाला, क़ैदियों की काला कम्‍बल दुशाला जहाँ...
‘उग्र' ने वहीं पे फ़िलहाल डेरा डाला है।

- पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र'

 

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