पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र' 1926-27 में जेल में बंद थे लेकिन जेल में होने पर भी उनके प्राण किसी प्रकार अप्रसन्न नहीं थे। देखिए, जेल में पड़े-पड़े उनको क्या सूझी कि जेल में क्या-क्या है, पर कविता रच डाली -
‘बैरक' है, ‘बर्थ', ‘बेल' बेड़ियाँ हैं, बावले हैं, ब्यूटीफुल बालटी की दाल बे-मसाला है। चट्टा है, चटाई, चारु-चीलर हैं चारों ओर तौक़, तसली है, तसला है और ताला है। जाहिर जहान जमा-मार जमादार भी हैं, कच्ची-कच्ची रोटी सड़े साग का नेवाला है। शाला, क़ैदियों की काला कम्बल दुशाला जहाँ... ‘उग्र' ने वहीं पे फ़िलहाल डेरा डाला है।
- पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र'
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