पीर के गीत तो अनकहे रह गए पर कथन की कथा हिचकियाँ कह गईं। आँसुओं का ज़हर वक्त ने पी लिया पर नयन की कथा पुतलियाँ कह गई।
सुरमई रंग है भव्य आकार है मोतियों से जड़ा चन्दनी द्वार है जिसके आँगन में पर भ्रम की दीवार है उस भवन की कथा खिड़कियाँ कह गईं।
युग-युगों से निरन्तर बरसता रहा अपना जल दूसरों को परसता रहा पर स्वयं ज़िन्दगी को तरसता रहा मीत धन की कथा बिजलियाँ कह गईं।
व्यंजना देख अभिधा ख़तम हो गई होम रचने की सुविधा ख़तम हो गई बीच में जिसकी समिधा ख़तम हो गई उस हवन की कथा उँगलियाँ कह गईं।
-श्रवण राही |