जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

आइए, 'तम' से जूझ जाएं  (संपादकीय)

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रचनाकार: रोहित कुमार 'हैप्पी'

संपादकीय

दीपमाला कह रही है, दीप सा युग-युग जलो।
घोरतम को पार कर, आलोक बन कर तुम जलो।।

विश्वभर में हम भारतवासी दीवाली का त्योहार मनाते हैं। दीप प्रज्जलित करने की हमारी परम्परा का अभिप्राय, 'तमसो मा ज्योर्तिगमय' से रहा है । अर्थात हम हर वर्ष प्रयास करते हैं कि हमारा अज्ञान रूपी अँधकार ज्ञान रूपी प्रकाश से दूर हो!

विदेश में बसे हुए हम भारतवासियों के लिए ऐसे त्योहार और अधिक महत्ता रखते है क्योंकि इन्हीं त्योहारों के माध्यम से हम अपनी नई पीढ़ी को अपनी साँस्कृतिक विरासत सौंपते हैं ।

भारत-दर्शन पिछले 17 वर्षो से 'हिन्दी भाषा' का नन्हा सा दीपक जलाए हुए है। इन वर्षो में इस दीपक ने सर्दी, गर्मी, वर्षा और सिरफिरी तेज हवाओं का सामना किया है।

विगत वर्षो में हमें आपका स्नेह मिला है और आपके स्नेह की शक्ति ने हमें किंचित भी विचलित नहीं होने दिया। आइए, एक बार फिर आप और हम मिलकर 'तम' से जूझ जाएं सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि सभी के लिए!

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