– सुनो।
– कौन?
– मैं।
– मैं कौन?
– अच्छा। अब मेरी आवाज़ भी नहीं पहचानते?
– तुम ही तो थे जो कालेज तक एक सिक्युरिटी गार्ड की तरह चुपचाप मुझे छोड़ जाते थे। बहाने से मेरे कालेज के आसपास मंडराया करते थे। सहेलियां मुझे छेड़ती थीं। मैं कहती कि नहीं जानती।
– मैं? ऐसा करता था?
– और कौन? बहाने से मेरे छोटे भाई से दोस्ती भी गांठ ली थी और घर तक भी पहुंच गये। मेरी एक झलक पाने के लिए बड़ी देर बातचीत करते रहते थे। फिर चाय की चुस्कियों के बीच मेरी हंसी तुम्हारे कानों में गूंजती थी।
– अरे ऐसे?
– हाँ। बिल्कुल। याद नहीं कुछ तुम्हें?
– फिर तुम्हारे लिए लड़की की तलाश शुरू हुई और तुम गुमसुम रहने लगे पर उससे पहले मेरी ही शादी हो गयी।
– एक कहानी कहीं चुपचाप खो गयी।
– कितने वर्ष बीत गये। कहां से बोल रही हो?
– तुम्हारी आत्मा से। जब जब तुम बहुत उदास और अकेले महसूस करते हो तब तब मैं तुम्हारे पास होती हूं। बाय। खुश रहा करो। जो बीत गयी सो गयी।
--कमलेश भारतीय