हम देहली-देहली जाएँगे हम अपना हिंद बनाएँगे अब फौ़जी बनके रहना है दु:ख-दर्द, मुसीबत सहना है सुभाष का कहना कहना है चलो देहली चलके रहना है हम देहली-देहली जाएँगे।
हम गोली खा के झूमेंगे हम मौत को बढ़कर चूमेंगे मतवाले बन आज़ादी के हम दरिया जंगल घूमेंगे हम देहली-देहली जाएँगे।
सुभाष हमारा साथी है और रासबिहारी साथ ही है फिर कैसा ख़तरा बाकी है खु़दा हमारा साथी है हम देहली-देहली जाएँगे।
हम फौजी बन के आएँगे हम देहली तख़्त सजाएँगे ज़ालिम फिरंगी क़ौम का हम नामो-निशां मिटाएँगे हम देहली-देहली जाएँगे हम अपना हिंद बनाएँगे।
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गीतकार: मुमताज़ हुसैन, संगीत : रामसिंह ठाकुर
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