मेरे दादा जी हे भाई, ले देते हैं नहीं मिठाई। आता है हलवाई जब जब, उसे भगा देते हैं तब तब॥
कहते हैं मत खाओ प्यारे, गिर जाएंगे दांत तुम्हारे॥ कीड़े मुँह में पड़ जाएंगे, सारे जबड़े सड़ जाएंगे॥
एक रोज़ वे अपना ऐनक, गए छोड़कर जब बाहर तक। फिर तो मैंने मौका पाया, जल्दी जाकर उसे छिपाया॥
लौट वहाँ से जब वे आए, उसे न पाया तो घबराए। बोले जल्दी मुझे बुलाकर, दे दो भैया चश्मा लाकर॥
मैंने कहा मिठाई लूँगा, तब मैं दादा चश्मा दूंगा। फिर तो लेदी मुझे मिठाई, बड़े मज़े से मैंने खाई॥
-अब्दुलरहमान ‘रहमान' [बाल-सखा, 1934] |