जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
आप सूरज को जुगनू | ग़ज़ल  (काव्य)  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार हैप्पी

आप सूरज को जुगनू बता दीजिए 
इस तरह नाम उसका मिटा दीजिए

आपकी हों अदाएं अगर काम की 
तब फकीरों को इनसे रिझा दीजिए

कारगर होगी मेरी  दवा और दुआ 
खुलके दर्द अपना मुझको बता दीजिए

मुझको आती नहीं है नुमाइश मगर 
दर्द सीने में अपना सजा दीजिए 

अपने रस्ते नहीं, मंजिलें भी नहीं 
हाथ चाहो तो मुझको थमा दीजिए 

ज़ख्म आकर कुरेदेगा हर कोई ही   
आप चाहो तो मरहम लगा दीजिए 

तेरे कहने से सूरज ना जुगनू बने 
बाकी मर्जी हो जैसी बता दीजिए

-रोहित कुमार हैप्पी, न्यूज़ीलैंड
 ई-मेल: editor@bharatdarshan.co.nz

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