भारत-दर्शन::इंटरनेट पर विश्व की सबसे पहली ऑनलाइन हिंदी साहित्यिक पत्रिका
समा जाता है श्वास में श्वास शेष रहता है फिर कुछ नहीं इस अनंत आकाश में शब्द ब्रह्म ढूँढ़ता है पर-ब्रह्म को
शब्द में अर्थ नहीं समाता समाया नहीं समाएगा नहीं काम आया है वह सदा आता है आता रहेगा उछालने को कुछ उपलब्धियाँ छिछली अधपकी
- विष्णु प्रभाकर
amp-form
इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें