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कबीर के दोहे सर्वाधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय हैं। हम कबीर के अधिक से अधिक दोहों को संकलित करने हेतु प्रयासरत हैं। (1)
(2) (3) माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । (4) तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
(5) गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । (6) सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद । (7) साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय । (8) धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । (9) कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और । (10) माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । (11) रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । (12) दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। (13) बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। (14) साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। (15) तिनका कबहुँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय । (16) जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल। (17) उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास। (18) सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ। (19) साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय। (20) माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
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