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Literature Under This Category | ||
मैंने झूठ बोला था | बाल कथा - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
एक बालक था। नाम था उसका राम। उसके पिता बहुत बड़े पंडित थे। वह बहुत दिन जीवित नहीं रहे। उनके मरने के बाद राम की माँ अपने भाई के पास आकर रहने लगी। वह एकदम अनपढ़ थे। ऐसे ही पूजा-पाठ का ठोंग करके जीविका चलाते थे। वह झूठ बोलने से भी नहीं हिचकते थे। |
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भारत-दर्शन संकलन - अकबर बीरबल के किस्से | ||
प्राचीनकाल के राजदरबारों में सब प्रकार के गुणियों का सम्मान किया जाता था। बादशाह अकबर के दरबार में बीरबल अपनी विनोदप्रियता व कुशाग्रबुद्धि के लिए जाने जाते थे। अकबरी राजसभा के नौरत्नों में बीरबल कोहेनूर हीरा कहे जा सकते हैं। |
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दो गौरैया | बाल कहानी - भीष्म साहनी | Bhisham Sahni | ||
घर में हम तीन ही व्यक्ति रहते हैं-माँ, पिताजी और मैं। पर पिताजी कहते हैं कि यह घर सराय बना हुआ है। हम तो जैसे यहाँ मेहमान हैं, घर के मालिक तो कोई दूसरे ही हैं। |
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गिरगिट का सपना - मोहन राकेश | Mohan Rakesh | ||
एक गिरगिट था। अच्छा, मोटा-ताजा। काफी हरे जंगल में रहता था। रहने के लिए एक घने पेड़ के नीचे अच्छी-सी जगह बना रखी थी उसने। खाने-पीने की कोई तकलीफ नहीं थी। आसपास जीव-जन्तु बहुत मिल जाते थे। फिर भी वह उदास रहता था। उसका ख्याल था कि उसे कुछ और होना चाहिए था। और हर चीज, हर जीव का अपना एक रंग था। पर उसका अपना कोई एक रंग था ही नहीं। थोड़ी देर पहले नीले थे, अब हरे हो गए। हरे से बैंगनी। बैंगनी से कत्थई। कत्थई से स्याह। यह भी कोई जिन्दगी थी! यह ठीक था कि इससे बचाव बहुत होता था। हर देखनेवाले को धोखा दिया जा सकता था। खतरे के वक्त जान बचाई जा सकती थी। शिकार की सुविधा भी इसी से थी। पर यह भी क्या कि अपनी कोई एक पहचान ही नहीं! सुबह उठे, तो कच्चे भुट्टे की तरह पीले और रात को सोए तो भुने शकरकन्द की तरह काले! हर दो घण्टे में खुद अपने ही लिए अजनबी! |
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प्रेमचंद की बाल कहानियां - प्रेमचंद | Premchand | ||
प्रेमचंद ने बाल साहित्य भी रचा है। 1948 में सरस्वती प्रेस से श्रीपतराय (प्रेमचन्द के पुत्र) ने 'जंगल की कहानियां' नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई थी जिसमें प्रेमचंद की 12 बाल कहानियां थीं। इसके अतिरिक्त भी प्रेमचंद ने बच्चों के लिए एक लम्बी कहानी 'कुत्ते की कहानी' व 'कलम, तलवार और त्याग' जिसमें महापुरुषों के जीवन की कथाएं लिखी हैं। यहाँ उन्हीं में से कुछ को संकलित करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रेमचंद का बाल-साहित्य इस प्रकार हैं : माहात्मा शेख सादी, राम चर्चा, जगंल की कहानियाँ, कुत्ते की कहानी, दुर्गादास और कलम, तलवार और त्याग (दो भाग)। जंगल की कहानियां |
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जंगल की कहानियाँ - प्रेमचंद | Premchand | ||
सरस्वती प्रेस से श्रीपतराय (प्रेमचन्द के पुत्र) ने 1948 में 'जंगल की कहानियां' नामक पुस्तक प्रकाशित की थी जिसमें प्रेमचंद की 12 बाल कहानियां हैं। इन बाल कहानियों में - शेर और लड़का, बनमानुष की दर्दनाक कहानी, दक्षिण अफ्रीका में शेर का शिकार, गुब्बारे का चीता, पागल हाथी, साँप की मणि, बनमानुष का खानसामा, मिट्ठू, पालतू भालू, बाघ की खाल, मगर का शिकार, और जुड़वा भाई सम्मिलित हैं। |
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शेर और लड़का - प्रेमचंद | Premchand | ||
बच्चो, शेर तो शायद तुमने न देखा हो, लेकिन उसका नाम तो सुना ही होगा। शायद उसकी तस्वीर देखी हो और उसका हाल भी पढ़ा हो। शेर अकसर जंगलों और कछारों में रहता है। कभी-कभी वह उन जंगलों के आस-पास के गाँवों में आ जाता है और आदमी और जानवरों को उठा ले जाता है। कभी-कभी उन जानवरों को मारकर खा जाता है जो जंगलों में चरने जाया करते हैं। थोड़े दिनों की बात है कि एक गड़रिये का लड़का गाय-बैलों को लेकर जंगल में गया और उन्हें जंगल में छोड़कर आप एक झरने के किनारे मछलियों का शिकार खेलने लगा। जब शाम होने को आई तो उसने अपने जानवरों को इकट्ठा किया, मगर एक गाय का पता न था। उसने इधर-उधर दौड़-धूप की, मगर गाय का पता न चला। बेचारा बहुत घबराया। मालिक अब मुझे जीता न छोड़ेंगे। उस वक्त ढूंढने का मौका न था, क्योंकि जानवर फिर इधर-उधर चले जाते; इसलिए वह उन्हें लेकर घर लौटा और उन्हें बाड़े में बाँधकर, बिना किसी से कुछ कहे हुए गाय की तलाश में निकल पड़ा। उस छोटे लड़के की यह हिम्मत देखो; अँधेरा हो रहा है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, जंगल भाँय-भाँय कर रहा है. गीदड़ों का हौवाना सुनाई दे रहा है, पर वह बेखौफ जंगल में बढ़ा चला जाता है। |
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अम्मू भाई का छक्का - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava | ||
"दादाजी मैं छक्का मारूँगा," अम्मू भाई ने क्रिकेट बैट लहराते हुये मुझसे कहा। वह एक हाथ में बाल लिये था, बोला, "प्लीज़ बाँलिंग करो न दादाजी।" |
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बीरबल की खिचड़ी - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक बार बादशाह अकबर ने घोषणा की कि जो आदमी सर्दी के मौसम में नदी के ठंडे पानी में रात भर खड़ा रहेगा, उसे भारी भरकम तोहफ़े से पुरस्कृत किया जाएगा। |
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बनमानुस की दर्दनाक कहानी - प्रेमचंद | Premchand | ||
आज हम तुम्हें एक बनमानुस का हाल सुनाते हैं। सामने जो तसवीर है, उससे तुम्हें मालूम होगा कि बनमानुस न तो पूरा बंदर है, न पूरा आदमी। वह आदमी और बन्दर के बीच में एक जानवर है। मगर वह बड़ा बलवान होता है और आदमियों को बड़ी आसानी से मार डालता है। वह अधिकतर अफ्रीका के जंगल में पाया जाता है। |
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मासूम सज़ा - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक दिन बादशाह अकबर ने दरबार में आते ही दरबारियों से पूछा - किसी ने आज मेरी मूंछें नोचने की जुर्रत की। उसे क्या सज़ा दी जानी चाहिए। |
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दक्षिणी अफ्रीका में शेर का शिकार - प्रेमचंद | Premchand | ||
एक मशहूर शिकारी ने एक शेर के शिकार का हाल लिखा है। आज हम उसकी कथा उसी की ज़बान से सुनाते हैं--कई साल हुए एक दिन मैं नौरोबी की एक चौड़ी गली से जा रहा था कि एक शेरनी पर नज़र पड़ी जो अपने दो बच्चों समेत झाड़ियों की तरफ़ चली जा रही थी। शायद शिकार की तलाश में बस्ती में घुस आई थी। उसे देखते ही मैं लपककर अपने घर आया और एक रायफल लेकर फिर उसी तरफ़ चला। संयोग से चाँदनी रात थी। मैंने आसानी से शेरनी को मार डाला और उसके दोनों बच्चों को पकड़ लिया। इन बच्चों की उम्र ज्यादा न थी, सिर्फ तीन हफ्ते के मालूम होते थे। एक नर था; दूसरा मादा। मैंने नर का नाम जैक और मादा का जिल रखा। जैक तो जल्द बीमार होकर मर गया, जिल बच रही । जिल अपना नाम समझती और मेरी आवाज़ पहचानती थी। मैं जहाँ जाता, वहाँ कुत्ते की तरह मेरे पीछे-पीछे चलती। मेरे कमरे में फ़र्श पर लेटी रहती थी। अक्सर मेरे पैरों पर सो जाती और जागने के बाद अपने पंजे मेरे घुटनों पर रखकर बिल्ली की तरह मेरा सिर अपने चेहरे पर मलती। |
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सही और गलत के बीच का अंतर - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक बार अकबर बादशाह ने सोचा, ‘हम रोज-रोज न्याय करते हैं। इसके लिए हमें सही और गलत का पता लगाना पड़ता है। लेकिन सही और गलत के बीच आखिर कितना अंतर होता है?' |
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बीरबल की पैनी दृष्टि - अकबर बीरबल के किस्से | ||
बीरबल बहुत नेक दिल इंसान थे। वह सैदव दान करते रहते थे और इतना ही नहीं, बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी ज्यादातर गरीबों और दीन-दुःखियों में बांट देते थे, परन्तु इसके बावजूद भी उनके पास धन की कोई कमी न थी। दान देने के साथ-साथ बीरबल इस बात से भी चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति उन्हें अपनी दीनता दिखाकर ठग न लें। |
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चूड़ियों की गिनती | अकबर बीरबल के किस्से - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा, "बीरबल, तुम दिन में अपनी पत्नी का हाथ एक या दो बार तो अवश्य ही पकड़ते होंगे। क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारी पत्नी की कलाई में कितनी चूड़ियां हैं?'' |
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तूफ़ान में नाव - लियो टोल्स्टोय | Leo Tolstoy | ||
कुछ मछुए नाव में जा रहे थे। तूफान आ गया। मछुए डर गये। उन्होंने चप्पू फेंक दिये और भगवान से प्रर्थना करने लगे कि वह उनकी जान बचा दे। |
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नानी का बटुआ - प्रकाश मनु | Prakash Manu | ||
कुक्कू को टॉफियाँ खाना अच्छा लगता था। रोज वह सुबह-शाम नानी से कहता, ''नानी...नानी, पैसे दो। टॉफियाँ लेनी हैं।'' |
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चारों मूर्ख हाजिर हैं | अकबर बीरबल के किस्से - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल को आदेश दिया, "चार ऐसे मूर्ख ढूंढकर लाओ जो एक से बढ़कर एक हों। यह काम कोई कठिन नहीं है क्योंकि हमारा राज्य तो क्या, पूरी दुनिया मूर्खों से भरी पड़ी है।" |
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घोड़ा और घोड़ी - लियो टोल्स्टोय | Leo Tolstoy | ||
एक घोड़ी दिन-रात खेत में चरती रहती , हल में जुता नहीं करती थी, जबकि घोड़ा दिन के वक्त हल में जुता रहता और रात को चरता। घोड़ी ने उससे कहा, "किसलिये जुता करते हो? तुम्हारी जगह मैं तो कभी ऐसा न करती। मालिक मुझ पर चाबुक बरसाता, मैं उस पर दुलत्ती चलाती।" |
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काकी - सियाराम शरण गुप्त | Siyaram Sharan Gupt | ||
उस दिन बड़े सवेरे श्यामू की नींद खुली तो उसने देखा घर भर में कुहराम मचा हुआ है। उसकी माँ नीचे से ऊपर तक एक कपड़ा ओढ़े हुए कम्बल पर भूमि-शयन कर रही है और घर के सब लोग उसे घेर कर बड़े करुण स्वर में विलाप कर रहे हैं। |
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दद्दू का पिद्दू - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava | ||
गोटिया और लूसी के दादाजी का नाम मस्त राम है। नाम के अनुरूप वह हमेशा मस्त ही रहते हैं। व्यर्थ की चिंताओं को पाल कर रखना उनकी आदतों में शुमार नहीं है ।अगर भूले भटके कोई चिंता आ ही गई तो उसे वह सांप की केंचुली की तरह उतार फेंकते हैं। चिंता भी अकसर उनसे दूर ही रहती है। वह जानती है कि यह मस्त राम नाम प्राणी उसे अपने पास टिकने नहीं देगा ।इसलिए उसके पास जाने से क्या लाभ ।और वह दूसरे ठिकाने तलाशने निकल जाती है। |
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छोटा बांस, बड़ा बांस - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
एक दिन बीरबल बादशाह अकबर के साथ बाग में सैर कर रहे थे। बीरबल साथ चलते-चलते लतीफा सुना रहे थे और अकबर उसका आनंद ले रहे थे। तभी बादशाह अकबर को घास पर पड़ा एक बांस का एक टुकड़ा दिखाई दिया। बस उन्हें बीरबल की परीक्षा लेने की सूझ गई। बीरबल को बांस का वह टुकड़ा दिखाते हुए बादशाह अकबर बोले, ‘‘बीरबल! क्या तुम इस बांस के टुकड़े को बिना काटे छोटा कर सकते हो ?'' |
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किस नदी का पानी सबसे अच्छा - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक बार अकबर ने अपने दरबारियो से पूछा, "बताओ किस नदी का पानी सबसे अच्छा है?" |
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किसका नौकर कौन? - अकबर बीरबल के किस्से | ||
बादशाह अकबर और उनके बीरबल जब कभी भी अकेले होते तो किसी न किसी बात पर चर्चा करते ही रहते। एक दिन बादशाह अकबर बैंगन की खूब तारीफ़ करने लगे। |
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अच्छा कौन? - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठा हुआ दरबारियों से दिल-बहलाव कर रहा था, इसी बीच बीरबल भी आ पहुँचा! बादशाह ने बीरबल से पूछा-- बीरबल!क्या बतला सकते हो कि फल कौनसा अच्छा? दूध किसका अच्छा, पत्ता किसका अच्छा, फूल कौन सा अच्छा, मिठास कौन सी अच्छी, राजा कौन अच्छा ? |
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लकीर छोटी हो गयी - अकबर बीरबल के किस्से | ||
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मिट्ठू - प्रेमचंद | Premchand | ||
बंदरों के तमाशे तो तुमने बहुत देखे होंगे। मदारी के इशारों पर बंदर कैसी-कैसी नकलें करता है, उसकी शरारतें भी तुमने देखी होंगी। तुमने उसे घरों से कपड़े उठाकर भागते देखा होगा। पर आज हम तुम्हें एक ऐसा हाल सुनाते हैं, जिससे मालूम होगा कि बंदर लड़कों से भी दोस्ती कर सकता है। |
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फ़ौसफ़र - दिव्या माथुर | ||
बिन्नी बुआ का सही नाम बिनीता है पर सब उन्हें प्यार से बिन्नी कहते हैं। बिन्नी बुआ के पालतु बिल्ले का नाम फ़ौसफ़र है और फ़ौसफ़र के नाम के पीछे भी एक मज़ेदार कहानी है। जब बिन्नी बुआ उसे पहली बार घर में लाईं थीं तो उसके चमकते हुए सफ़ेद और काले कोट को देख कर ईशा ने चहकते हुए कहा था। |
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ईश्वर का न्याय - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
अकबर ने एक दिन बीरबल से पूछा--"बीरबल! इस संसार में इतनी विविधता क्यों है? ऐसा क्यों है कि कोई गरीब है तो कोई अमीर? किसी के पास इतना वैभव है कि उसकी सात पुश्तें भी उसे खर्च नहीं कर सकें और किसी को दो जून रोटी के भी लाले पड़े हैं?" बीरबल ने कहा--"जहाँपनाह! यह तो परमपिता का न्याय ही जाने! मैं तो बस इतना मानता हूँ कि जिसका जितना दाय है, ईश्वर उसे उतना अवश्य देता है।" अकबर ने कहा--"ईश्वर को बीच में न लाओ बीरबल! ईश्वर तो सबका पिता है। उसे परमपिता कहते हैं। भला कोई पिता ऐसा हो सकता है जो अपने एक पुत्र के लिए एक और दूसरे पुत्र के लिए दूसरी व्यवस्था करे? पिता की नजर में तो सभी बच्चे एक जैसे ही होंगे न!" बीरबल उस दिन चुप रह गया। दूसरे दिन बीरबल शाम को अकबर के साथ छत पर टहल रहा था। उसने अकबर से पूछा--"जहाँपनाह! गुस्ताखी माफ हो। बादशाह होने के नाते आपकी नजर में आपकी तमाम प्रजा एक जैसी है। है न?" "इसमें क्या शक है?" अकबर ने कहा। "आपकी सल्तनत में सभी के लिए एक जैसा कानून है। है न?" बीरबल ने पूछा। "हाँ, है, लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो?" अकबर ने पूछा। "फिर आपकी सल्तनत में अलग-अलग काम करनेवाले मुलाजिमों के लिए अलग-अलग वेतन क्यों है? सबकी सेवा तो राज्य ही लेता है, सबको समान रूप से अपने काम में अपना समय लगाना पड़ता है। फिर समान समय के लिए समान वेतन क्यों नहीं?" "अरे बीरबल! काम के महत्त्व पर वेतन निर्धारित होता है, समय के आधार पर नहीं, इतना भी नहीं समझते?" अकबर ने कहा। बीरबल बोला--"ईश्वर ने भी सूरज की रोशनी, साँस लेने के लिए हवा, पीने के लिए पानी सबको समान रूप से प्रदान किए हैं, जैसे आप के राज्य में सबके लिए समान कानून और समान सार्वजनिक सुविधाएँ हैं। फिर ईश्वर सबको समान रूप से कार्य करने की सामर्थ्य भी देता है। अब व्यक्ति जितनी निष्ठा और लगन से काम करता है, उसे उतना ही उसके श्रम का फल भी प्राप्त होता है। मुझे विश्वास हैं कि अब आप अवश्य समझ गए होंगे कि परमपिता परमात्मा इस संसार में रहनेवालों को अलग-अलग फल क्यों देता है।" बीरबल ने कहा। अकबर को बीरबल की बात पसन्द आई और उन्होंने बीरबल की पीठ थपथपाते हुए उसकी सराहना की। [अकबर बीरबल] |
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कौन सा अच्छा - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे अपने दरबारियों से दिल बहलाव की बातें कर रहे थे। इसी बीच बीरबल भी आ पहुँचा। |
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कौन ऋतु सर्वोत्तम है? - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक दिन बादशाह राजकीय कार्मो से अवकाश पाकर अपने दरबार में बैठे हुए थे। इधर-उधर की बातें भी हो रहीं थीं। तभी बादशाह ने पूछा—“गर्मी, बरसात, जाड़ा, हेमन्त, शिशिर और बसन्त इन छहों ऋतुओं में सर्वोत्तम ऋतु कौन-सी है?" |
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राजकुमार की प्रतिज्ञा | Rajkumar Ki Pritigya - यशपाल जैन | Yashpal Jain | ||
यशपाल ने अनेक बालोपयोगी कहानियां लिखी, पर उपन्यास नहीं लिखा था। अचानक उन्हें आभास हुआ कि बच्चों के लिए उपन्यास भी लिखना चाहिए और उनकी लेखनी उस दिशा में चल पड़ी। लगभग सवा महीने में यह रचना पूरी हो गई। |
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राजकुमार की प्रतिज्ञा - भाग १ - यशपाल जैन | Yashpal Jain | ||
पुराने जमाने की बात है। एक राजा था। उसके सात लड़के थे। छ: का विवाह हो गया था। सातवां अभी कुंवारा था। एक दिन वह महल में बैठा था कि उसे बड़े जोर की प्यास लगी। उसने इधर-उधर देखा तो सामने से उसकी छोटी भाभी आती दिखाई दीं। उसने कहा, "भाभी, मुझे एक गिलास पानी दे दो।" महल में इतने नौकर-चाकर होते हुए भी सबसे छोटे राजकुमार की यह हिम्मत कैसे हुई, भाभी मन-ही मन खीज उठीं। उन्होंने व्यंग्य भरे स्वर में कहा, "तुम्हारा इतना ऊंचा दिमाग है तो जाओ, रानी पद्मिनी को ले आओ।" |
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राजकुमार की प्रतिज्ञा - भाग 2 - यशपाल जैन | Yashpal Jain | ||
राजकुमार ने चलते-चलते कहा, "यह तो पहला पड़ाव था, अभी तो जाने कितने पड़ाव और आयेंगे।" |
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राजकुमार की प्रतिज्ञा - भाग 3 - यशपाल जैन | Yashpal Jain | ||
वजीर के लड़के ने दरवाजे पर जाकर उसे खटखटाया, पर कोई नहीं बोला। उसने मन-ही-मन कहा, "यह एक नई मुसीबत सिर पर आ गई। पर अब हो क्या सकता था!" उसने बार-बार दरवाजा खटखटाया, राजकुमार को पुकारा, लेकिन कोई नहीं बोला। हारकर वह अपनी जगह पर बैठ गया और राजकुमार के आने की प्रतीक्षा करने लगी। |
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मिट्ठू - प्रेमचंद | Premchand | ||
बंदरों के तमाशे तो तुमने बहुत देखे होंगे। मदारी के इशारों पर बंदर कैसी-कैसी नकलें करता है, उसकी शरारतें भी तुमने देखी होंगी। तुमने उसे घरों से कपड़े उठाकर भागते देखा होगा। पर आज हम तुम्हें एक ऐसा हाल सुनाते हैं, जिससे मालूम होगा कि बंदर लड़कों से भी दोस्ती कर सकता है। |
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परीक्षा - प्रेमचंद | Premchand | ||
जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए तो परमात्मा की याद आई। जा कर महाराज से विनय की कि दीनबंधु! दास ने श्रीमान् की सेवा चालीस साल तक की, अब मेरी अवस्था भी ढल गई, राज-काज संभालने की शक्ति नहीं रही। कहीं भूल-चूक हो जाए तो बुढ़ापे में दाग लगे। सारी ज़िंदगी की नेकनामी मिट्टी में मिल जाए। |
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तोता-कहानी | रबीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
एक था तोता । वह बड़ा मूर्ख था। गाता तो था, पर शास्त्र नही पढ़ता था । उछलता था, फुदकता था, उडता था, पर यह नहीं जानता था कि क़ायदा-क़ानून किसे कहते हैं । |
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अनधिकार प्रवेश | रबीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
एक दिन प्रात:काल की बात है कि दो बालक राह किनारे खड़े तर्क कर रहे थे। एक बालक ने दूसरे बालक से विषम-साहस के एक काम के बारे में बाज़ी बदी थी। विवाद का विषय यह था कि ठाकुरबाड़ी के माधवी-लता-कुंज से फूल तोड़ लाना संभव है कि नहीं। एक बालक ने कहा कि 'मैं तो ज़रूर ला सकता हूँ' और दूसरे बालक का कहना था कि 'तुम हरगिज़ नहीं ला सकते।' |
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चुन्नी-मुन्नी - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
मुन्नी और चुन्नी में लाग-डाट रहती है । मुन्नी छह बर्ष की है, चुन्नी पाँच की । दोनों सगी बहनें हैं । जैसी धोती मुन्नी को आये, वैसी ही चन्नी को । जैसा गहना मुन्नी को बने, वैसा ही चुन्नी को । मुन्नी 'ब' में पढ़ती थीँ, चुन्नी 'अ' में । मुन्नी पास हो गयी, चुन्नी फ़ेल । मुन्नी ने माना था कि मैं पास हो जाऊँगी तो महाबीर स्वामी को मिठाई चढ़ाऊंगी । माँ ने उसके लिए मिठाई मँगा दी । चुन्नी ने उदास होकर धीमे से अपनी माँ से पूछा, अम्मा क्या जो फ़ेल हो जाता है वह मिठाई नहीं चढ़ाता? |
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विष्णु प्रभाकर की बालकथाएं - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
विष्णु प्रभाकर की बालकथाएं |
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चिड़िया फुर्र - आनन्द विश्वास | Anand Vishvas | ||
अभी दो चार दिनों से देवम के घर के बरामदे में चिड़ियों की आवाजाही कुछ ज्यादा ही हो गई थी। चिड़ियाँ तिनके ले कर आती, उन्हें ऊपर रखतीं और फिर चली जातीं दुबारा, तिनके लेने के लिये। |
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फूल नहीं तोड़ेंगे हम - आनन्द विश्वास | Anand Vishvas | ||
14 नवम्बर, बाल-दिवस, बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू जी का जन्म-दिवस, देवम के स्कूल में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। सभी छात्र बड़े उत्साह और उमंग के साथ इस दिवस को मनाते हैं। |
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