अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 
होली - मैथिलीशरण गुप्त (काव्य)       
Author:मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

जो कुछ होनी थी, सब होली!
          धूल उड़ी या रंग उड़ा है,
हाथ रही अब कोरी झोली।
          आँखों में सरसों फूली है,
सजी टेसुओं की है टोली।
          पीली पड़ी अपत, भारत-भू,
फिर भी नहीं तनिक तू डोली !

- मैथिलीशरण गुप्त

[साभार: स्वदेश-संगीत, साहित्य-सदन, चिरगाँव, झाँसी]

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