प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।
 
ग़नीमत हुई | बोध -कथा (कथा-कहानी)       
Author:कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'

राधारमण हिंदी के यशस्वी लेखक हैं। पत्रों में उनके लेख सम्मान पाते हैं और सम्मेलनों में उनकी रचनाओं पर चर्चा चलती है। रात उनके घर चोरी हो गई। न जाने चोर कब घुसा और उनका एक ट्रंक उठा ले गया - शायद जाग हो गई और उसे बीच में ही भागना पड़ा।

राधारमण बहुत परेशान है। बार-बार उसके मुँह से निकल पड़ता है - "हाय, मेरी तो सारी उमर की कमाई चली गई।"

"अब हुआ सो हुआ। भगवान् और देगा। दुखी मत हो, संतोष कर बेटा।" बड़े ने सांत्वना के शब्द कहे।

कई तरुण कंठ एक साथ खुल पड़े - "राधे! आखिर चला क्या गया?"

"मेरे वाला ट्रंक चला गया और देखो, उसके पास ही किशोरी के ज़ेवर का ट्रंक बच गया।"

"क्या था तुम्हारे ट्रंक में?" उत्सुकता उमड़ पड़ी।

"पुराने मासिक पत्रों की कतरने और मेरे तीन ग्रंथों की पाण्डुलिपियाँ थी। हाय, अब क्या होगा भगवान्!"

बूढ़ों की आकुलता शांत हो गई। उन सबकी ओर से ही जैसे, रमाशंकर ने कहा- "खैर, ग़नीमत हुई बेटा, कि ज़ेवर बच गया। क़ागजों का क्या, फिर लिख लेना। तू तो रात-दिन लिखता ही रहता है।


- कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर

साभार - आकाश के तारे : धरती के फूल

#

 

Bodh Katha by Kanhaiyalal Mishra Prabhakar

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की बोध-कथाएं

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश