जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
 
साथ लिए जा (काव्य)       
Author:डॉ रमेश पोखरियाल निशंक

दुर्गम और भीषण
बड़ी चट्टानें पार कर,
उसको भी तू साथ लिए जा
जो बैठा है हारकर।

क़दम-क़दम तू क़दम बढ़ा
संघर्ष कर जोखिम उठा,
फेंक निराशा को कोसों
तू आशा के गाने गा।

और तभी यह तेरा
लक्ष्य तुझे मिल जाएगा,
घोर अँधेरा चीरकर
तू सदा रोशनी पाएगा।

- रमेश पोखरियाल 'निशंक' 
      [जीवन-पथ में]

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