जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
 
गति का कुसूर (काव्य)       
Author:अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar

क्या होता है कार में
पास की चीज़ें
पीछे दौड़ जाती हैं
तेज़ रफ़्तार में!

और यह शायद
गति का ही कुसूर है,
कि वही चीज
देर तक
साथ रहती है
जो जितनी दूर है ।

-अशोक चक्रधर

[सोची-समझी, प्रतिभा प्रतिष्ठान, नई दिल्ली]

 

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