अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 
छठ पर्व | 10 नवंबर 2021
   
 

छठ पर्व दिवाली के छठे दिन मनाया जाता है।  छठ हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी यानी छठी तिथि पर मनाया जाता है। यह पर्व लोक आस्था से जुड़ा है और सूर्य भगवान को समर्पित है। व्रती 36 घंटे निर्जला व्रत रहती है और भगवान सूर्य की पूजा करती है। छठी मैया की आराधना और सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत का समापन किया जाता है।

छठ पर्व पर हिंदी की साहित्यकार अलका सिन्हा इस पर्व की विस्तृत जानकारी दे रही हैं। अलका सिन्हा की छठ पर्व वीडियो प्रस्तुति देखिए। 

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला यह पर्व पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में छठ पूजा प्रमुख है। संतान की सुख, समृद्धि और दीर्घायु  के लिए इस दिन सूर्य देव और छठी मइया की पूजा की जाती है। इस व्रत में सुबह और शाम को अर्घ्य देने की परंपरा है। 

पौराणिक कथाओं के मुताबिक छठी मइया सूर्य देव की बहन हैं।  नहाए खाए के साथ शुरु होने वाला छठ पूजा का पहला दिन 8 नवंबर, 2021 को है। छठ का दूसरा दिन खरना 9 नवंबर को है। छठ पूजा में खरना का विशेष महत्व होता है। इस दिन व्रत रखा जाता है और रात में खीर का प्रसाद ग्रहंण किया जाता है। छठ का तीसरा दिन छठ पूजा या संध्या अर्घ्य 10 नवंबर 2021, दिन बुधवार को है। 

छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा

छठ पर्व का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। एक कथा के अनुसार प्रथम मानव स्वयंभू मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वे दुःखी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया। इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ। इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुःखी थे। तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं। जब राजा ने उनसे प्रार्थना की, तो उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा - मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं।” इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। ऐसी मान्‍यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया।

 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश