Author's Collection
Total Number Of Record :5आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई? | गीत
आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई?
शिशिर ऋतु की धूप-सा सखि, खिल न पाया मिट गया सुख,
और फिर काली घटा-सा, छा गया मन-प्राण पर दुख,
फिर न आशा भूलकर भी, उस अमा में मुसकराई!
आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई?
हाँ कभी जीवन-गगन में, थे खिले दो-चार तारे,
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इश्क और वो इश्क की जांबाज़ियाँ | ग़ज़ल
इश्क और वो इश्क की जांबाज़ियाँ
हुस्न और ये हुस्न की दम साज़ियाँ
वक्ते-आख़्रिर है, तसल्ली हो चुकी
आज तो रहने दो हेलाबाज़ियाँ
गैर हालत है तेरे बीमार की
अब करेंगी मौत चारासाज़ियाँ
'अश्क' क्या मालूम था, रंग लायेंगी
यों तबीयत की तेरी नासाज़ियाँ
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उसने मेरा हाथ देखा | कविता
उसने मेरा हाथ देखा और सिर हिला दिया,
"इतनी भाव प्रवीणता
दुनिया में कैसे रहोगे!
इसपर अधिकार पाओ,
वरना
लगातार दुख दोगे
निरंतर दुख सहोगे!"
यह उधड़े मांस सा दमकता अहसास,
मै जानता हूँ, मेरी कमज़ोरी है
हल्की सी चोट इसे सिहरा देती है
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सड़कों पे ढले साये | कविता
सड़कों पे ढले साये
दिन बीत गया, राहें
हम देख न उकताये!
सड़कों पे ढले साये
जिनको न कभी आना,
वे याद हमें आये!
सड़कों पे ढले साये
जो दुख से चिर-परिचित
कब दुख से घबराये!
-उपेन्द्रनाथ अश्क
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डाची | कहानी
काट* 'पी सिकंदर' के मुसलमान जाट बाक़र को अपने माल की ओर लालच भरी निगाहों से तकते देखकर चौधरी नंदू पेड़ की छाँह में बैठे-बैठे अपनी ऊंची घरघराती आवाज़ में ललकार उठा, "रे-रे अठे के करे है?*" और उसकी छह फुट लंबी सुगठित देह, जो वृक्ष के तने के साथ आराम कर रही थी, तन गई और बटन टूटे होने का कारण, मोटी खादी के कुर्ते से उसका विशाल सीना और उसकी मज़बूत बाहें दिखाई देने लगीं।
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