Author's Collection
Total Number Of Record :5खूनी पर्चा
अमर भूमि से प्रकट हुआ हूं, मर-मर अमर कहाऊंगा,
जब तक तुझको मिटा न लूंगा, चैन न किंचित पाऊंगा।
तुम हो जालिम दगाबाज, मक्कार, सितमगर, अय्यारे,
डाकू, चोर, गिरहकट, रहजन, जाहिल, कौमी गद्दारे,
खूंगर तोते चश्म, हरामी, नाबकार और बदकारे,
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ओ शासक नेहरु सावधान
ओ शासक नेहरु सावधान,
पलटो नौकरशाही विधान।
अन्यथा पलट देगा तुमको,
मजदूर, वीर योद्धा, किसान।
-वंशीधर शुक्ल
...ओ शासक नेहरु सावधान
ओ शासक नेहरु सावधान,
पलटो नौकरशाही विधान।
अन्यथा पलट देगा तुमको,
मजदूर, वीर योद्धा, किसान।
-वंशीधर शुक्ल
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उठो सोने वालों
उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।
वतन के फ़क़ीरों का फेरा हुआ है॥
उठो अब निराशा निशा खो रही है
सुनहली-सी पूरब दिशा हो रही है
उषा की किरण जगमगी हो रही है
विहंगों की ध्वनि नींद तम धो रही है
तुम्हें किसलिए मोह घेरा हुआ है
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उठ जाग मुसाफिर भोर भई
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है
जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है वो खोवत है
खोल नींद से अँखियाँ जरा और अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीती नहीं प्रभु जागत है तू सोवत है
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