तरुवर हैं सहमे हुए,पंछी सभी उदास।
दाँव लगी है जिन्दगी, दुश्मन बना विकास॥
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काव्य
इस श्रेणी के अंतर्गत
पर्यावरण पर दोहे
सांईं की कुण्डलिया
सांईं बेटा बाप के बिगरे भयो अकाज।
हरिनाकस्यप कंस को गयउ दुहुन को राज॥
गयउ दुहुन को राज बाप बेटा में बिगरी।
दुश्मन दावागीर हँसे महिमण्डल नगरी॥
कह गिरधर कविराय युगन याही चलि आई।
पिता पुत्र के बैर नफ़ा कहु कौने पाईं॥
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वे और तुम | हज़ल
मुहब्बत की रियासत में सियासत जब उभर जाये
प्रिये, तुम ही बताओ जिन्दगी कैसे सुधर जाये?
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भारत भूमि
भलि भारत भूमि भले कुल जन्मु समाजु सरीरु भलो लहि कै।
करषा तजि कै परुषा बरषा हिम मारुत धाम सदा सहि कै॥
जो भजै भगवानु सयान सोई तुलसी हठ चातकु ज्यों ज्यौं गहि कै।
न तु और सबै बिषबीज बए हर हाटक कामदुहा नहि कै॥
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श्रद्धांजलि
अरे राम! कैसे हम झेलें,
अपनी लज्जा उसका शोक।
गया हमारे ही पापों से;
अपना राष्ट्र-पिता परलोक!
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लोहे को पानी कर देना
जब जब भारत पर भीर पड़ी, असुरों का अत्याचार बढ़ा;
मानवता का अपमान हुआ, दानवता का परिवार बढ़ा।
तब तब हो करुणा से प्लावित करुणाकर ने अवतार लिया;
बनकर असहायों के सहाय दानव दल का संहार किया।
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मुहब्बत की जगह | ग़ज़ल
मुहब्बत की जगह, जुमला चला कर देख लेते हैं
ज़माने के लिए, रिश्ता चला कर देख लेते हैं
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भारत माँ की लोरी
यह कैसा कोलाहल, कैसा कुहराम मचा !
है शोर डालता कौन आज सीमाओं पर ?
यह कौन हठी जो आज उठाना चाह रहा
हिम मंडित प्रहरी अपनी क्षुद्र भुजाओं पर ?
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हिंदी में | कविता
लेख लिखा मैंने हिंदी में,
लिखी कहानी हिंदी में
लंदन से वापस आकर फिर,
बोली नानी हिंदी में।
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बेकाम कविता | हास्य कविता
मुझसे एक न पूछा--
"आप क्या करते हैं?"
मैंने कहा--"कविता करता हूँ।"
"कविता तो ठीक है,
आप काम क्या करते हैं?"
मुझे लगा,
कविता करना कोई काम नहीं है।
कविता वह करता है,
जिसको कोई काम नहीं है।
- कुंजबिहारी पांडेय
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मेरी मधुशाला | कविता
अनुभव की भट्टी में तपकर,
बनी आज मेरी हाला।
खट्टा-मीठा कड़ा-कसैला,
रस इसमें मैंने डाला।
मुस्कायेगी कभी अधर पर,
आँसू कभी बहायेगी।
मन अधीर हो जब भी प्रियवर,
आ जाना तुम मधुशाला।।
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हर बार ऐसा हुआ है | कविता
हर बार ऐसा हुआ है
जब तुम याद आई हो
कुछ और कहने की कोशिश में
कुछ और कह गई हूँ मैं,
बोलते- बोलते हो गई ख़ामोश
या कुछ का कुछ लिख गई
अचानक खो बैठी होश
सबने सोचा— मैं नशे में हूँ
तुम ये क्यों करती हो?
तुम रखकर
मेरे होठों पर अपनी उँगली
मेरा हाथ थामकर क्या ये चाहती हो
कि मेरी रुसवाई हो?
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मेरी माँ
अमिट प्रेम की पीयूष निर्झर
क्षमा दया की सरिता हो।
गीत ग़ज़ल चौपाई तुम हो
मेरे मन की कविता हो॥
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कवि कौन?
कोरे कागज को रंगीन कर दे।
ये सिर्फ कवि का काम होता है॥
लफ़्ज़ों से महफ़िल सजाना हो।
ये सब के वश में कहाँ होता है॥
कल्पनाओं का अथाह खजाना।
केवल कवि के ही पास होता है॥
सजीव चित्रण करता है कवि।
उसे प्रकृति से भी प्रेम होता है॥
विसंगतियों से रूबरू करवाना।
कवि का असली काम होता है॥
बातों ही बातों में हास्य खोजना।
इस कला में माहिर कवि होता है॥
घण्टों साधना करता है कवि देखो।
तभी उसे छन्द का ज्ञान होता है॥
तुलसी रसखान मीरा सा साहसी।
कवि के अलावा यहाँ कौन होता है॥
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सहज गीत गाना होता तो | गीत
सहज गीत गाना होता तो, पीड़ा का यह ज्वार न होता।
लय की भाँवर स्वर से पड़तीं, गीत कभी बेज़ार न रोता॥
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कबीरा खैर मनाए
अंगारों पर आँसू बोयें इस बस्ती के लोग
कबीरा खैर मनाए।
जग के सारे रिश्ते नाते दो अंकों का योग
कबीरा खैर मनाए।
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