मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।

ऋतु फागुन नियरानी हो

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 कबीरदास | Kabirdas

ऋतु फागुन नियरानी हो,
कोई पिया से मिलावे ।
सोई सुदंर जाकों पिया को ध्यान है, 
सोई पिया की मनमानी,
खेलत फाग अगं नहिं मोड़े,
सतगुरु से लिपटानी ।
इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची,
इक इक कुल अरुझानी ।
इक इक नाम बिना बहकानी,
हो रही ऐंचातानी ।।

पिय को रूप कहाँ लगि बरनौं,
रूपहि माहिं समानी ।
जौ रँगे रँगे सकल छवि छाके,
तन- मन सबहि भुलानी।
यों मत जाने यहि रे फाग है,
यह कछु अकथ- कहानी ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो,
यह गति विरलै जानी ।।

             - कबीर

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश