समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।

कर्तव्य-निष्ठा

 (कथा-कहानी) 
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रचनाकार:

 विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

अचानक आधी रात के समय कुछ लोगों ने विलियम कार्टराइट की मिल पर धावा बोल दिया। यह मशीन-युग के शुरुआत की बात है। उस काल में ऐसी घटनाएँ अकसर होती रहती थीं। मशीन ने शरीर-श्रम की जीविका छीन ली थी। यह धावा भी इसी कारण हुआ था। धावा करने वाले भयानक शस्त्रों से सज्जित थे। उधर मिलवाले भी असावधान नहीं थे। उन्होंने ईंट का जवाब पत्थर से दिया। दोनों ओर से अनेक व्यक्ति घायल हुए।

धावा बोलनेवालों में बूथ नाम का एक युवक था। उसकी आयु केवल उन्नीस वर्ष थी। इस हमले में उसकी एक टाँग टूट गई। वह भाग नहीं सका और मिलवालों के हाथ पड़ गया। उसे अस्पताल ले जाया गया। वहाँ उसके पास सदा एक पादरी बैठा रहता था। मिल-मालिकों को आशा थी कि वह पादरी को अपने दूसरे साथियों के नाम बता देगा। वे उन सब पर मुकदमा चलाना चाहते थे।

बूथ इस बात को जानता था। एक दिन जब प्रभात की किरणें फूट रही थीं, उसने पादरी को अपने पास आने का संकेत किया। पादरी की आशा जगी। उसने बहुत ही प्यार से पूछा, "कहो बेटे, क्या बात है?"

बूथ ने धीमे, पर दृढ़ स्वर में कहा, "अगर कोई आपको अपना रहस्य बताए तो क्या आप उसे गुप्त रख सकते ?"

"हाँ-हाँ, क्यों नहीं!" पादरी ने बेहद प्रसन्न होकर जवाब दिया, "मैं विश्वासघात को सबसे बड़ा पाप मानता हूँ, मेरे बच्चे!"

बूथ के मुख पर प्रसन्नता की रेखाएँ चमक उठीं। उसने मुस्कराकर शांति से कहा, "मैं भी यही मानता हूँ।" इसके कुछ क्षण बाद ही, उस रहस्य को अपनी छाती में छिपाए हुए, उसने आखिरी साँस ली।

- विष्णु प्रभाकर

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