समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।

तुलसीदास के लोकप्रिय दोहे

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 तुलसीदास | Tulsidas

काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान।।

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर ।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।

तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक।।

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण।।

आवत ही हरषै नहीं नैनं नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।

लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन।
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन।।

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।।

तुलसी इस संसार में, भांति-भांति के लोग।
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग।।

-तुलसीदास

 

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