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Literature Under This Category | ||
मैथिलीशरण गुप्त की बाल-कवितायें - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
मैथिलीशरण गुप्त यद्यपि बालसाहित्य की मुख्यधारा में सम्मिलित नही तथापि उन्होंने कई बाल-कविताओं से हिन्दी बाल-काव्य को समृद्ध किया है। उनकी 'माँ, कह एक कहानी' कविता के अतिरिक्त 'सर्कस' व 'ओला' बाल-कविताएँ अत्यंत लोकप्रिय रचनाएं हैं। यहाँ उनकी बाल-कविताओं को संकलित किया गया है। |
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सरकस | बाल-कविता - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
होकर कौतूहल के बस में, |
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चूहे की दिल्ली-यात्रा - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
चूहे ने यह कहा कि चुहिया! छाता और घड़ी दो, |
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लाल बहादुर शास्त्री | कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
लालों में वह लाल बहादुर, |
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दो अक्टूबर - रत्न चंद 'रत्नेश' - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
लाल बहादुर, महात्मा गांधी |
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स्कूल में लग जाये ताला | बाल कविता - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas | ||
अब से ऐसा ही हो जाये |
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चिट्ठी | बाल कविता - प्रकाश मनु | Prakash Manu | ||
चिट्ठी में है मन का प्यार |
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मैंने झूठ बोला था | बाल कथा - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
एक बालक था। नाम था उसका राम। उसके पिता बहुत बड़े पंडित थे। वह बहुत दिन जीवित नहीं रहे। उनके मरने के बाद राम की माँ अपने भाई के पास आकर रहने लगी। वह एकदम अनपढ़ थे। ऐसे ही पूजा-पाठ का ठोंग करके जीविका चलाते थे। वह झूठ बोलने से भी नहीं हिचकते थे। |
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वंदना | बाल कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
मैं अबोध सा बालक तेरा, |
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भारत-दर्शन संकलन - अकबर बीरबल के किस्से | ||
प्राचीनकाल के राजदरबारों में सब प्रकार के गुणियों का सम्मान किया जाता था। बादशाह अकबर के दरबार में बीरबल अपनी विनोदप्रियता व कुशाग्रबुद्धि के लिए जाने जाते थे। अकबरी राजसभा के नौरत्नों में बीरबल कोहेनूर हीरा कहे जा सकते हैं। |
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छुट्कल मुट्कल बाल कविताएं - दिविक रमेश | ||
दिविक रमेश की बाल कविताएं । |
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दो गौरैया | बाल कहानी - भीष्म साहनी | Bhisham Sahni | ||
घर में हम तीन ही व्यक्ति रहते हैं-माँ, पिताजी और मैं। पर पिताजी कहते हैं कि यह घर सराय बना हुआ है। हम तो जैसे यहाँ मेहमान हैं, घर के मालिक तो कोई दूसरे ही हैं। |
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बच्चो, चलो चलाएं चरखा - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
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बन जाती हूं - दिविक रमेश | ||
चींचीं चींचीं |
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एक हमारी धरती सबकी - द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी | ||
एक हमारी धरती सबकी |
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सब की दुनिया एक - | ||
धरती है हम सब की एक |
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हिन्दी ही अपने देश का गौरव है मान है - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
पश्चिम की सभ्यता को तो अपना रहे हैं हम, |
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किसे नहीं है बोलो ग़म - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
साँसों में है जब तक दम |
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लड्डू ले लो | बाल-कविता - माखनलाल चतुर्वेदी | ||
ले लो दो आने के चार |
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बया | बाल-कविता - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma | ||
बया हमारी चिड़िया रानी। |
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चिड़िया का घर | बाल-कविता - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
चिड़िया, ओ चिड़िया, |
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गिरगिट का सपना - मोहन राकेश | Mohan Rakesh | ||
एक गिरगिट था। अच्छा, मोटा-ताजा। काफी हरे जंगल में रहता था। रहने के लिए एक घने पेड़ के नीचे अच्छी-सी जगह बना रखी थी उसने। खाने-पीने की कोई तकलीफ नहीं थी। आसपास जीव-जन्तु बहुत मिल जाते थे। फिर भी वह उदास रहता था। उसका ख्याल था कि उसे कुछ और होना चाहिए था। और हर चीज, हर जीव का अपना एक रंग था। पर उसका अपना कोई एक रंग था ही नहीं। थोड़ी देर पहले नीले थे, अब हरे हो गए। हरे से बैंगनी। बैंगनी से कत्थई। कत्थई से स्याह। यह भी कोई जिन्दगी थी! यह ठीक था कि इससे बचाव बहुत होता था। हर देखनेवाले को धोखा दिया जा सकता था। खतरे के वक्त जान बचाई जा सकती थी। शिकार की सुविधा भी इसी से थी। पर यह भी क्या कि अपनी कोई एक पहचान ही नहीं! सुबह उठे, तो कच्चे भुट्टे की तरह पीले और रात को सोए तो भुने शकरकन्द की तरह काले! हर दो घण्टे में खुद अपने ही लिए अजनबी! |
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बुढ़िया - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी | ||
बुढ़िया चला रही थी चक्की |
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काठ का घोड़ा - मोहनलाल महतो वियोगी | ||
चलता नहीं काठ का घोड़ा! |
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नया साल आया - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas | ||
नया साल आया |
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अगर कहीं मैं पैसा होता ? - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
पढ़े-लिखों से रखता नाता, |
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चंदा मामा - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh | ||
चंदा मामा, दौड़े आओ |
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प्रेमचंद की बाल कहानियां - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
प्रेमचंद ने बाल साहित्य भी रचा है। 1948 में सरस्वती प्रेस से श्रीपतराय (प्रेमचन्द के पुत्र) ने 'जंगल की कहानियां' नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई थी जिसमें प्रेमचंद की 12 बाल कहानियां थीं। इसके अतिरिक्त भी प्रेमचंद ने बच्चों के लिए एक लम्बी कहानी 'कुत्ते की कहानी' व 'कलम, तलवार और त्याग' जिसमें महापुरुषों के जीवन की कथाएं लिखी हैं। यहाँ उन्हीं में से कुछ को संकलित करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रेमचंद का बाल-साहित्य इस प्रकार हैं : माहात्मा शेख सादी, राम चर्चा, जगंल की कहानियाँ, कुत्ते की कहानी, दुर्गादास और कलम, तलवार और त्याग (दो भाग)। जंगल की कहानियां |
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जंगल की कहानियाँ - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
सरस्वती प्रेस से श्रीपतराय (प्रेमचन्द के पुत्र) ने 1948 में 'जंगल की कहानियां' नामक पुस्तक प्रकाशित की थी जिसमें प्रेमचंद की 12 बाल कहानियां हैं। इन बाल कहानियों में - शेर और लड़का, बनमानुष की दर्दनाक कहानी, दक्षिण अफ्रीका में शेर का शिकार, गुब्बारे का चीता, पागल हाथी, साँप की मणि, बनमानुष का खानसामा, मिट्ठू, पालतू भालू, बाघ की खाल, मगर का शिकार, और जुड़वा भाई सम्मिलित हैं। |
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शेर और लड़का - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
बच्चो, शेर तो शायद तुमने न देखा हो, लेकिन उसका नाम तो सुना ही होगा। शायद उसकी तस्वीर देखी हो और उसका हाल भी पढ़ा हो। शेर अकसर जंगलों और कछारों में रहता है। कभी-कभी वह उन जंगलों के आस-पास के गाँवों में आ जाता है और आदमी और जानवरों को उठा ले जाता है। कभी-कभी उन जानवरों को मारकर खा जाता है जो जंगलों में चरने जाया करते हैं। थोड़े दिनों की बात है कि एक गड़रिये का लड़का गाय-बैलों को लेकर जंगल में गया और उन्हें जंगल में छोड़कर आप एक झरने के किनारे मछलियों का शिकार खेलने लगा। जब शाम होने को आई तो उसने अपने जानवरों को इकट्ठा किया, मगर एक गाय का पता न था। उसने इधर-उधर दौड़-धूप की, मगर गाय का पता न चला। बेचारा बहुत घबराया। मालिक अब मुझे जीता न छोड़ेंगे। उस वक्त ढूंढने का मौका न था, क्योंकि जानवर फिर इधर-उधर चले जाते; इसलिए वह उन्हें लेकर घर लौटा और उन्हें बाड़े में बाँधकर, बिना किसी से कुछ कहे हुए गाय की तलाश में निकल पड़ा। उस छोटे लड़के की यह हिम्मत देखो; अँधेरा हो रहा है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, जंगल भाँय-भाँय कर रहा है. गीदड़ों का हौवाना सुनाई दे रहा है, पर वह बेखौफ जंगल में बढ़ा चला जाता है। |
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नटखट चिड़िया - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
चीं-चीं करके गाती चिड़िया |
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अक्कड़ मक्कड़ - भवानी प्रसाद मिश्र | Bhawani Prasad Mishra | ||
अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़ |
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मेरा भी तो मन करता है - डॉ. जगदीश व्योम | ||
मेरा भी तो मन करता है |
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ऐसा वर दो - त्रिलोक सिंह ठकुरेला | ||
भगवन् हमको ऐसा वर दो। |
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बाल-दिवस | कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
भोले भाले बालक सारे। हैं चाचा नेहरू के प्यारे ।। |
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होली आई रे | बाल कविता - प्रकाश मनु | Prakash Manu | ||
चिट्ठी में है मन का प्यार |
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जिद्दी मक्खी - दिविक रमेश | ||
कितनी जिद्दी हो तुम मक्खी |
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वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो - द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी | ||
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो! |
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बनमानुस की दर्दनाक कहानी - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
आज हम तुम्हें एक बनमानुस का हाल सुनाते हैं। सामने जो तसवीर है, उससे तुम्हें मालूम होगा कि बनमानुस न तो पूरा बंदर है, न पूरा आदमी। वह आदमी और बन्दर के बीच में एक जानवर है। मगर वह बड़ा बलवान होता है और आदमियों को बड़ी आसानी से मार डालता है। वह अधिकतर अफ्रीका के जंगल में पाया जाता है। |
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बचपन से दूर हुए हम - डॉ. जगदीश व्योम | ||
छीनकर खिलौनो को बाँट दिये गम |
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पापा, मुझे पतंग दिला दो - त्रिलोक सिंह ठकुरेला | ||
पापा, मुझे पतंग दिला दो, |
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सीधा-सादा - शेरजंग गर्ग | ||
सीधा-सादा सधा सधा है |
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कैंप गीत - डॉ. वंदना मुकेश | इंग्लैंड | ||
इक नया भारत यहाँ बसाएंगे |
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चाचा नेहरू, तुम्हें प्रणाम | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
तुमने किया स्वदेश स्वतंत्र, फूंका देश-प्रेम का मन्त्र, |
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जब बांधूंगा उनको राखी - दिविक रमेश | ||
माँ मुझको अच्छा लगता जब |
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मुर्गे जी महाराज - सुभाष मुनेश्वर | न्यूज़ीलैंड | ||
सुबह उठे कि दिये बाँग |
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दक्षिणी अफ्रीका में शेर का शिकार - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
एक मशहूर शिकारी ने एक शेर के शिकार का हाल लिखा है। आज हम उसकी कथा उसी की ज़बान से सुनाते हैं--कई साल हुए एक दिन मैं नौरोबी की एक चौड़ी गली से जा रहा था कि एक शेरनी पर नज़र पड़ी जो अपने दो बच्चों समेत झाड़ियों की तरफ़ चली जा रही थी। शायद शिकार की तलाश में बस्ती में घुस आई थी। उसे देखते ही मैं लपककर अपने घर आया और एक रायफल लेकर फिर उसी तरफ़ चला। संयोग से चाँदनी रात थी। मैंने आसानी से शेरनी को मार डाला और उसके दोनों बच्चों को पकड़ लिया। इन बच्चों की उम्र ज्यादा न थी, सिर्फ तीन हफ्ते के मालूम होते थे। एक नर था; दूसरा मादा। मैंने नर का नाम जैक और मादा का जिल रखा। जैक तो जल्द बीमार होकर मर गया, जिल बच रही । जिल अपना नाम समझती और मेरी आवाज़ पहचानती थी। मैं जहाँ जाता, वहाँ कुत्ते की तरह मेरे पीछे-पीछे चलती। मेरे कमरे में फ़र्श पर लेटी रहती थी। अक्सर मेरे पैरों पर सो जाती और जागने के बाद अपने पंजे मेरे घुटनों पर रखकर बिल्ली की तरह मेरा सिर अपने चेहरे पर मलती। |
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ओला | बाल-कविता - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
एक सफेद बड़ा-सा ओला, |
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प्यारे बच्चो | बाल कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
सुबह सवेरे उठकर बच्चो! |
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मेरी बॉल - दिविक रमेश | ||
अरे क्या सचमुच गुम हो गई |
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नेहरू-स्मृति-गीत | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
जन्म-दिवस पर नेहरू चाचा, याद तुम्हारी आई। |
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चाचा नेहरू | बाल कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
वह मोती का लाल जवाहर, |
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बीरबल की खिचड़ी - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक बार बादशाह अकबर ने घोषणा की कि जो आदमी सर्दी के मौसम में नदी के ठंडे पानी में रात भर खड़ा रहेगा, उसे भारी भरकम तोहफ़े से पुरस्कृत किया जाएगा। |
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शब्द शब्द जैसे हों फूल - दिविक रमेश | ||
अच्छी पुस्तक बगिया जैसी |
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चिड़िया - त्रिलोक सिंह ठकुरेला | ||
घर में आती जाती चिड़िया । |
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नेहरू चाचा | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
सब नेताओ से न्यारे तुम, बच्चो को सबसे प्यारे तुम, |
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चिन्टू जी | बाल कविता - प्रकाश मनु | Prakash Manu | ||
सब पर अपना रोब जमाते |
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मासूम सज़ा - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक दिन बादशाह अकबर ने दरबार में आते ही दरबारियों से पूछा - किसी ने आज मेरी मूंछें नोचने की जुर्रत की। उसे क्या सज़ा दी जानी चाहिए। |
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आओ चलें घूम लें हम भी - दिविक रमेश | ||
छुट्टियों के आने से पहले |
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तूफ़ान में नाव - लियो टोल्स्टोय | Leo Tolstoy | ||
कुछ मछुए नाव में जा रहे थे। तूफान आ गया। मछुए डर गये। उन्होंने चप्पू फेंक दिये और भगवान से प्रर्थना करने लगे कि वह उनकी जान बचा दे। |
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नानी का बटुआ - प्रकाश मनु | Prakash Manu | ||
कुक्कू को टॉफियाँ खाना अच्छा लगता था। रोज वह सुबह-शाम नानी से कहता, ''नानी...नानी, पैसे दो। टॉफियाँ लेनी हैं।'' |
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जीवन में नव रंग भरो - त्रिलोक सिंह ठकुरेला | ||
सीना ताने खड़ा हिमालय, |
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बाल-दिवस है आज साथियो | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
बाल-दिवस है आज साथियो, आओ खेलें खेल । |
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सही और गलत के बीच का अंतर - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक बार अकबर बादशाह ने सोचा, ‘हम रोज-रोज न्याय करते हैं। इसके लिए हमें सही और गलत का पता लगाना पड़ता है। लेकिन सही और गलत के बीच आखिर कितना अंतर होता है?' |
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आओ महीनो आओ घर | बाल कविता - दिविक रमेश | ||
अपनी अपनी ले सौगातें |
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घोड़ा और घोड़ी - लियो टोल्स्टोय | Leo Tolstoy | ||
एक घोड़ी दिन-रात खेत में चरती रहती , हल में जुता नहीं करती थी, जबकि घोड़ा दिन के वक्त हल में जुता रहता और रात को चरता। घोड़ी ने उससे कहा, "किसलिये जुता करते हो? तुम्हारी जगह मैं तो कभी ऐसा न करती। मालिक मुझ पर चाबुक बरसाता, मैं उस पर दुलत्ती चलाती।" |
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जुगनू की टॉर्च | हास्य कविता - प्रकाश मनु | Prakash Manu | ||
मैंने पूछा जुगनू से, |
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काकी - सियाराम शरण गुप्त | Siyaram Sharan Gupt | ||
उस दिन बड़े सवेरे श्यामू की नींद खुली तो उसने देखा घर भर में कुहराम मचा हुआ है। उसकी माँ नीचे से ऊपर तक एक कपड़ा ओढ़े हुए कम्बल पर भूमि-शयन कर रही है और घर के सब लोग उसे घेर कर बड़े करुण स्वर में विलाप कर रहे हैं। |
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दद्दू का पिद्दू - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava | ||
गोटिया और लूसी के दादाजी का नाम मस्त राम है। नाम के अनुरूप वह हमेशा मस्त ही रहते हैं। व्यर्थ की चिंताओं को पाल कर रखना उनकी आदतों में शुमार नहीं है ।अगर भूले भटके कोई चिंता आ ही गई तो उसे वह सांप की केंचुली की तरह उतार फेंकते हैं। चिंता भी अकसर उनसे दूर ही रहती है। वह जानती है कि यह मस्त राम नाम प्राणी उसे अपने पास टिकने नहीं देगा ।इसलिए उसके पास जाने से क्या लाभ ।और वह दूसरे ठिकाने तलाशने निकल जाती है। |
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नई सदी के बच्चे - त्रिलोक सिंह ठकुरेला | ||
नई सदी के बच्चे हैं हम |
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आ गया बच्चों का त्योहार | Bal Diwas Hindi poem - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
आ गया बच्चों का त्योहार ! |
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खेल महीनों का | बाल कविता - दिविक रमेश | ||
अच्छी लगती हमें जनवरी |
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बीरबल की पैनी दृष्टि - अकबर बीरबल के किस्से | ||
बीरबल बहुत नेक दिल इंसान थे। वह सैदव दान करते रहते थे और इतना ही नहीं, बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी ज्यादातर गरीबों और दीन-दुःखियों में बांट देते थे, परन्तु इसके बावजूद भी उनके पास धन की कोई कमी न थी। दान देने के साथ-साथ बीरबल इस बात से भी चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति उन्हें अपनी दीनता दिखाकर ठग न लें। |
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नेता जी सुभाषचन्द्र बोस - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
वह इस युग का वीर शिवा था, |
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डर भी पर लगता तो है न | बाल कविता - दिविक रमेश | ||
चटख मसाले और अचार |
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दादी कहती दाँत में | बाल कविता - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
दादी कहती दाँत में मंजन नित कर नित कर नित कर |
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कितना अच्छा होता न तब | बाल कविता - दिविक रमेश | ||
सब कहीं ले जा सकते हम! |
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चूड़ियों की गिनती | अकबर बीरबल के किस्से - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा, "बीरबल, तुम दिन में अपनी पत्नी का हाथ एक या दो बार तो अवश्य ही पकड़ते होंगे। क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारी पत्नी की कलाई में कितनी चूड़ियां हैं?'' |
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चारों मूर्ख हाजिर हैं | अकबर बीरबल के किस्से - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल को आदेश दिया, "चार ऐसे मूर्ख ढूंढकर लाओ जो एक से बढ़कर एक हों। यह काम कोई कठिन नहीं है क्योंकि हमारा राज्य तो क्या, पूरी दुनिया मूर्खों से भरी पड़ी है।" |
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अपनी भाषा - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
करो अपनी भाषा पर प्यार। |
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कम्प्यूटर | बाल गीत - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
नहीं चाहिए मुझको ट्यूटर |
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मैं पढ़ता दीदी भी पढ़ती | बाल कविता - दिविक रमेश | ||
कभी कभी मन में आता है |
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ईस्टर की छुट्टी | बाल कविता - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
तेरी मेरी कुट्टी |
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दीदी को बतलाऊंगी मैं | बाल कविता - दिविक रमेश | ||
बड़ी हो गई अब यह छोड़ो |
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छूमन्तर मैं कहूँ... - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
छूमन्तर मैं कहूँ और फिर, |
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मिट्ठू - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
बंदरों के तमाशे तो तुमने बहुत देखे होंगे। मदारी के इशारों पर बंदर कैसी-कैसी नकलें करता है, उसकी शरारतें भी तुमने देखी होंगी। तुमने उसे घरों से कपड़े उठाकर भागते देखा होगा। पर आज हम तुम्हें एक ऐसा हाल सुनाते हैं, जिससे मालूम होगा कि बंदर लड़कों से भी दोस्ती कर सकता है। |
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उसे कुछ मिला, नहीं | बाल कविता - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
कूड़े के ढेर से |
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छोटा बांस, बड़ा बांस - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
एक दिन बीरबल बादशाह अकबर के साथ बाग में सैर कर रहे थे। बीरबल साथ चलते-चलते लतीफा सुना रहे थे और अकबर उसका आनंद ले रहे थे। तभी बादशाह अकबर को घास पर पड़ा एक बांस का एक टुकड़ा दिखाई दिया। बस उन्हें बीरबल की परीक्षा लेने की सूझ गई। बीरबल को बांस का वह टुकड़ा दिखाते हुए बादशाह अकबर बोले, ‘‘बीरबल! क्या तुम इस बांस के टुकड़े को बिना काटे छोटा कर सकते हो ?'' |
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फ़ौसफ़र - दिव्या माथुर | ||
बिन्नी बुआ का सही नाम बिनीता है पर सब उन्हें प्यार से बिन्नी कहते हैं। बिन्नी बुआ के पालतु बिल्ले का नाम फ़ौसफ़र है और फ़ौसफ़र के नाम के पीछे भी एक मज़ेदार कहानी है। जब बिन्नी बुआ उसे पहली बार घर में लाईं थीं तो उसके चमकते हुए सफ़ेद और काले कोट को देख कर ईशा ने चहकते हुए कहा था। |
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किस नदी का पानी सबसे अच्छा - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक बार अकबर ने अपने दरबारियो से पूछा, "बताओ किस नदी का पानी सबसे अच्छा है?" |
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आरी नींद...| लोरी - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh | ||
आरी नींद लाल को आजा। |
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किसका नौकर कौन? - अकबर बीरबल के किस्से | ||
बादशाह अकबर और उनके बीरबल जब कभी भी अकेले होते तो किसी न किसी बात पर चर्चा करते ही रहते। एक दिन बादशाह अकबर बैंगन की खूब तारीफ़ करने लगे। |
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अच्छा कौन? - अकबर बीरबल के किस्से | ||
एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठा हुआ दरबारियों से दिल-बहलाव कर रहा था, इसी बीच बीरबल भी आ पहुँचा! बादशाह ने बीरबल से पूछा-- बीरबल!क्या बतला सकते हो कि फल कौनसा अच्छा? दूध किसका अच्छा, पत्ता किसका अच्छा, फूल कौन सा अच्छा, मिठास कौन सी अच्छी, राजा कौन अच्छा ? |
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चतुर चित्रकार - रामनरेश त्रिपाठी | ||
चित्रकार सुनसान जगह में बना रहा था चित्र। |
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नदी क्यों रोती है? - अकबर बीरबल के किस्से | ||
वर्षा ऋतु का समय था। यमुना नदी अपने उफान पर थी। बादशाह अकबर बीरबल के साथ बुर्जी पर चढ़ यमुना की सुंदरता निहार रहे थे। |
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कई बोलियाँ बोलने वाला - अकबर बीरबल के किस्से | ||
अकबर और बीरबल का विनोद चलता रहता था। एकक बार वे बगीचे में बैठे थे। अचानक अकबर ने बीरबल से पूछा कि क्या तुम किसी ऐसे इनसान को खोज सकते हो जो कई अलग-अलग बोलियाँ बोलता हो? |
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कोयल - सुभद्रा कुमारी | ||
देखो कोयल काली है, पर मीठी है इसकी बोली! |
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मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी - द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी | ||
मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी |
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आप बादशाह कैसे होते? - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
अकबर बादशाह ने बीरबल से कहा, 'बीरबल ! अगर बादशाहत हमेशा कायम रहती तो कैसा होता?' |
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प्रार्थना - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
प्रभो, |
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घास में होता विटामिन - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
घास में होता विटामिन |
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चार बाल गीत - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava | ||
यात्रा करो टिकिट लेकर |
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पानी और धूप - सुभद्रा कुमारी | ||
अभी अभी थी धूप, बरसने |
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जयप्रकाश मानस की दो बाल-कविताएं - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas | ||
एक बनेंगेहम हैं बच्चेमन के सच्चे आगे कदम बढ़ाएंगे, भूले भटके राह में अटके सबको राह दिखाएंगे नहीं लड़ेंगे एक बनेंगे मिलकर 'जन गण' गाएंगे नहीं डरेंगे टूट पड़ेंगे न संकट से घबराएंगे। |
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चने का लटका | बाल-कविता - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | ||
चना जोर गरम। |
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पंछी का मन दुखता | बाल-कविता - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas | ||
कुआं है गांव में |
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जंगल में पढ़ाई | बाल-कविता - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas | ||
एक दिन सभी पंछी ने सोचा |
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मामू की शादी में - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
मामू की शादी में हमने, खूब मिठाई खाई। |
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खेल हमारे - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
गुल्ली डंडा और कबड्डी, |
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राजकुमार की प्रतिज्ञा | Rajkumar Ki Pritigya - यशपाल जैन | Yashpal Jain | ||
यशपाल ने अनेक बालोपयोगी कहानियां लिखी, पर उपन्यास नहीं लिखा था। अचानक उन्हें आभास हुआ कि बच्चों के लिए उपन्यास भी लिखना चाहिए और उनकी लेखनी उस दिशा में चल पड़ी। लगभग सवा महीने में यह रचना पूरी हो गई। |
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राजकुमार की प्रतिज्ञा - भाग १ - यशपाल जैन | Yashpal Jain | ||
पुराने जमाने की बात है। एक राजा था। उसके सात लड़के थे। छ: का विवाह हो गया था। सातवां अभी कुंवारा था। एक दिन वह महल में बैठा था कि उसे बड़े जोर की प्यास लगी। उसने इधर-उधर देखा तो सामने से उसकी छोटी भाभी आती दिखाई दीं। उसने कहा, "भाभी, मुझे एक गिलास पानी दे दो।" महल में इतने नौकर-चाकर होते हुए भी सबसे छोटे राजकुमार की यह हिम्मत कैसे हुई, भाभी मन-ही मन खीज उठीं। उन्होंने व्यंग्य भरे स्वर में कहा, "तुम्हारा इतना ऊंचा दिमाग है तो जाओ, रानी पद्मिनी को ले आओ।" |
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राजकुमार की प्रतिज्ञा - भाग 2 - यशपाल जैन | Yashpal Jain | ||
राजकुमार ने चलते-चलते कहा, "यह तो पहला पड़ाव था, अभी तो जाने कितने पड़ाव और आयेंगे।" |
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राजकुमार की प्रतिज्ञा - भाग 3 - यशपाल जैन | Yashpal Jain | ||
वजीर के लड़के ने दरवाजे पर जाकर उसे खटखटाया, पर कोई नहीं बोला। उसने मन-ही-मन कहा, "यह एक नई मुसीबत सिर पर आ गई। पर अब हो क्या सकता था!" उसने बार-बार दरवाजा खटखटाया, राजकुमार को पुकारा, लेकिन कोई नहीं बोला। हारकर वह अपनी जगह पर बैठ गया और राजकुमार के आने की प्रतीक्षा करने लगी। |
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मिट्ठू - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
बंदरों के तमाशे तो तुमने बहुत देखे होंगे। मदारी के इशारों पर बंदर कैसी-कैसी नकलें करता है, उसकी शरारतें भी तुमने देखी होंगी। तुमने उसे घरों से कपड़े उठाकर भागते देखा होगा। पर आज हम तुम्हें एक ऐसा हाल सुनाते हैं, जिससे मालूम होगा कि बंदर लड़कों से भी दोस्ती कर सकता है। |
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परीक्षा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए तो परमात्मा की याद आई। जा कर महाराज से विनय की कि दीनबंधु! दास ने श्रीमान् की सेवा चालीस साल तक की, अब मेरी अवस्था भी ढल गई, राज-काज संभालने की शक्ति नहीं रही। कहीं भूल-चूक हो जाए तो बुढ़ापे में दाग लगे। सारी ज़िंदगी की नेकनामी मिट्टी में मिल जाए। |
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डा रामनिवास मानव की बाल-कविताएं - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
डा रामनिवास मानव की बाल-कविताएं |
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चिड़िया रानी - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
सदा फुदकती, कभी न थकती, |
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मिस्टर चूहेराम - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
मिस्टर चूं-चूं चूहेराम, |
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बन्दर मामा - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
पहन नया कुर्ता-पजामा, |
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मैडम की सीख - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
भारी-भरकम बस्ता लेकर, |
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मोनू का उत्पात - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
पापाजी का पैन चुरा कर |
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तोता-कहानी | रबीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
एक था तोता । वह बड़ा मूर्ख था। गाता तो था, पर शास्त्र नही पढ़ता था । उछलता था, फुदकता था, उडता था, पर यह नहीं जानता था कि क़ायदा-क़ानून किसे कहते हैं । |
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अनधिकार प्रवेश | रबीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
एक दिन प्रात:काल की बात है कि दो बालक राह किनारे खड़े तर्क कर रहे थे। एक बालक ने दूसरे बालक से विषम-साहस के एक काम के बारे में बाज़ी बदी थी। विवाद का विषय यह था कि ठाकुरबाड़ी के माधवी-लता-कुंज से फूल तोड़ लाना संभव है कि नहीं। एक बालक ने कहा कि 'मैं तो ज़रूर ला सकता हूँ' और दूसरे बालक का कहना था कि 'तुम हरगिज़ नहीं ला सकते।' |
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विपदाओं से रक्षा करो, यह न मेरी प्रार्थना | बाल-कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
विपदाओं से रक्षा करो- |
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ओ मेरे देश की मिट्टी | बाल-कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
ओ मेरे देश की मिट्टी, तुझपर सिर टेकता मैं। |
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राजा का महल | बाल-कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
नहीं किसी को पता कहाँ मेरे राजा का राजमहल! |
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चुन्नी-मुन्नी - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
मुन्नी और चुन्नी में लाग-डाट रहती है । मुन्नी छह बर्ष की है, चुन्नी पाँच की । दोनों सगी बहनें हैं । जैसी धोती मुन्नी को आये, वैसी ही चन्नी को । जैसा गहना मुन्नी को बने, वैसा ही चुन्नी को । मुन्नी 'ब' में पढ़ती थीँ, चुन्नी 'अ' में । मुन्नी पास हो गयी, चुन्नी फ़ेल । मुन्नी ने माना था कि मैं पास हो जाऊँगी तो महाबीर स्वामी को मिठाई चढ़ाऊंगी । माँ ने उसके लिए मिठाई मँगा दी । चुन्नी ने उदास होकर धीमे से अपनी माँ से पूछा, अम्मा क्या जो फ़ेल हो जाता है वह मिठाई नहीं चढ़ाता? |
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विष्णु प्रभाकर की बालकथाएं - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
विष्णु प्रभाकर की बालकथाएं |
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ध्वनि - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
अभी न होगा मेरा अंत |
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मीठे बोल - डा राणा का बाल साहित्य - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
बच्चों के लिए लिखने वाले के पास बच्चों जैसा सरल एवं निश्छल मन भी होना चाहिए । प्राय: कहा जाता है कि बच्चों के लिए लिखने वालों की संख्या अधिक नहीं है । कुछ कलमकार बड़ों के साथ-साथ बच्चों के लिए भी लिखते रहते हैं । ऐसे कलमकारों में आप मेरी गणना भी कर सकते हैं । कुछ ऐसे भी कलमकार हैं जो लिखते ही बच्चों के लिए हैं । हरियाणा में ऐसे कलमकार के रूप में: श्री घमंडी लाल अग्रवाल ने अपनी विशेष पहचान बनाई है । |
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चिड़िया फुर्र - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
अभी दो चार दिनों से देवम के घर के बरामदे में चिड़ियों की आवाजाही कुछ ज्यादा ही हो गई थी। चिड़ियाँ तिनके ले कर आती, उन्हें ऊपर रखतीं और फिर चली जातीं दुबारा, तिनके लेने के लिये। |
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पीछे मुड़ कर कभी न देखो - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना, |
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सूरज दादा कहाँ गए तुम - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
सूरज दादा कहाँ गए तुम, |
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बगीचा - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
मेरे घर में बना बगीचा, |
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चलो, करें जंगल में मंगल - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
चलो, करें जंगल में मंगल, |
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जलाओ दीप जी भर कर - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
जलाओ दीप जी भर कर, |
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मंकी और डंकी - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
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अगर सीखना कुछ चाहो तो... - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
अगर सीखना कुछ चाहो तो, |
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फूल नहीं तोड़ेंगे हम - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
14 नवम्बर, बाल-दिवस, बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू जी का जन्म-दिवस, देवम के स्कूल में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। सभी छात्र बड़े उत्साह और उमंग के साथ इस दिवस को मनाते हैं। |
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मेरे पापा सबसे अच्छे - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
मेरे पापा सबसे अच्छे, |
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नभ में उड़ने की है मन में - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
नभ में उड़ने की है मन में, |
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प्रकृति विनाशक आखिर क्यों है? - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
बिस्तर गोल हुआ सर्दी का, |
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प्रकाश मनु की बाल कविताएं - प्रकाश मनु | Prakash Manu | ||
प्रकाश मनु का जन्म 12 मई, 1950 को शिकोहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ। प्रकाश मनु बाल-साहित्य के सुपरिचित हस्ताक्षर माने जाते हैं। आपने बच्चों के लिए ढेरों पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें ‘एक था ठुनठुनिया', ‘गोलू भागा घर से' (बाल उपन्यास), ‘भुलक्कड़ पापा', 'मैं जीत गया पापा', 'तेनालीराम के चतुराई के किस्से', ‘लो चला पेड़ आकाश में', ‘इक्यावन बाल कहानियां', ‘चिन-चिन चूँ' बाल कहानियां), ‘हाथी का जूता', ‘इक्यावन बाल कविताएँ', ‘बच्चों की एक सौ एक कविताएँ' (बाल कविताएँ) पुस्तकें उल्लेखनीय हैं। |
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गर धरती पर इतना प्यारा - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
गर धरती पर इतना प्यारा, |
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छन्नूजी - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava | ||
दाल भात रोटी मिलती तो, |
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मछली की समझाइश - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava | ||
मेंढक बोला चलो सड़क पर, |
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मीठी वाणी - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava | ||
छत पर आकर बैठा कौवा, |
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बूंदों की चौपाल - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava | ||
हरे- हरे पत्तों पर बैठे, |
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दीप जलाओ | दीवाली बाल कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
दीप जलाओ दीप जलाओ |
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पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म-दिवस | बाल-दिवस - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
14 नवंबर को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म-दिवस होता है। इसे भारत में 'बाल-दिवस' (Bal Diwas) के रूप में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। नेहरूजी को 'चाचा नेहरू' के रूप में जाने जाते हैं क्योंकि उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था। |
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