समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।

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नहीं होता मित्र राजधानी में

मित्र
होता है हरदम
लोटे में पानी – चूल्हे में आग
जलन में झमाझम – उदासी में राग

दुर्दिन की थाली में बाड़ी से बटोरी हुई उपेक्षित भाजी-साग
रतौंदी के शिविर में मिले सरकारी चश्मे से
दिख-दिख जाता हरियर बाग

नहीं होता मित्र राजधानी में
...

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