अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

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घिन तो नहीं आती है ? | कविता

पूरी स्पीड में है ट्राम
खाती है दचके पे दचके
सटता है बदन से बदन-
पसीने से लथपथ
छूती है निगाहों को
कत्थई दाँतों की मोटी मुस्कान
बेतरतीब मूँछों की थिरकन
सच-सच बतलाओ
घिन तो नहीं आती है?
जी तो नहीं कढता है?

कुली मजदूर हैं
...

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म‌ंत्र

ॐ श‌ब्द ही ब्रह्म है..
ॐ श‌ब्द्, और श‌ब्द, और श‌ब्द, और श‌ब्द
ॐ प्रण‌व‌, ॐ न‌ाद, ॐ मुद्रायें
ॐ व‌क्तव्य‌, ॐ उद‌ग‌ार्, ॐ घोष‌णाएं
ॐ भ‌ाष‌ण‌...
ॐ प्रव‌च‌न‌...
ॐ हुंक‌ार, ॐ फ‌टक‌ार्, ॐ शीत्क‌ार
...

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