भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।

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मैं नर्क से बोल रहा हूँ!

हे पत्थर पूजने वालो! तुम्हें जिंदा आदमी की बात सुनने का अभ्यास नहीं, इसलिए मैं मरकर बोल रहा हूँ। जीवित अवस्था में तुम जिसकी ओर आंख उठाकर नहीं देखते, उसकी सड़ी लाश के पीछे जुलूस बनाकर चलते हो। जिंदगी-भर तुम जिससे नफरत करते रहे, उसकी कब्र पर चिराग जलाने जाते हो। मरते वक्त तक जिसे तुमने चुल्लू-भर पानी नहीं दिया, उसके हाड़ गंगाजी ले जाते हो। अरे, तुम जीवन का तिरस्कार और मरण सत्कार करते हो, इसलिए मैं मरकर बोल रहा हूँ। मैं नर्क से बोल रहा हूँ।

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जाति

कारख़ाना खुला। कर्मचारियों के लिए बस्ती बन गई।

ठाकुरपुरा से ठाकुर साहब और ब्राह्मणपुरा से पंडितजी कारखा़ने में नौकरी करने लगे और पास-पास के ब्लॉक में रहने लगे। ठाकुर साहब का लड़का और पंडितजी की लड़की दोनों जवान थे। उनमें पहचान हुई और पहचान इतनी बढ़ी कि दोनों ने शादी करने का निश्चय किया।

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शॉक | व्यंग्य

नगर का नाम नहीं बताता। जिनकी चर्चा कर रहा हूँ, वे हिंदी के बड़े प्रसिद्ध लेखक और समालोचक। शरीर सम्पति काफी क्षीण। रूप कभी आकर्षक न रहा होगा। जब का जिक्र है, तब वे 40 पार कर चुके थे। बिन ब्याहे थे।

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