वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।

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पुर तानह लौट यानि तानह लौट मंदिर

तानह लौट मंदिर
तानह लौट मंदिर में लेखिका, 'प्रीता व्यास' 

(प्रीता व्यास की सद्य प्रकाशित पुस्तक 'बाली के मंदिरों के मिथक' से एक मंदिर की कथा)

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बुद्धू बेलोग

बाली की लोक-कथा

बात काफी पुराने समय की है जब न टीवी थी ना रेडिओ, ना इंटरनेट ना फोन. इंडोनेशिया के द्वीप बाली में एक सीधा-साधा सा लड़का अपनी माँ के साथ रहा करता था। वो इतना सीधा था कि कोई न कोई बेवकूफी कर बैठता था और लोगों को लगता था कि ये तो बुद्धू है। पता नहीं उसका असली नाम क्या था लेकिन गाँव वाले उसे 'बेलोग' पुकारने लगे थे जिसका अर्थ बाली की भाषा में होता है- बुद्धू।

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काबायान अमीर न बन सका

काबायान एक गरीब आदमी था। उसकी जीविका 'रोज़ कुंवा खोदो, रोज़ पानी पीओ' वाले ढर्रे पर चल रही थी। दुनिया के तमाम लोगों की तरह वह भी अमीर होने का सपना देखता था।

एक बार काबायान और उसकी पत्नी पवित्र गेदे पर्वत पर गए ताकि अपना कुछ समय ईश्वर की उपासना, ध्यान और साधना में व्यतीत कर सकें। काबायान के मन में कहीं दबी-छुपी ये इच्छा भी थी की हो सकता है, ईश्वर उसकी पूजा- आराधना से प्रसन्न हो जाएँ और उसकी गरीबी सदा के लिए दूर हो जाए।

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कृपया अर्थ दीजिये हमें

शब्द हैं हम
केवल शब्द
कृपया अर्थ दीजिये हमें।

बहुत घूम लिए गलियों, चौराहों में
नारों में, इश्तेहारों में
एजेंडों में, स्लोगनों में
बहुत बह लिए
कर्महीनों की आशाओं में
राजनेताओं के आश्वासनों में।

इधर-उधर उड़ते- तिरते
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