समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।

अमरजीत कौर कंवल | फीजी

अमरजीत कौर फीजी के खालसा कॉलेज में भाषा और संगीत की प्राध्यापिका रही हैं।  आप मूलतः पंजाब से हैं व 1959 में अपने पति स्व. जोगिन्द्र सिंह कंवल के साथ फीजी में आ बसी थीं। 

आप लगभग 25 वर्ष तक शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं देती रही हैं।  एक दशक तक रेडियो फीजी से भी जुडी रही हैं।  संगीत के साथ-साथ आपकी लेखन में भी रूचि है। फीजी के हिंदी साहित्य में आप एक सुपरिचित नाम हैं।  

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चलो चलें उस पार

चलों चलें उस पार
झर झर करते झरने हों जहाँ
बहती हो नदिया की धारा
जीवन के चंद पल हों अपने
कर लें हम प्रकृति से प्यार

क्या रखा परदों के पीछे
चार दीवारी के चेहरे हैं
न प्रभात की लाली दिखती
न सिंदूरी साँझ के तार

सीमित और सँगीन महल ये
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