भाषा और राष्ट्र में बड़ा घनिष्ट संबंध है। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
 

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दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को


हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर।
हम को भी पाला था माँ-बाप ने दुख सह सह कर।
वक़्त-ए-रुख़्सत उन्हें इतना भी न आए कह कर।
गोद में आँसू कभी टपके जो रुख़ से बह कर।
तिफ़्ल उन को ही समझ लेना जी बहलाने को॥

देश सेवा ही का बहता है लहू नस नस में।
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