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फ़क़ीराना ठाठ | गीत
आ तुझको दिखाऊँ मैं अपने ठाठ फ़क़ीराना
फाकों से पेट भरना और फिर भी मुसकुराना।
आ तुझको दिखाऊँ मैं--------
मजलिस में जब भी बैठा गाये हैं गीत खुलकर
कह ले मुझे तू पगला या कह ले तू दीवाना।
आ तुझको दिखाऊँ मैं--------
मैं गीत उसके गाऊँ जो दिल में मेरे बसता
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दर्द के बोल
उसको मन की क्या कहता मैं?
अपना भी मन भरा हुआ था।
इसकी-उसकी, ऐसी-वैसी,
जाने क्या-क्या धरा हुआ था!
उसको मन की क्या कहता मैं, अपना भी मन भरा हुआ था!
जब भी घंटी बजे फोन की
भागूँ, मन पर डरा हुआ था।
प्राण निगल गई, ये महामारी
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प्रधान जी
अमरीका में एक कहावत प्रचलित थी लेकिन आजकल अनेक कारणों से इसका प्रयोग लगभग वर्जित ही है। कहावत थी-- ‘Too many chiefs and not enough Indians.’ इस कहावत का देसी अर्थ हुआ, ‘प्रधान सब हैं, काम करने को कोई तैयार नहीं।‘ इस कहावत का संबंध तो अमरीका के मूल निवासियों (रेड इंडियंस) पर आधारित है लेकिन ‘इंडियन’ तो इंडियन हैं, क्या लाल, क्या पीले!
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न्यूज़ीलैंड में हिंदी | क्या आप जानते हैं
न्यूज़ीलैंड में हिंदी : क्या आप जानते हैं?
• हिंदी न्यूज़ीलैंड में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं में से एक है।
• न्यूज़ीलैंड के किसी भारतीय द्वारा पहला आलेख 1930 में भारत की लोकप्रिय पत्रिका ‘विशाल भारत’ में
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सिना और ईल
बहुत पुरानी बात है। सामोआ द्वीप में सिना नाम की एक खूबसूरत लड़की रहती थी। सिना के घर के पास समुद्र ही समुद्र था। सिना पानी में खूब तैरती और तरह-तरह की जल क्रीडाएं करती। वहीं समुद्र तट के पास रहने वाली एक ईल मछली सिना के साथ-साथ तैरती और खेलती। समय बीतता गया और ईल सिना की बहुत अच्छी दोस्त बन गई। सिना और ईल साथ-साथ तैरती, साथ-साथ खेलती। सिना तैरती हुई जहाँ भी जाती ईल उसके साथ-साथ रहती। ईल अब आकार में बड़ी होती जा रही थी और सिना के प्रति उसका लगाव अब सिना को बंधन सा लगने लगा। सिना ईल से तंग आने लगी।
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हिंदी में न्यूजीलैंड का माओरी साहित्य
न्यूजीलैंड में तीन भाषाएं आधिकारिक रूप से मान्य हैं-- अंग्रेजी, माओरी और सांकेतिक भाषा। हिन्दी न्यूज़ीलैंड में सर्वाधिक बोली जाने वाली पाँचवीं भाषा है।
माओरी न्यूजीलैंड के मूल निवासी हैं। इनका लोक साहित्य व्यापक है। यूँ तो न्यूज़ीलैंड की हिंदी यात्रा नौ दशकों से भी अधिक की हो चुकी है लेकिन न्यूज़ीलैंड के साहित्य के अनुवाद इत्यादि पर अभी बहुत काम नहीं हुआ। इस देश व यहाँ के जनजीवन की जानकारी अवश्य 20वीं सदी के तीसरे दशक में हिंदी में प्रकाशित हुई। न्यूज़ीलैंड पर लिखा गया सबसे पहला आलेख 1930 के ‘विशाल भारत’ में प्रकाशित हुआ था। इस आलेख के लेखक डॉ. बलवंत सिंह शेर थे। आलेख का शीर्षक था, ‘न्यूज़ीलैंड में जीवन’। ‘विशाल भारत’ का संपादन उस समय के सुप्रसिद्ध पत्रकार बनारसीदास चतुर्वेदी करते थे।
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हिंदी डे
'देखो, 14 सितम्बर को हिंदी डे है और उस दिन हमें हिंदी लेंगुएज ही यूज़ करनी चाहिए। अंडरस्टैंड?' सरकारी अधिकारी ने आदेश देते हुए कहा।
'यस सर!' कहकर सरकारी बाबू ने भी हामी भरी।
हिंदी-दिवस की तैयारी जोरों पर थी।
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मैं हिंदोस्तान हूँ | लघु-कथा
मैंने बड़ी हैरत से उसे देखा। उसका सारा बदन लहूलुहान था व बदन से मानों आग की लपटें निकल रही थीं। मैंने उत्सुकतावश पूछा, "तुम्हें क्या हुआ है?"
"मुझे कई रोग लगे हैं; मज़हबवाद, भाषावाद, निर्धनता, अलगाववाद, भ्रष्टाचार, अनैतिकता इत्यादि जिन्होंने मुझे बुरी तरह जकड़ लिया है। यह जो आग मेरे बदन से निकल रही है यह मज़हबवाद और अलगाववाद की आग है। यदि जल्द ही मेरा इलाज न हुआ तो यह आग सबको भस्म कर देगी।" उसके दिल की वेदना चेहरे पर आ चुकी थी।
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इश्तहार | लघु-कथा
"मेरा बहुत सा क़ीमती सामान जिसमें शांति, सद्भाव, राष्ट्र-प्रेम, ईमानदारी, सदाचार आदि शामिल हैं - कहीं गुम गया है। जिस किसी सज्जन को यह सामान मिले, कृपया मुझ तक पहुँचाने का कष्ट करे।
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संदेश
मुझे याद है वह संदेश -
'बुरा न सुनो, बुरा न कहो, बुरा न देखो!'
लेकिन...उनके कुकृत्य देख
कैसे अनदेखा करूं?
कोई 'निर्भया' पुकारे
तो
क्या अनसुना करुं?
जब अतिक्रमण हो,
उत्पीड़न हो,
और....
'तुम्हारा कहा' भी गांठ बंधा हो, पर
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